THE PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SWACHH BHARAT DIWAS UNDER SWACHHATA HI SEWA 2025 AT CHANDIGARH ON OCTOBER 2, 2025.

गांधी जयंती के अवसर पर ‘स्वच्छ सम्मान समारोह’ पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 02.10.2025,  गुरूवारसमयः सुबह 11:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

यह मेरे लिए अत्यंत गर्व और प्रसन्नता की बात है कि आज 2 अक्टूबर, महात्मा गांधी जी की जयंती के शुभ अवसर पर हम सब स्वच्छ सम्मान समारोह के अंतर्गत एकत्रित हुए हैं।

सबसे पहले, मैं महात्मा गांधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने स्वच्छता को केवल शारीरिक सफाई नहीं, बल्कि व्यक्तित्व और समाज की आत्मा से जोड़ा।

यह दिन हमें केवल गांधी जी के आदर्शों की याद दिलाने का अवसर नहीं देता, बल्कि हमें उनके उस महान संदेश को भी आत्मसात करने की प्रेरणा देता है, जिसके केंद्र में स्वच्छता और सेवा भाव था।

भाइयो और बहनो,

कुछ दिन पहले ‘स्वच्छोत्सव-स्वच्छता ही सेवा’ के अंतर्गत नगर निगम चंडीगढ़ द्वारा 17 सितंबर से 2 अक्टूबर तक जो 15 दिवसीय विशेष अभियान चलाया गया, वह निश्चित ही संपूर्ण सरकार और संपूर्ण समाज की भागीदारी का उत्कृष्ट उदाहरण है।

मैं चंडीगढ़ नगर निगम, सभी अधिकारियों, सफाई मित्रों, स्वयंसेवकों, स्कूलों, सामाजिक संस्थाओं, बाज़ार संघों और सबसे बढ़कर, हमारे जागरूक नागरिकों का हृदय से अभिनंदन करता हूं, जिन्होंने इसे एक जन-आंदोलन बना दिया।

‘’एक दिन, एक घंटा, एक साथ’’ की थीम के साथ इस श्रमदान अभियान ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि हर नागरिक एक छोटा योगदान दे, तो हम बड़े बदलाव ला सकते हैं।

इस पखवाड़े के दौरान आयोजित हुए कार्यक्रम जैसे, स्वच्छता रैलियां, स्कूलों में जागरूकता सत्र, वेस्ट-टू-आर्ट प्रदर्शनी, सफाई मित्रों के लिए स्वास्थ्य शिविर, स्वच्छ कन्या महालंगर - परंपरा और स्वच्छता का संगम, साइक्लोथॉन और सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्लास्टिक कचरा संग्रह और कपड़े के थैले बांटने की पहल, ये सभी गतिविधियां न केवल व्यवहार परिवर्तन का माध्यम बनीं, बल्कि स्वच्छता को संस्कार और संस्कृति का रूप भी दिया।

आज यहां जिन 30 प्रतिभागियों और विजेताओं को सम्मानित किया गया है, वे न केवल प्रतियोगिताओं के विजेता हैं, बल्कि वे स्वच्छता के प्रेरणास्रोत हैं। आप सबको मैं हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

साथ ही, हमारे सफाई मित्रों को मैं विशेष रूप से नमन करता हूं। आपकी निःस्वार्थ सेवा के बिना यह अभियान सफल नहीं हो सकता था।

भाइयो और बहनो,

हमारे जीवन में स्वच्छता का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। स्वच्छता हमारे शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा करती है। यह मानसिक प्रसन्नता और सामाजिक प्रतिष्ठा का भी आधार बनती है। 

स्वच्छ वातावरण रोगों से बचाव करता है, कार्यक्षमता को बढ़ाता है और जीवन को संतुलित तथा सुखद बनाता है। वास्तव में, स्वच्छता एक ऐसी आदत है, जो व्यक्तिगत विकास से लेकर समाज और राष्ट्र की उन्नति तक में सहायक सिद्ध होती है।

आज जब हम महात्मा गांधी जी की जयंती मना रहे हैं, तो यह और भी आवश्यक हो जाता है कि हम उनके स्वच्छता से जुड़े विचारों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। 

गांधी जी का मानना था कि जब तक व्यक्ति अपने घर, परिवेश और समुदाय को स्वच्छ नहीं रखेगा, तब तक उसका समाज और राष्ट्र भी स्वच्छ नहीं बन सकता। 

उन्होंने स्वच्छता को ‘सर्वोदय’ के मूल सिद्धांत से जोड़ते हुए इसे सामाजिक उत्थान और न्याय का प्रतीक घोषित किया। गाँधी जी कहते थे, ‘‘अगर हम अपने घर, अपने गाँव और अपने कार्यस्थल को साफ-सुथरा नहीं रखते, तो हमें अपने मान-सम्मान का भी हक नहीं है’’।

गाँधी जी स्वयं भी हरिजन बस्तियों और सार्वजनिक स्थलों की सफाई करके समाज को “करके दिखाने” की प्रेरणा देते थे। उनके विचार अनुसार जाति, लिंग या उम्र के भेदभाव से ऊपर उठकर हर नागरिक को सफाई अभियान से जुड़ना चाहिए। उन्होंने समाज के हर वर्ग को इस कार्य में भागीदार बनाने तथा ‘श्रमदान’ के माध्यम से ‘स्वच्छता-सेवा’ को जीवनमूल्य में ढालने की बात कही।

महात्मा गांधी के स्वच्छता संबंधी विचार आज के भारत में अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। गांधी जी के कल्पनातीत स्वच्छ भारत का सपना आज ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के माध्यम से मूर्त रूप ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को इस मिशन की शुरुआत इसी गांधीवादी प्रेरणा का अनुसरण था, जिसमें समाज के सभी वर्गों की भागीदारी पर विशेष जोर दिया गया।

भाइयो और बहनो,

हमारे वेदों और ग्रंथों में भी स्वच्छता को एक नैतिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी के रूप में देखा गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद जैसे प्राचीन ग्रंथों में यह उल्लेख मिलता है कि स्वच्छता न केवल व्यक्ति के लिए, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी अत्यावश्यक है।

हमारे प्राचीन साहित्य और ऐतिहासिक ग्रंथों में अयोध्या, उज्जयिनी, पाटलिपुत्र और हम्पी जैसे नगरों की भव्यता के साथ उनकी स्वच्छता और सुव्यवस्थित शहरी जीवन के अनेक वर्णन मिलते हैं। यह हमारी परंपरा की गवाही है कि स्वच्छता केवल शारीरिक या बाहरी सफाई नहीं, बल्कि सामाजिक अनुशासन, आध्यात्मिक चेतना और सभ्य समाज की पहचान भी है।

गुरु नानक देव जी ने भी सदियों पहले हमें प्रकृति के प्रति गहन संवेदनशीलता और श्रद्धा का संदेश दिया। उन्होंने कहा, “पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत्त।” अर्थात् वायु गुरु के समान है, जो हमें जीवन का ज्ञान और प्रेरणा देती है; जल पिता के समान है, जो पोषण और जीवन शक्ति प्रदान करता है; और धरती माता के समान है, जो हमें अपनी गोद में संभालती और अन्न देती है। 

यह संदेश हमें याद दिलाता है कि स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल और स्वच्छ धरती केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं, बल्कि हमारे जीवन का आधार और हमारी संस्कृति की आत्मा हैं। इनकी रक्षा करना और इन्हें स्वच्छ रखना हमारा नैतिक और आध्यात्मिक कर्तव्य है।

हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना ने प्राचीन काल से ही स्वच्छता पर विशेष बल दिया है। अपने घरों, पूजा स्थलों और आसपास के परिवेश को स्वच्छ रखना हमारी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहा है। 

हमारे सभी प्रमुख त्योहार, चाहे वह दीवाली हो, छठ पूजा हो या अन्य कोई पर्व, स्वच्छता और पवित्रता के संदेश को प्रकट करते हैं। दीवाली पर घर-आँगन की सफाई करके हम केवल अंधकार और अस्वच्छता को दूर नहीं करते, बल्कि प्रकाश, समृद्धि और मंगल का स्वागत भी करते हैं। छठ पूजा में स्वच्छ नदियों, तालाबों और शुद्ध परिवेश का विशेष महत्व है, जहाँ भक्त प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। 

वास्तव में, हमारे सभी त्योहार यह प्रेरणा देते हैं कि स्वच्छता केवल स्वास्थ्य के लिए आवश्यक नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और आस्था का अभिन्न अंग है। यदि हम इन पर्वों की भावना को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें, तो स्वच्छ भारत अभियान को स्थायी और व्यापक रूप से सफल बनाया जा सकता है।

 

साथियो,

संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करना और उनका पुनः उसी कार्य में या किसी अन्य कार्य में प्रयोग करना हमारी जीवनशैली का सदैव हिस्सा रहा है। सर्कुलर इकॉनमी के मूल सिद्धांत तथा रिड्यूस-रीयूज़-रीसायकल की प्रणाली वास्तव में हमारी प्राचीन जीवनशैली के आधुनिक और व्यापक रूप हैं। 

उदाहरण के लिए, आदिवासी समुदायों की पारंपरिक जीवनशैली सरल होती है। वे कम संसाधनों का उपयोग करते हैं और मौसम, पर्यावरण तथा अपने समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ सामंजस्य बनाकर रहते हैं। वे प्राकृतिक संसाधनों को व्यर्थ नहीं करते। आधुनिक सर्कुलैरिटी सिस्टम्स को ऐसे आचरण और परंपराओं को अपनाकर और भी सशक्त बनाया जा सकता है।

कचरा प्रबंधन की मूल्य श्रृंखला का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम स्रोत पर पृथक्करण है। प्रत्येक हितधारक और हर परिवार को इस कदम पर विशेष ध्यान देना चाहिए। ज़ीरो-वेस्ट कॉलोनियाँ इस दिशा में अच्छे उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं।

प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक कचरे को नियंत्रित करना तथा उनसे होने वाले प्रदूषण को रोकना एक बड़ी चुनौती है। उचित प्रयासों से हम देश में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक के कचरे की मात्रा को उल्लेखनीय रूप से कम कर सकते हैं। 

वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने कुछ सिंगल-यूज़ प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया। इसी वर्ष सरकार ने प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility) संबंधी दिशानिर्देश भी जारी किए। इन दिशानिर्देशों का पूर्ण पालन सुनिश्चित करना उत्पादकों, ब्रांड मालिकों और आयातकों आदि सभी हितधारकों की जिम्मेदारी है।

देवियो और सज्जनो,

यदि हम ठोस और सुविचारित संकल्पों के साथ आगे बढ़ें, तो वर्ष 2047 तक विकसित भारत दुनिया के सबसे स्वच्छ देशों में से एक होगा।

मैं सभी नागरिकों से अपील करता हूं कि स्वच्छता को केवल अभियान ना समझें, बल्कि इसे दैनिक जीवन की आदत बनाएं।

हर कचरा पात्र में डाला गया कचरा, हर सार्वजनिक स्थल पर बनी स्वच्छता की भावना और हर बच्चे को दी गई स्वच्छता की शिक्षा, ये सब मिलकर हमारे शहर को और हमारे देश को स्वस्थ और सुंदर बनाते हैं।

आइए, गांधी जी के स्वच्छ भारत के सपने को साकार करें।

आइए, चंडीगढ़ को स्वच्छता में देश का नंबर 1 शहर बनाएं।

स्वच्छ भारत - सुंदर भारत - समृद्ध भारत, यही हमारा संकल्प हो।

धन्यवाद,

जय हिंद!