SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CELEBRATION OF BHAGWAN VALMIKI JI’S BIRTH ANNIVERSARY AT JAGRAON ON OCTOBER 7, 2025.
- by Admin
- 2025-10-07 12:45
वाल्मीकि जयंती के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 07.10.2025, मंगलवार
समयः सुबह 11:30 बजे
स्थानः जगराओं
नमस्कार!
आज हम यहाँ हमारे महापुरुष और अद्भुत कृति एवं अपरंपरावादी जीवन के प्रतिमान, भगवान वाल्मीकि जी की जयंती मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं। इसके लिए मैं सेंट्रल वाल्मीकि सभा, इंडिया का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मुझे भगवान वाल्मीकि जयंती के इस पावन और प्रेरणादायी अवसर का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्रदान किया।
मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि सेंट्रल वाल्मीकि सभा, इंडिया पिछले 100 वर्षों से निरंतर समाजसेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दे रही है। यह संस्था न केवल पंजाब राज्य में, बल्कि देशभर में अपनी शाखाओं के माध्यम से सक्रिय रूप से जनकल्याण के कार्य कर रही है। इतना ही नहीं, इसके 25 से अधिक देशों में भी इकाइयाँ कार्यरत हैं, जो भारतीय संस्कृति, सेवा और समर्पण की भावना का प्रसार कर रही हैं।
स्थापना के समय इस संस्था का नाम ‘पंजाब प्रदेश वाल्मीकि सभा’ था, जिसे वर्ष 1992 में बदलकर ‘सेंट्रल वाल्मीकि सभा, इंडिया’कर दिया गया। यह परिवर्तन संस्था की बढ़ती पहुँच और व्यापक सामाजिक प्रभाव का प्रतीक है।
यह सभा समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के कल्याण के लिए अनेक सेवा गतिविधियाँ संचालित करती है, जैसे गरीब कन्याओं के विवाह का आयोजन, जरूरतमंद बच्चों की शिक्षा में सहयोग, रक्तदान शिविरों का संचालन, और निःशुल्क चिकित्सा सेवाओं का प्रावधान। इन कार्यों के माध्यम से यह संस्था समाज में मानवता, करुणा और समानता का सशक्त संदेश देती है।
सेंट्रल वाल्मीकि सभा, इंडिया का मिशन भी अत्यंत प्रेरणादायी हैः ‘अब तो जागो, नशे को त्यागो’, ‘पैसा बचाओ, बच्चे पढ़ाओ’, ‘भ्रूण हत्या बंद करो’, ‘दहेज लेना बंद करो’, ‘पानी बचाओ, पेड़ लगाओ’।
मेरा मानना है कि ये नारे केवल संदेश नहीं हैं, बल्कि एक सशक्त सामाजिक आंदोलन का स्वर हैं, जो समाज को सुधार और आत्मजागृति की दिशा में आगे बढ़ने का आह्वान करते हैं।
प्रिय श्रद्धालुजनो,
महर्षि वाल्मीकि भारतीय सनातन संस्कृति के अत्यंत महत्वपूर्ण महान ऋषि, कवि और विचारक माने जाते हैं। उनका जीवन, उनके कार्य और विचार आज भी भारतीय समाज के लिए मार्गदर्शक और प्रेरक बने हुए हैं। वाल्मीकि का उल्लेख न केवल भारतीय साहित्य में मिलता है, बल्कि सामाजिक पुनरुत्थान, सामाजिक समरसता और जीवनमूल्यों के प्रसार में उनका योगदान अप्रतिम है।
महर्षि वाल्मीकि जी को ‘आदिकवि’ कहा जाता है क्योंकि वे संस्कृत साहित्य के प्रथम महाकाव्य ‘रामायण’ के रचयिता हैं, जिसमें भगवान श्रीराम के आदर्श चरित्र, नीति, धर्म, और मानवता के शाश्वत आदर्शों का चित्रण किया गया है। रामायण संपूर्ण विश्व में भारतीय जीवन-दर्शन, संस्कृति और मानवता के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।
भगवान वाल्मीकि जी भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा के महान प्रतीक हैं। उन्होंने सतयुग में अक्षर और लक्ष ग्रंथों की रचना कर मानव जीवन के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की नींव रखी।
त्रेतायुग में उन्होंने रामायण और योग वशिष्ठ की रचना की और माता सीता के पुत्र लव-कुश का पालन-पोषण कर उन्हें धर्म, ज्ञान और वीरता का प्रशिक्षण दिया।
द्वापर युग में उन्होंने कौरव-पांडवों का सुमेध यज्ञ संपन्न कर धर्म और न्याय की स्थापना सुनिश्चित की। उनका जीवन ज्ञान, करुणा, तपस्या और सत्य की साधना का प्रतीक है और यह मानवता के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा।
आज जब हम भगवान वाल्मीकि जी की जयंती का पर्व मना रहे हैं तो हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि उनका जीवन केवल एक साहित्यिक योगदान नहीं है।
उनका जीवन एक परिवर्तनकारी गाथा है, जो अज्ञान से आत्मज्ञान की, अमानवीयता से सुसंस्कार की, अराजकता से आचार-नीति और मानवीयता की विजय की उज्ज्वल मिसाल है।
भगवान वाल्मीकि जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि जब मनुष्य अपने भीतर झाँकता है, अपने कर्मों का मूल्यांकन करता है, और सत्य तथा करुणा के मार्ग को अपनाता है, तो वह न केवल स्वयं का उत्थान करता है, बल्कि संपूर्ण समाज को भी दिशा प्रदान करता है। वाल्मीकि जी के जीवन में बदलाव की प्रेरणा यह सिखाती है कि मनुष्य सदैव सुधार और सच्चाई की राह अपनाकर महापुरुष बन सकता है।
भगवान वाल्मीकि जी का जन्म, जीवन और तत्त्वमीमांसा अनेक कहानियों और लोकश्रुतियों में परिलक्षित होते हैं। ये हमें यह सिखाते हैं कि मनुष्य की पहचान उसकी पूर्वस्थिति, जन्म या परिवेश से निर्धारित नहीं होती; उसकी पहचान उसके प्रयासों, आत्म-परिवर्तन और समाज के प्रति उसकी संवेदनशीलता से बनती है।
वाल्मीकि जी ने अपने जीवन के अनगिनत झंझावातों को पार करके ‘रामायण’जैसा महाकाव्य देकर न केवल संस्कृत साहित्य को अमरता दी, बल्कि मानवीय गरिमा, धर्म, करुणा और मर्यादा का महान संदेश भी दिया।
रामायण केवल एक धार्मिक कथा नहीं; वह एक आइना है जिसमें मनुष्यता, कर्तव्य, निष्ठा, शत्रु के प्रति नीति और समाज के प्रति दायित्व का विवेकपूर्ण दर्शन मिलता है। वाल्मीकि जी ने जिस सहज भाषा और मानवीय संवेदनाओं के साथ इस महाकाव्य को रचा, उसने हर युग के मनुष्यों को जीवन-मार्ग दिखाया। उनके पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, और रावण, न केवल कथानक के भाग हैं, बल्कि मानवीय गुण और दोष के प्रतीक बन गए हैं जिनसे हम आज भी सीखते हैं।
महर्षि वाल्मीकि जी की शिक्षाएँ आज भी समानता, करुणा और धार्मिक सहिष्णुता के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। उनका आदर्श जीवन हमें ईमानदारी, परिश्रम और समरसता का सच्चा पथ दिखाता है। उनके उपदेशों को आत्मसात कर ही हम सामाजिक उत्थान की ओर बढ़ सकते हैं।
प्रिय श्रद्धालुजनो,
पंजाब की यह पवित्र धरती, जिसने सदियों से वीरता, परिश्रम, और सहिष्णुता की मिसाल कायम की है, आज भी भगवान वाल्मीकि जी के विचारों का खुले हृदय से स्वागत करती है। यह वही मिट्टी है, जहाँ कर्म को पूजा माना जाता है, जहाँ परिश्रम को सम्मान मिलता है, और जहाँ हर विचार को उसकी मानवीयता और सार्थकता के आधार पर स्वीकार किया जाता है।
भगवान वाल्मीकि जी के समानता, करुणा, मर्यादा और न्याय के विचार पंजाब की जीवन-शैली में गहराई तक रचे-बसे हैं। चाहे वह खेतों में मेहनत करने वाला किसान हो, सीमा पर देश की रक्षा करने वाला जवान, या समाज की सेवा में जुटा नागरिक, हर कोई उनके उस संदेश से प्रेरित है कि “कर्म ही धर्म है” और “मानवता ही सबसे बड़ा मूल्य।”
हमारे राज्य की विविध संस्कृति और समावेशी सोच उसी आदर्श का प्रतिबिम्ब है जिसे वाल्मीकि ने अपने ग्रंथ में प्रस्तुत किया। आज के इस अवसर पर हम निश्चय ही यह प्रण लें कि हम समाज के प्रत्येक वर्ग को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सम्मान के समान अवसर देंगे और यह हमारे कार्यकलापों का आधार होगा।
विशेषकर हमें स्मरण रखना चाहिए कि वाल्मीकि जी का जीवन दलितता, भेदभाव और सामाजिक वंचनाओं के विरुद्ध एक प्रखर संदेश है। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हमें सामाजिक समता और समान अवसरों के लिए निरन्तर प्रयास करना है।
यह सरकारों, शैक्षिक संस्थानों और समाज सभी का दायित्व है कि वे उन समुदायों तक शिक्षा व कौशल के अवसर पहुँचाएँ जो पिछड़ेपन के कारण मुख्यधारा से कटे हुए रहे हैं। शिक्षा ही वह प्रमुख साधन है जो व्यक्ति का मार्गदर्शन, आत्म-निर्भरता और आत्म-सम्मान सुनिश्चित करती है।
युवा शक्ति के प्रति मेरा कहना है कि भगवान वाल्मीकि का जीवन आपको यह संदेश देता है कि आत्म-परिवर्तन और लक्ष्य-प्राप्ति संभव है। जो भी आप सोचते हैं, उसे कर्म में बदलना आपकी काबिलियत है।
अपने भीतर के सकारात्मक गुणों को पहचानिए, शिक्षा और अनुशासन को अपनाइए, और समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाइए। आज के युवा ही देश का भविष्य हैं। ऐसे में उनका नैतिक, बौद्धिक और शारीरिक विकास हम सबकी प्राथमिकता होनी चाहिए।
हमारे अध्यापक और मार्गदर्शनकर्ता, उनका भी हमें सम्मान करना चाहिए। शिक्षकों का कार्य केवल ज्ञान देना नहीं है; वे भविष्य के निर्माता हैं। हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षक आधुनिक शैक्षिक पद्धतियों, मनोवैज्ञानिक समझ और समावेशी शिक्षण के उपकरणों से लैस हों।
जब शिक्षण विधियाँ बच्चों की प्रतिभा और रुचि अनुसार होंगी, तभी बालक अपनी यूनिक पर्सनालिटी को निखार पाएंगे। यूनिक पर्सनालिटी को यूनिक अवसरों से जोड़ना शिक्षा का मूल उद्देश्य होना चाहिए।
समाज की न्यायनिष्ठा और समावेशिता के सम्बन्ध में, हमें आरक्षण और अन्य कल्याणकारी नीतियों के साथ-साथ समाज में परिवर्तन लाने के लिए सतत संवाद और संवेदनशीलता की आवश्यकता है। भेदभाव के विरुद्ध ठोस सामाजिक चेतना, सक्रिय नागरिकता और सकारात्मक शक्ति का प्रयोग हमें आगे बढ़ाएगा। हमें समुदायों को सशक्त बनाना है ताकि वे स्वयं अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें और समाज के निर्णयों में सक्रिय भागीदारी निभा सकें।
इसी संदर्भ में, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और साहित्यिक मंचों का महत्त्व बहुत बड़ा है। रामायण के नैतिक और दृष्टांतों को नाटक, लोकगीत, चित्रकला, डिजिटल माध्यम और युवा मंचों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाए ताकि हर पीढ़ी, विशेषकर युवा पीढ़ी, इन आदर्शों से जुड़ सकें। साथ ही, वाल्मीकि साहित्य के अध्ययन के लिए शोध निधियाँ, पुरस्कार और युवा लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित कर के नई प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
मैं, पंजाब का राज्यपाल और एक नागरिक होने के नाते, आप सभी से आग्रह करता हूँ कि आइए हम सब मिलकर समाज के उस आदर्श का निर्माण करें जो वाल्मीकि जी ने अपने जीवन एवं कृति से दिखाया।
उनके मानव-प्रियता, करुणा, शिक्षा का महत्व, आत्म-शुद्धि और समाज के लिए निष्ठा के आदर्श हमारे व्यवहार और नीतियों का मूल आधार बनें। जब हम प्रत्येक नागरिक को समान सम्मान और अवसर देंगे, तभी हमारी सामाजिक संरचना सुगठित और सुदृढ़ होगी।
भगवान वाल्मीकि जी की जयंती न केवल श्रद्धा और सम्मान का पर्व है, बल्कि यह सामाजिक रूपांतरण, मानवता, समता और शिक्षा का व्यापक उत्सव है। आज जब भारतीय समाज विविधताओं के बावजूद समरसता, समता और सजग नागरिकता की ओर बढ़ रहा है, तब वाल्मीकि के आदर्श एक नया मार्ग दिखाते हैं। उनके विचारों और साहित्यिक योगदान का सन्देश यही है, “मानवता सर्वोपरि, धर्म सद्कार्य, और समाज समावेशी।”
अंत में, मैं सेंट्रल वाल्मीकि सभा इंडिया को उनके सतत प्रयासों के लिए धन्यवाद देता हूँ। आप सभी स्वयंसेवकों, शिक्षाविदों, कलाकारों और आयोजकों का भी आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इस समारोह को सफल बनाया। भगवान वाल्मीकि की जयंती हमें याद दिलाती है कि जीवन का सबसे बड़ा परिवर्तन भीतर से ही संभव है और यही परिवर्तन समाज को नई दिशा देता है।
ईश्वर वाल्मीकि महाराज की तरह हमें भी दया, सत्य, और निष्ठा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें। मैं आपको और आपके परिवारों को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। आपका जीवन ज्ञान, संवेदना और समाज सेवा से परिपूर्ण हो।
धन्यवाद,
जय हिन्द! जय भारत!
और भगवान वाल्मीकि की जय!