SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB KATARIA ON THE OCCASION OF INAUGURATION OF THE JAGRAN FILM FESTIVAL AT LUDHIANA ON 24.10.2025.

दैनिक जागरण फिल्म फेस्टिवल के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 24.10.2025, शुक्रवारसमयः शाम 4:30 बजेस्थानः लुधियाना

 

नमस्कार!

आज मुझे लुधियाना में जागरण प्रकाशन समूह द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘जागरण फिल्म फेस्टिवल’ (JFF) के इस भव्य अवसर पर आप सभी के बीच उपस्थित होकर अत्यंत गर्व की अनुभूति हो रही है।

जागरण प्रकाशन समूह की यह ऐतिहासिक पहल न केवल सिनेमाई उत्कृष्टता का जश्न है, बल्कि यह “सभी के लिए अच्छे सिनेमा” की भावना का सबसे बड़ा प्रतीक भी बन गई है। यह आयोजन संस्कृति, संवाद और समाज के बीच एक सेतु है।

  विश्व का सबसे बड़ा ट्रैवलिंग फिल्म फेस्टिवल कहलाने वाला यह महोत्सव अपनी विशिष्ट ट्रैवलिंग फॉर्मेट, रीजनल, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फिल्मों की विविधता, रचनाकारों से संवाद और मास्टरक्लास, तथा सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है।

यह फेस्टिवल हर वर्ष भारत के 14 से 18 शहरों में आयोजित होकर करोड़ों दर्शकों तक पहुंचता है और इसकी सबसे बड़ी विशेषता इसका ट्रैवलिंग स्वरूप है।

यह दिल्ली से शुरू होकर मुंबई में भव्य समापन के साथ समाप्त होता है, और इस दौरान देश के प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी, प्रयागराज, मेरठ, आगरा, रांची, पटना, हिसार, लुधियाना, देहरादून, इंदौर, रायपुर, जमशेदपुर, भोपाल और मुंबई का भ्रमण करता है। समय-समय पर अन्य शहरों को भी इसमें शामिल किया जाता है।

मुझे बताया गया है कि इस बार फेस्टिवल के फ़ॉर्मेट में बदलाव किया गया है जो वास्तव में सराहनीय है-जिसमें बच्चों, विशेषकर किशोरों से जुड़े विषयों पर आधारित फिल्मों को शामिल किया गया है, और सुबह के स्क्रीनिंग स्लॉट विशेष रूप से 18 वर्ष से कम आयु के किशोर दर्शकों के लिए निर्धारित किए गए हैं।

इस फिल्म फेस्टिवल में 50 से अधिक फिल्में प्रदर्शित की जाएँगी। साथ ही, पंजाब की यूनिवर्सिटीयों के छात्रों की प्रतिभाएँ भी इस अवसर पर सामने आएँगी। विशेष रूप से, उनके द्वारा बनाई गई तीन शॉर्ट फ़िल्में इस आयोजन में चयनित होकर स्क्रीन पर प्रदर्शित की जाएँगी, जो युवा रचनाकारों के उत्साह और रचनात्मक कौशल का उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

जागरण फिल्म महोत्सव की शुरुआत 2010 में जागरण प्रकाशन समूह की ओर से हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि गुणवत्तापूर्ण सिनेमा की पहुंच सिर्फ महानगरों मे सीमित न रहे, बल्कि यह देश के छोटे-बड़े शहरों और दूरदराज क्षेत्रों तक भी पहुंचे। 

वर्षों में इसका विस्तार, पहुंच और प्रतिष्ठा निरंतर बढ़ते गए, और आज यह न केवल भारत, बल्कि एशिया के सबसे बड़े ट्रैवलिंग फिल्म फेस्टिवल के रूप में स्वीकृत है। 

हर वर्ष यह फेस्टिवल बड़ी संख्या में भारतीय, क्षेत्रीय और विदेशी फिल्मों, वृत्तचित्रों, शॉर्ट फिल्मों तथा OTT¼ Over The Top½ यानी इंटरनेट के माध्यम से सीधे दर्शकों तक सामग्री पहुँचाने वाले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स की रचनाओं को प्रदर्शित करता है। साथ ही यह नई प्रतिभाओं को मंच देने में भी अग्रणी भूमिका निभाता है।

देवियो और सज्जनो,

फ़िल्में केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, वे समाज का दर्पण हैं। वे हमें हमारी जड़ों से जोड़ती हैं, हमारी सोच को विस्तार देती हैं और हमें उन कहानियों से रूबरू कराती हैं जो अक्सर अनकही रह जाती हैं। ऐसी कहानियां जो कभी पन्नों में दफन हो जाती हैं, तो कभी उन्हें शब्द और स्वर नहीं मिल पाते हैं। ये फिल्में ही हैं जो उन्हें पर्दे पर सजाकर हमें उन कहानियों की अनुभूति कराती हैं।

मैं दैनिक जागरण समूह को इस शानदार पहल के लिए बधाई देता हूं। दैनिक जागरण केवल समाचार पत्र नहीं, बल्कि समाज की आवाज और आइना है। यह नशे, पर्यावरण, जल संरक्षण, नारी सशक्तीकरण, भिक्षावृत्ति मुक्ति और गरीबी उन्मूलन जैसे अभियानों में अग्रणी रहा है। आज का यह फिल्म फेस्टिवल इसी जनसेवा का सृजनात्मक रूप है।

इस मंच पर मनोज बाजपेयी और दिव्या खोसला कुमार जैसे कलाकारों और आर. बाल्की जैसे निर्देशक की उपस्थिति और नेटफ्लिक्स की फिल्म ‘इंस्पेक्टर जेंडे’ का वर्ल्ड प्रीमियर इस बात का प्रमाण है कि यह फेस्टिवल स्थानीय और वैश्विक सिनेमा को एक साथ लाने का कार्य कर रहा है। साथ ही रंगमंच, नाटक के महत्व को भी रेखांकित कर रहा है।

देवियो और सज्जनो,

हम जानते हैं कि आज का युवा अपनी प्रेरणा और पहचान के लिए सिनेमा और संगीत की ओर देखता है। ऐसे में आप सभी कलाकार अपने अभिनय, संगीत, रचनात्मकता और इस मंच के माध्यम से किए गए संवादों के द्वारा हमारे युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ने वाले सेतु बन रहे हैं। 

हमें उन्हें यह समझाना है कि हमारी विरासत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य दोनों की दिशा निर्धारित करने वाली शक्ति है।

यही भावना इस फेस्टिवल में भी झलकती है, जहाँ कॉलेजों के छात्र-छात्राएं उत्साहपूर्वक भाग लेकर अपनी रचनात्मकता और विचारशीलता का परिचय दे रहे हैं। यह सहभागिता इस बात का संकेत है कि युवा पीढ़ी सही मायनों में उस दिशा में अग्रसर है जो समाज को सशक्त, संवेदनशील और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाती है।

सिनेमा केवल ग्लैमर का माध्यम नहीं, बल्कि एक गहरी सामाजिक जिम्मेदारी भी है। फिल्में समाज की सोच और व्यवहार को दिशा देती हैं। यदि सिनेमा हिंसा, असहिष्णुता या नकारात्मकता का संदेश देगा, तो उसका प्रभाव दूरगामी और हानिकारक होगा; वहीं यदि वह प्रेम, सद्भाव और सत्य के मूल्यों को प्रस्तुत करेगा, तो वह पीढ़ियों तक प्रेरणा का स्रोत बनेगा। 

आज हमारे सामने अनेक सामाजिक चुनौतियाँ हैं, जैसे नशा-मुक्ति, पर्यावरण और जल संरक्षण, कृषि सुधार, महिला सशक्तिकरण, तथा युवाओं में रोजगार और उद्यमिता को बढ़ावा देना। 

यदि इन विषयों को सिनेमा की सशक्त भाषा और प्रभावशाली प्रस्तुति के माध्यम से समाज के सामने रखा जाए, तो उसका असर किसी सरकारी योजना से कहीं अधिक व्यापक और स्थायी हो सकता है।

अतः मैं सभी फ़िल्मकारों, निर्देशकों और लेखकों से आग्रह करता हूँ कि वे इन जन-सरोकारों को अपनी रचनात्मक दृष्टि और कथा-वस्तु का अभिन्न हिस्सा बनाएं।

साथियो,

भारतीय सिनेमा, दादा साहेब फाल्के द्वारा निर्मित वर्ष 1913 की राजा हरिश्चंद्र-जो भारत की प्रथम फिल्म थी-के समय से ही हमारी संस्कृति एवं मनोरंजन का अभिन्न अंग रहा है। भारतीय फिल्में राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाकर विचारों और मूल्यों की सशक्त संवाहक हैं, जो करोड़ों लोगों की चेतना को प्रभावित करती हैं। 

हमारी फ़िल्में न केवल हमारे देश की बहुसांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करती हैं, बल्कि हमारी भाषायी समृद्धि का भी गौरवपूर्ण प्रतीक हैं। वे हमारे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर हैं और वास्तविक अर्थों में हमारी “सॉफ्ट पावर” हैं, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सुदृढ़ करते हुए वैश्विक क्षितिज पर भारत की पहचान को और भी प्रखर बनाती हैं।

भारतीय सिनेमा क्षेत्र, जाति, पंथ एवं धर्म की सभी सीमाओं से परे है। यह हमारे उस अद्भुत राष्ट्र की झलक प्रस्तुत करता है, जो विविध संस्कृतियों, धर्मों और भाषाओं का संगमस्थल है। 

डिजिटलीकरण और आधुनिक प्रौद्योगिकियों के इस युग में भी हमारी वास्तविक शक्ति हमारी विषय-वस्तु (content) में निहित है, जो हमारी सशक्त, सजीव और बहुरंगी सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से रची-बसी है।

भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में सिनेमा केवल कला या मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि हमारी भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का दर्पण है। यह वह सशक्त साधन है जो समाज की आत्मा को अभिव्यक्त करता है और क्षेत्रीय अस्मिताओं को राष्ट्रीय पहचान से जोड़ता है। 

जब सिनेमा अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में सृजित होता है, तो वह लोक संस्कृति, लोक कथाओं और जीवन-मूल्यों को नई पीढ़ियों तक पहुँचाने का प्रभावशाली माध्यम बन जाता है।

अतः यह आवश्यक है कि हम सिनेमा को केवल मनोरंजन का साधन न मानकर, उसे भारत की सांस्कृतिक एकता, सृजनशीलता और वैश्विक पहचान के संवाहक के रूप में देखें।

भाषा किसी समाज की आत्मा और संस्कृति की अभिव्यक्ति होती है। जब हम अपनी मातृभाषा में फिल्म बनाते हैं, तो हम केवल मनोरंजन नहीं करते, बल्कि अपनी पहचान, परंपरा और मूल्यों को भी सहेजते हैं। 

यह एक गौरव कि बात है कि पंजाबी फ़िल्में अब अखिल भारतीय दर्शकों के बीच अपनी पहचान बना रही हैं। पंजाब में निर्मित कई फ़िल्में, जिनकी कहानियाँ संस्कृति, परंपरा और समकालीन विषयों पर आधारित हैं, राज्य के बाहर भी दर्शकों को आकर्षित कर रही हैं।

 जागरण फिल्म फेस्टिवल न केवल पंजाब की फिल्मों और प्रतिभाओं को, बल्कि पंजाबी भाषा को भी बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है, गैर-पंजाबी राज्यों को भी अपनी कला का प्रदर्शन करने का अवसर दे रहा है और पूरे भारत में दर्शकों की संख्या बढ़ा रहा है। यह एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, जो अभिनेताओं, फिल्म निर्माताओं और लेखकों को पंजाब की समृद्ध संस्कृति को साझा करते हुए व्यापक दर्शकों तक पहुँचने के अवसर प्रदान करती है।

देवियो और सज्जनो,

जब हम भारत को “विकसित भारत 2047” की दिशा में आगे ले जाने की बात करते हैं, तो यह केवल तकनीकी या आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से भी ज़रूरी है।

इस महोत्सव का एक और उल्लेखनीय पहलू यह है कि यह केवल पेशेवर और अनुभवी फिल्म निर्माताओं के लिए ही नहीं है। जागरण फिल्म फेस्टिवल के आयोजन में मदद करने वाले कई वालंटियर्स कुछ साल बाद स्वयं फिल्म निर्माता बनकर लौटते हैं और फिर उनकी फिल्में दुनिया के सबसे बड़े फिल्म महोत्सव - जागरण फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाती हैं।

यह इस बात का सच्चा प्रमाण है कि दैनिक जागरण अपने पाठकों के साथ किस तरह गहराई से जुड़ता है और सभी को एक मंच प्रदान करता है, जिससे वे अपने सपनों को साकार कर सकें।

मैं यही कहना चाहता हूं कि सिनेमा और पत्रकारिता जब साथ आते हैं, तो वे समाज को जागरूक, प्रेरित और एकजुट करते हैं। दैनिक जागरण फ़िल्म फेस्टिवल इसी समन्वय का जीवंत उदाहरण है।

मैं आशा करता हूं कि दैनिक जागरण की यह पहल समाज को आनंदित करने के साथ ही कई सीख भी देगी जो व्यावहारिक जीवन में बहुत काम आएगी। इसलिए यह हम सभी का दायित्व बनता है कि इस उत्सव को विचारों, संवेदनाओं और संवाद का पर्व बना दें।

धन्यवाद,

जय हिन्द!