SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASSION OF SANATAN SANSKRITIK ABHIYAN PROGRAMME AT PANCHKULA ON OCTOBER 30, 2025
- by Admin
 - 2025-10-30 20:40
 
										 ‘सनातन संस्कृति जागरण अभियान’ कार्यक्रम के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 30.10.2025, गुरूवार समयः शाम 5:00 बजे स्थानः पंचकुला 
नमस्कार!
आज “सनातन संस्कृति जागरण अभियान” के इस पावन अवसर पर आप सबके बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है। यह आयोजन न केवल हमारी सांस्कृतिक चेतना का उत्सव है, बल्कि यह उस आध्यात्मिक धारा का पुनर्जागरण भी है जिसने इस धरती को ‘विश्वगुरु भारत’ बनाया था।
मैं इस पावन एवं सार्थक आयोजन का हिस्सा बनने का अवसर प्रदान करने के लिए आयोजक संस्था विश्व जागृति मिशन के प्रति आभार और प्रशंसा व्यक्त करता हूँ।
मुझे ज्ञात हुआ है कि विश्व जागृति मिशन की स्थापना पूज्य श्री सुधांशु जी महाराज द्वारा 24 मार्च 1991 में की गई थी, जिनका जीवन मानवता, करुणा और राष्ट्रसेवा के आदर्शों का मूर्त उदाहरण है। मिशन का मूल उद्देश्य सेवा, साधना और संस्कार के माध्यम से मानव जीवन को उत्कृष्ट बनाना है।
मिशन अपने स्थापित विविध सेवा प्रकल्पों एवं भारत सहित विश्व के अनेक देशों में स्थित अपनी 88 शाखाओं, 36 आश्रमों तथा 24 देवमंदिरों के माध्यम से करोड़ों लोगों तक अपने सेवा संकल्प को पहुंचा रहा है। मिशन के अंतर्गत पूरे देश में अनाथालय, वृद्धाश्रम, गुरूकुल, विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, गौशालाएँ, संस्कार शिविर, और आध्यात्मिक सम्मेलन चलाए जा रहे हैं।
1991 से, विश्व जागृति मिशन ने सेवा, साधना और संस्कार के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। आज इस मिशन की प्रेरणादायी दृष्टि से 1 करोड़ से अधिक श्रद्धालु जुड़े हुए हैं, जिनके साथ 1 लाख से अधिक समर्पित स्वयंसेवक तन-मन-धन से सेवा में जुटे हैं।
प्रिय श्रद्धालुजनो,
आज हम सब यहां एकत्रित होकर “सनातन संस्कृति जागरण अभियान” के माध्यम से अपनी सनातन संस्कृति के पुनर्जागरण की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। सनातन धर्म भारतवर्ष की आत्मा, सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत का मूल स्रोत है।
“सनातन” शब्द का अर्थ है - “शाश्वत”, यानी जो सदा से है और सदा रहेगा। जबकि “धर्म” का अर्थ है - धारण करने योग्य, अर्थात् जो सृष्टि, समाज और व्यक्ति का आधार हो। जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश और जल की शीतलता कभी समाप्त नहीं होती, उसी प्रकार सनातन धर्म की आत्मा भी अनादि और अविनाशी है।
सनातन धर्म का मूल दर्शन ‘सत्व’, ‘रज’ और ‘तम’ रूपी ‘त्रिगुण’ के सिद्धांत पर आधारित है। ‘सत्व’ सत्य, प्रकाश और संतुलन का प्रतीक है; ‘रज’ कर्म, आकांक्षा और परिवर्तनशीलता का; जबकि ‘तम’ अज्ञान और जड़ता को दर्शाता है। जीवन का उद्देश्य इन तीनों गुणों में संतुलन साधकर सत्य और धर्म की उच्चतम चेतना तक पहुँचना है।
कर्म, अर्थात कार्य, सनातन धर्म की आत्मा है। “जैसा करोगे, वैसा फल पाओगे”, यह सिद्धांत वेद, पुराण, उपनिषद और गीता सभी में प्रतिपादित है। कर्म का संदेश है कि आज की परिस्थितियाँ हमारे पूर्वजन्म के कर्मों का परिणाम हैं, और आज किए गए कर्म हमारे भविष्य का निर्धारण करेंगे।
सनातन धर्म की जड़ें वैदिक काल, लगभग पाँच से सात हजार वर्ष पूर्व के ऋग्वैदिक युग तक जाती हैं। उपनिषद, महाभारत, रामायण और पुराणों ने इसके विचारों को गहराई दी, पर इसकी मूल अवधारणा सदैव यही रही कि धर्म समयानुसार परिवर्तित होते हुए भी अपने “सनातन” स्वरूप में निरंतर प्रवाहित रहता है।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद सनातन धर्म के चार वेद हैं, जो ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, कर्मकांड, समाज, शिक्षा और चिकित्सा आदि के मूल स्रोत हैं। वेदों को “श्रुति” अर्थात ईश्वर-प्रकाशित ज्ञान कहा जाता है। वेदों में ब्रह्मांड, प्रकृति, दैविक शक्तियाँ, मानव धर्म, समाज और ज्ञान-विज्ञान के तात्त्विक विचार सम्मिलित हैं।
700 श्लोकों की गीता को “सनातन धर्म का सार” कहा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता की सबसे बड़ी देन है कि यह हर परिस्थिति में सकारात्मक, कर्मठ, निस्वार्थ, और समत्वयोगी जीवन जीने का मार्ग दिखाती है। गीता में स्पष्ट निर्देश है, “यद्यदाचरति श्रेष्ठः तत्तदेवेतरो जनः।” यानी श्रेष्ठ पुरुष जैसा करता है, समाज उसका अनुसरण करता है।
सनातन धर्म, ‘धर्म’ (कर्तव्य व नैतिकता), ‘अर्थ’ (साधन-संपन्नता), ‘काम’ (इच्छाएं), और ‘मोक्ष’ (आत्ममुक्ति) रूपी “चार पुरुषार्थों” के माध्यम से जीवन का समग्र उद्देश्य दिखाता है। यह विचारधारा जीवन के हर चरण, समस्या व महत्वाकांक्षा के लिए स्पष्ट रूपरेखा देती है। इन चारों का संतुलित समावेश ही आदर्श मानव जीवन का आधार माना गया है।
सनातन संस्कृति का मूल भाव ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ में निहित है, जो समूचे विश्व को एक परिवार मानने की प्रेरणा देता है। यह दर्शन आज की विभाजित और संघर्षशील दुनिया के लिए एक महान संदेश है कि मानवता ही सर्वोच्च धर्म है, और सबमें ईश्वर का अंश विद्यमान है।
भारतवर्ष की पहचान उसके गहन सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों से है। हमारी सनातन संस्कृति सदैव एकता, सहिष्णुता, करुणा और प्रेम का संदेश देती रही है। इस संस्कृति में विविधता के साथ एकता, और भौतिक प्रगति के साथ आत्मिक शांति, दोनों का अद्भुत संतुलन समाहित है। यही कारण है कि भारत ने हजारों वर्षों से न केवल अपने समाज को दिशा दी, बल्कि विश्व को भी प्रकाश और प्रेरणा दी है।
सनातन संस्कृति एक जीवन पद्धति है। इसमें कर्तव्य, प्रेम, सेवा, और मूल्यबोध का मंत्र है। यह संस्कृति ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना के साथ, मानवता को जोड़ने और सबका कल्याण सुनिश्चित करने पर बल देती है।
यदि हम भारत के इतिहास पर दृष्टि डालें, तो यह स्पष्ट होता है कि समय-समय पर अनेक उतार-चढ़ाव आए, अनेक परिस्थितियों ने हमारी संस्कृति और परंपराओं की परीक्षा ली। तब किसी महान आत्मा ने जन्म लेकर इस धर्म की ज्वाला को पुनः प्रज्वलित किया और ज्ञान, सत्य तथा अध्यात्म के संदेश को पूरे विश्व में फैलाया।
देवियो और सज्जनो,
आज जब पूरी दुनिया आर्थिक, तकनीकी और भौतिक प्रगति की दौड़ में आगे बढ़ रही है, तब मनुष्य का आंतरिक संतुलन, नैतिकता और करुणा पीछे छूटते जा रहे हैं। ऐसे समय में सनातन धर्म के सत्य, अहिंसा, करुणा, सेवा, त्याग, संयम और आत्म-साक्षात्कार के मूल्य हमें आत्मचिंतन की राह दिखाते हैं।
सनातन संस्कृति यह नहीं कहती कि आधुनिकता का विरोध करो, वह कहती है, “आधुनिक बनो, परंतु अपनी जड़ों से जुड़े रहो।” यह हमें सिखाती है कि विज्ञान और अध्यात्म, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
भारतीय संस्कृति ने कभी किसी पर अपनी विचारधारा थोपने का प्रयास नहीं किया। इसने सदा कहा कि “एकम सद्विप्रा बहुधा वदन्ति” यानी सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक रूपों में कहते हैं। यह उदारता, यह सहिष्णुता, यह समावेशी दृष्टि ही भारत की सबसे बड़ी शक्ति है।
इसीलिए भारत की संस्कृति आज भी विश्व के कोने-कोने में लोगों को आकर्षित करती है। योग, ध्यान, आयुर्वेद, संस्कृत और भारतीय दर्शन, ये सब आज वैश्विक चेतना के केंद्र में हैं।
साथियो,
मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि आज हमारे युवा अपनी जड़ों की ओर लौटने की इच्छा रखते हैं। मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ कि यदि तुम अपने जीवन में धर्म, संयम, सेवा और सत्य को आधार बनाओगे, तो न केवल अपने परिवार का, बल्कि पूरे राष्ट्र का गौरव बढ़ाओगे। भारत के “विकसित भारत 2047” के सपने को साकार करने में तुम्हारी यही संस्कृति सबसे बड़ी पूंजी बनेगी।
“धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यही कारण है कि आज की पीढ़ी के लिए यह अभियान अत्यंत प्रासंगिक है।
देवियो और सज्जनो,
आज जब आधुनिकता और भौतिकता की आँधी में हमारी कई परंपराएँ, बोलियाँ, लोककथाएँ और जीवनमूल्य तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं, ऐसे समय में सनातन संस्कृति का जागरण अत्यंत आवश्यक है।
हमारी संस्कृति “सर्व धर्म समभाव” तथा “आत्मवत् सर्वभूतेषु” की भावना को अपनाकर न केवल विभिन्न संप्रदायों, मतों और परंपराओं को साथ लेकर चलती है, बल्कि सह-अस्तित्व और मेलमिलाप का मार्ग भी दिखाती है। हमारी सभ्यता सत्य, करुणा, क्षमा, अहिंसा और त्याग जैसे मूल्यों पर खड़ी है। ये शिक्षाएँ आज की विस्मृति-भरी दुनिया में और अधिक जरूरी बन जाती हैं।
यह अभियान केवल सांस्कृतिक जागृति नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय उत्थान का भी द्वार है। जिन समाजों में अपनी मूल संस्कृति और मूल्यों के प्रति जागरूकता होती है, वे न केवल आंतरिक संकटों से उबरते हैं, बल्कि बाहरी चुनौतियों का सामना भी आत्मविश्वास से करते हैं।
इस अभियान का संदेश है कि हमें अपनी संस्कृति, भाषा, साहित्य, लोकज्ञान, ऋषि-मुनियों की परंपरा और भारतीय चिंतन को सहेजना है, उसे जीना है, उसका आदान-प्रदान करना है। हमें अपनी शिक्षा नीति, परिवार व्यवस्था, समाज निर्माण, आचरण और प्रशासन में भी इन सनातन मूल्यों का समावेश करना चाहिए।
आज यदि हम सब मिलकर “सनातन संस्कृति जागरण अभियान” को अपनी-अपनी क्षमता और संसाधनों के अनुसार आत्मसात करें, तो न केवल भारत, बल्कि सारी दुनिया को शांति, सहिष्णुता, नैतिकता और आनंद का मार्ग दिखा सकते हैं। यही यज्ञ, यही तप, यही सच्ची राष्ट्र-सेवा है।
अंत में, मैं विश्व जागृति मिशन को इस अद्भुत अभियान के आयोजन के लिए हार्दिक बधाई देता हूँ। यह संगठन समाज में धर्म, सेवा, और संस्कार की जो मशाल जला रहा है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
मेरा विश्वास है कि “सनातन संस्कृति जागरण अभियान” एक संस्कृति पुनर्जागरण आंदोलन है, जो भारत को न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि सामाजिक और नैतिक रूप से भी सशक्त बनाएगा।
जब तक हमारे भीतर संस्कृति की लौ जलती रहेगी, तब तक भारत केवल एक देश नहीं, बल्कि एक विचार रहेगा।
धन्यवाद,
जय हिंद!