SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA AT THE SHOBHA YATRA ON THE OCCASSION OF PAAWAN PRAKAT DIVAS OF BHAGWAN SHRI VALMIK MAHARAJ JI HELD AT LUDHIANA ON OCTOBER 10, 2025

वाल्मीकि जयंती के उपलक्ष्य में समाजिक समरसता पर आयोजित गोष्ठी के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 10.10.2025, शुक्रवारसमयः शाम 4:30 बजेस्थानः लुधियाना

         

नमस्कार!

भगवान वाल्मीकि जी की जयंती को समर्पित आज सामाजिक समरसता पर आधारित इस गोष्ठी के अवसर पर, आप सभी के बीच उपस्थित होकर मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है। 

इस महत्वपूर्ण आयोजन में आमंत्रित करने के लिए मैं ‘दलित हेल्पलाइन’ और ‘भगवान वाल्मीकि धर्म सभा’ को हृदय से बधाई देता हूँ, जिन्होंने इस आयोजन के माध्यम से समाज को समरसता, समानता और सेवा के मार्ग पर अग्रसर करने का संकल्प लिया है।

मुझे यह जानकर अत्यंत प्रसन्नता हुई है कि ‘दलित हेल्पलाइन’ और ‘भगवान वाल्मीकि धर्म सभा’ जैसी संस्थाएँ समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए सतत और सार्थक कार्य कर रही हैं।

मुझे बताया गया है कि ‘दलित हेल्पलाइन’ की स्थापना वर्ष 2016 में की गई थी, जिसका उद्देश्य दलित एवं पिछड़े वर्ग के लोगों की समस्याओं का त्वरित समाधान करना और उन्हें शासन की कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ना है।

इस पहल के अंतर्गत एक विशेष दूरभाष नंबर (9988257311) जारी किया गया है, जिसके माध्यम से समाज के वंचित वर्ग के लोग अपनी शिकायतें और आवश्यक जानकारी साझा कर सकते हैं। यह हेल्पलाइन न केवल उनकी समस्याओं को सुनती है, बल्कि राज्य अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और आम जनता के बीच एक सेतु का कार्य कर रही है।

इस प्रकार, यह पहल प्रशासन और समाज के बीच विश्वास और सहयोग का एक सशक्त माध्यम बन गई है।

इसी प्रकार, ‘भगवान वाल्मीकि धर्म सभा’, जिसकी स्थापना वर्ष 2000 में हुई थी, ने समाज के सामाजिक और शैक्षिक उत्थान के क्षेत्र में प्रशंसनीय कार्य किया है। यह संस्था अनुसूचित जाति के बच्चों में शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने, उन्हें उच्च शिक्षा की दिशा में प्रेरित करने और समाज में आत्मविश्वास का संचार करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। इस धर्म सभा ने शिक्षा को केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता का आधार बनाया है।

इन दोनों संस्थाओं का कार्य यह सिद्ध करता है कि यदि समाज के भीतर से परिवर्तन की भावना जागृत हो जाए, तो कोई भी बाधा असंभव नहीं रहती। ये संगठन न केवल सेवा का कार्य कर रहे हैं, बल्कि एक नए, समरस और समानतापूर्ण भारत के निर्माण में अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

महर्षि वाल्मीकि भारतीय सनातन संस्कृति के अत्यंत महत्वपूर्ण महान ऋषि, कवि और विचारक माने जाते हैं। उनका जीवन, उनके कार्य और विचार आज भी भारतीय समाज के लिए मार्गदर्शक और प्रेरक बने हुए हैं। वाल्मीकि का उल्लेख न केवल भारतीय साहित्य में मिलता है, बल्कि सामाजिक पुनरुत्थान, सामाजिक समरसता और जीवनमूल्यों के प्रसार में उनका योगदान अप्रतिम है।

महर्षि वाल्मीकि जी को ‘आदिकवि’ कहा जाता है क्योंकि वे संस्कृत साहित्य के प्रथम महाकाव्य ‘रामायण’ के रचयिता हैं, जिसमें भगवान श्रीराम के आदर्श चरित्र, नीति, धर्म, और मानवता के शाश्वत आदर्शों का चित्रण किया गया है। रामायण संपूर्ण विश्व में भारतीय जीवन-दर्शन, संस्कृति और मानवता के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।

भगवान वाल्मीकि जी भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा के महान प्रतीक हैं। उन्होंने सतयुग में अक्षर और लक्ष ग्रंथों की रचना कर मानव जीवन के आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की नींव रखी। 

त्रेतायुग में उन्होंने रामायण और योग वशिष्ठ की रचना की और माता सीता के पुत्र लव-कुश का पालन-पोषण कर उन्हें धर्म, ज्ञान और वीरता का प्रशिक्षण दिया। 

द्वापर युग में उन्होंने कौरव-पांडवों का सुमेध यज्ञ संपन्न कर धर्म और न्याय की स्थापना सुनिश्चित की। उनका जीवन ज्ञान, करुणा, तपस्या और सत्य की साधना का प्रतीक है और यह मानवता के लिए सदैव प्रेरणास्रोत रहेगा। 

देवियो और सज्जनो,

आज जब हम भगवान वाल्मीकि जी की जयंती के उपलक्ष्य में सामाजिक समरसता पर इस सार्थक गोष्ठी का आयोजन कर रहे हैं तो हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि भगवान वाल्मीकि जी ने अपने जीवन और साहित्य के माध्यम से हमें समानता, करुणा, न्याय और मानवता का जो अमर संदेश दिया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों वर्ष पहले था।

उनका आदर्श हमें यह सिखाता है कि समाज की सच्ची शक्ति केवल आर्थिक समृद्धि में नहीं, बल्कि समान अवसरों, पारस्परिक सम्मान और सामाजिक न्याय में निहित है।

इसलिए, जब हम उनके जीवन का स्मरण करते हैं, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि हम अपने दैनिक जीवन में कितनी दूर तक उनके उपदेशों को अपनाते हैं। क्या हम वंचितों को समान अधिकार दे रहे हैं, क्या हम समाज में भेदभाव के स्थान पर सहयोग और संवेदना को स्थान दे रहे हैं?

भगवान वाल्मीकि जी की जयंती का उत्सव तभी सार्थक होगा, जब हम उनके आदर्शों को केवल वाणी से नहीं, बल्कि अपने व्यवहार और नीतियों में भी उतारें। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

वाल्मीकि जी ने अपनी साधना से यह सिद्ध किया कि ज्ञान और भक्ति जाति, वर्ग या परिस्थिति पर निर्भर नहीं करते। उन्होंने दिखाया कि समाज में समानता तभी संभव है जब हम मनुष्य को मनुष्य के रूप में देखें, न कि उसके जन्म या स्थिति के आधार पर।

देवियो और सज्जनो,

भगवान वाल्मीकि जी की रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानवीय जीवन का दर्पण है। इसमें कर्तव्य, त्याग, आदर्श और न्याय की शिक्षा है। रामायण का प्रत्येक पात्र, प्रत्येक प्रसंग हमें बताता है कि समाज तब ही प्रगतिशील हो सकता है, जब उसमें न्याय, सहिष्णुता और समरसता हो।

वाल्मीकि जी ने एक ऐसे समाज की परिकल्पना की थी जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर मिले, हर विचार को सम्मान मिले और हर वर्ग को गरिमा प्राप्त हो। उनकी रचना केवल एक कथा नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति का ग्रंथ है, जो सदियों बाद भी हमें दिशा देता है।

साथिये,

भारत की सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता उसकी समावेशिता है। “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना हमारे संस्कारों में रची-बसी है। हमारे संतों, कवियों और सुधारकों ने हमेशा कहा कि समाज तभी आगे बढ़ सकता है जब उसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो।

डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने कहा था, “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।” यह संघर्ष किसी वर्ग के विरुद्ध नहीं, बल्कि अन्याय और असमानता के विरुद्ध है। इसी भावना को आगे बढ़ाते हुए आज का यह आयोजन “सामाजिक समानता” के पथ पर एक महत्वपूर्ण कदम है।

आज, माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार गरीबों, वंचितों और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए पूर्ण समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है और समरस समाज की ओर अग्रसर है। वंचितों की आकांक्षाओं को पूरा करने के साथ-साथ, यह दूरदृष्टि वर्ष 2047 तक ‘विकसित भारत’ के निर्माण के लक्ष्य को साकार करने के लिए समर्पित है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण से जुड़ी समितियाँ इस दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ये समितियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि सरकार की प्रत्येक योजना का लाभ समाज के हर पात्र विद्यार्थी और नागरिक तक पहुँचे।

नई शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप, हम मातृभाषा में शिक्षा, बुनियादी साक्षरता और उच्च शिक्षा एवं रोजगार तक पहुँच के लिए लचीले मार्गों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

इसका उद्देश्य है, प्रत्येक विद्यार्थी को अपनी भाषा, अपनी संस्कृति और अपने सामर्थ्य के साथ आगे बढ़ने का अवसर देना, ताकि वे न केवल अपने जीवन को, बल्कि राष्ट्र के भविष्य को भी सशक्त बना सकें।

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास” का जो मंत्र दिया है, वह केवल नीति नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के मूल विचार का पुनः प्रकाश है।

आज प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, जन धन योजना, आयुष्मान भारत, और अमृत सरोवर योजना जैसी योजनाएँ समाज के हर तबके तक पहुँच रही हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य केवल सुविधा देना नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है, ताकि कोई भी व्यक्ति समाज की मुख्यधारा से पीछे न रह जाए।

समानता केवल अधिकार नहीं, कर्तव्य भी है। समानता का अर्थ केवल बराबरी से अवसर देना नहीं, बल्कि दूसरों के सम्मान और संवेदना का भाव जगाना भी है। यदि समाज का एक वर्ग पीछे रह जाता है, तो यह केवल उसका नहीं, पूरे राष्ट्र का नुकसान होता है।

हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम सामाजिक विषमता को मिटाने के लिए शिक्षा, संवाद और सहयोग के माध्यम से ठोस प्रयास करें। समाज तभी सशक्त बन सकता है जब उसमें हर व्यक्ति को अपने सपनों को पूरा करने का अवसर मिले।

हमारी लोककथाएँ, लोकगीत और साहित्य भी यही संदेश देते हैं कि “सब एक ही परम सत्य के अंश हैं।”

देवियो और सज्जनो,

आज जब भारत “विकसित भारत 2047” के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, तब सामाजिक समानता केवल सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता का आधार है। हमारी विविधता ही हमारी शक्ति है, और समानता उसका संतुलन है।

मैं विशेष रूप से हमारे युवाओं से कहना चाहता हूँ कि आपके हाथों में भारत का भविष्य है। आप जब समानता, न्याय और करुणा के मूल्यों को अपने जीवन में अपनाएँगे, तब समाज में सच्चा परिवर्तन आएगा। आपको चाहिए कि आप जाति, वर्ग या भाषा से ऊपर उठकर मानवता के आधार पर सोचें और कार्य करें।

जैसे भगवान वाल्मीकि जी ने अपने जीवन से दिखाया कि हर व्यक्ति में परिवर्तन की क्षमता होती है, वैसे ही आज की युवा पीढ़ी भी भारत को “समान अवसरों वाला राष्ट्र” बना सकती है।

अंत में, मैं दलित हेल्पलाइन और भगवान वाल्मीकि धर्म सभा को इस आयोजन के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। आपके प्रयास समाज के हर वर्ग को समान सम्मान और अधिकार दिलाने की दिशा में मील का पत्थर सिद्ध होंगे।

आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि “हम किसी को छोटा या बड़ा नहीं मानेंगे, हर मनुष्य में ईश्वर का प्रकाश देखेंगे, और मिलकर ऐसा समाज बनाएँगे, जहाँ समानता केवल शब्द नहीं, जीवन का सत्य बने।”

भगवान वाल्मीकि जी के पावन जीवन से प्रेरणा लेते हुए हम सब उनके दिखाए मार्ग पर आगे बढ़ें, सेवा, समरसता और सत्य के साथ।

धन्यवाद,

जय हिन्द!