SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF 113TH ANNUAL CELEBRATION OF GURUKUL KURUKSHETRA ON OCTOBER 16, 2025.

गुरूकुल कुरूक्षेत्र के 113वें वार्षिक समारोह के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः  16.10.2025, गुरूवारसमयः  सुबह 9:30 बजेस्थानः  कुरूक्षेत्र

  

नमस्कार!

आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र की इस पवित्र और ऐतिहासिक भूमि पर उपस्थित होकर मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है। आज का यह अवसर भारत की संस्कार-संपन्न शिक्षा परंपरा और संघर्षशील राष्ट्र-निर्माण की भावना के पुनः स्मरण का पर्व है।

मैं आप सभी को गुरुकुल कुरुक्षेत्र के 113वें वार्षिक महोत्सव के भव्य आयोजन पर बधाई देता हूँ, साथ ही मैं आचार्य देवव्रत जी सहित समस्त गुरुकुल परिवार का आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे इतने व्यवस्थित और सुन्दर प्रांगण में आने का शुभ अवसर प्रदान किया।

इस प्रतिष्ठित गुरुकुल कुरुक्षेत्र का इतिहास भारत की आदर्श शिक्षा परंपरा से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1912 में जब स्वामी श्रद्धानंद जी महाराज ने इस गुरुकुल की स्थापना की थी, तब उनका उद्देश्य मात्र शिक्षा देना नहीं था, बल्कि चरित्र, संस्कृति, और राष्ट्रभावना से युक्त नागरिकों का निर्माण करना भी था।

यह वही काल था जब भारत परतंत्र था, परंतु भारतीय चिंतन स्वतंत्र था। गुरुकुल कुरुक्षेत्र ने उसी चिंतन को दिशा दी और ‘स्वदेशी शिक्षा’, ‘स्वावलंबन’ और ‘संस्कार आधारित जीवन’ की भावना को जन-जन तक पहुँचाया।

यह गुरुकुल, स्वामी दयानंद सरस्वती के उस महान सपने का साकार रूप है जिसमें उन्होंने शिक्षा को वेदों के आलोक में, जीवन के व्यावहारिक और आध्यात्मिक दोनों पक्षों का समन्वय मानकर देखा था।

मुझे ज्ञात हुआ है कि इस 113 वर्ष पुराने आवासीय शिक्षण संस्थान में, भारत के अठारह राज्यों से आए लगभग 1500 विद्यार्थी अपनी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यह तथ्य अपने आप में इस गुरुकुल की राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक समरसता का अद्भुत प्रतीक है। 

यहाँ विविध भाषाएँ, परंपराएँ और संस्कृतियाँ एक ही छत्रछाया में मिलकर उस भारत की झलक प्रस्तुत करती हैं, जो “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के आदर्श को साकार करता है। इन विद्यार्थियों का एक साथ रहना, सीखना और संस्कारित होना गुरुकुल की उस भावना को जीवंत रखता है, जो शिक्षा को केवल ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र, अनुशासन और राष्ट्रभावना का संगम मानती है।

देवियो और सज्जनो,

गुरुकुल के इन भव्य भवनों के निर्माण में महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत जी ने कितना पसीना बहाया है, यह सहज ही अनुभव किया जा सकता है। जैसा कि मुझे बताया गया कि उन्होंने अपने जीवन के 35 वर्ष इस गुरुकुल को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में लगा दिये। निश्चित तौर पर आज यह गुरुकुल देश-दुनिया के मानचित्र पर अपनी अलग पहचान रखता है जिसका श्रेय माननीय आचार्य देवव्रत जी को जाता है। उन्होंने दृढ़ इच्छाशक्ति, दूरगामी सोच और कड़ी मेहनत से गुरुकुल को यह नवस्वरूप प्रदान किया है, जिसकी जितनी तारीफ की जाए, वह कम होगी।

मुझे बताया गया कि यहां पर बच्चों को प्राचीन वैदिक संस्कारों के साथ आधुनिक तकनीकी शिक्षा दी जा रही है। इस गुरूकुल के परीक्षा परिणाम व खेलों इत्यादि की उपलब्धियां अतुलनीय व अनुकरणीय हैं। प्रति वर्ष गुरूकुल में परीक्षा परिणामों में गुणोत्तर वृद्धि हो रही है। गुरूकुल के अनेक छात्रों का NDA, NIT, IIT, और NEET की परीक्षा में उत्तीर्ण होना इसके सुखद भविष्य की ओर इशारा करता है। गुरूकुल के छात्रों ने भिन्न-भिन्न स्पर्धाओं में पदक प्राप्त कर देश व विदेश में विशिष्ट ख्याति अर्जित की है।

गुरूकुल के छात्र निशानेबाजी व घुड़सवारी में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लेहा मनवा चुके हैं। गुरूकुल का असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाता चिकित्सालय, उन्नत गौशाला, आर्ष महाविद्यालय, प्राकृतिक कृषि, अक्षय ऊर्जा संरक्षण आदि प्रकल्प समाज को सही दिशा प्रदान कर मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।

गुरुकुल के विशाल क्रीड़ांगन, जिम्नेजियम हाल, तरणताल, निशानेबाजी केन्द्र, घुड़सवारी, कम्प्युटर प्रयोगशालाएं, पुस्तकों से समृद्ध वातानुकुलित पुस्तकालय तथा आधुनिक भाषा व विज्ञान प्रयोगशालाओं ने इसे अन्तर्राष्ट्रीय मानक संगठन (ISO:9001-2008) द्वारा अभिनन्दित शिक्षण संस्थान बनाया है। 

बड़े ही हर्ष का विषय है कि अपने सशक्त आधारभूत ढाँचे, समृद्ध विरासत एवं उत्कृष्ट परीक्षा परिणाम के कारण यह गुरुकुल पिछले नौ वर्षों से एजूकेशन वर्ल्ड द्वारा नंबर 1 रैंक पर अपनी गरिमा कायम किए हुए है। गुरुकल में भारतीय संस्कृति, स्वस्थ परम्पराएँ, भारतीयता, राष्ट्रीयता व नैतिक मूल्य अभी भी सुरक्षित हैं।

राष्ट्र की शैक्षिक प्रगति में कदम बढ़ाते हुए इस संस्थान ने आज 113 वर्षों की लम्बी ऐतिहासिक यात्रा पूर्ण कर शिक्षा के साथ-साथ प्राकृतिक खेती व प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं। यह गुरुकुल एक विशालकाय वट वृक्ष का रुप धारण कर चुका है, जिसकी प्रत्येक शाखा अपने गौरवमयी इतिहास, स्वस्थ वर्तमान और उज्ज्वल भविष्य का प्रतीक बन चुका है।

देवियो और सज्जनो,

हमारे शास्त्रों में कहा गया है ”सा विद्या या विमुक्तये” अर्थात् वही शिक्षा सच्ची है जो मनुष्य को अज्ञान, भय और बंधनों से मुक्त करे। गुरुकुल प्रणाली में शिक्षा केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं थी। वह जीवन जीने की कला थी, जहाँ गुरु केवल शिक्षक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और जीवन-प्रेरक होते थे; और शिष्य केवल विद्यार्थी नहीं, बल्कि अनुसंधानकर्ता और साधक होते थे।

गुरुकुल जीवन का उद्देश्य सत्य की खोज, आत्मानुशासन, प्रकृति के साथ संतुलन, और समाज के प्रति दायित्वबोध हुआ करता था। वहीं आधुनिक शिक्षा प्रणाली में जहाँ तकनीकी दक्षता, प्रबंधन और विज्ञान की महत्ता है, वहीं गुरुकुल परंपरा हमें यह सिखाती है कि ज्ञान का अंतिम उद्देश्य ‘मानवता का उत्थान’ होना चाहिए।

शिक्षा का लक्ष्य केवल रोजगार नहीं, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण था। आचार, व्यवहार, वाणी और विचार, सभी में सच्चाई और संयम का अभ्यास सिखाया जाता था।

गुरुकुल जंगलों और प्रकृति के बीच स्थित होते थे, जहाँ विद्यार्थी पर्यावरण के साथ जुड़कर जीना सीखते थे। यह आज की सस्टेनेबल लिविंग की भावना का ही प्राचीन रूप था।

शिष्य स्वयं अपने कार्य करते थे, रसोई, सफाई, खेती, गौ-सेवा। ये सभी गतिविधियां शिक्षा का अभिन्न भाग था। यह ‘डिग्री’ नहीं, बल्कि जीवन का अनुशासन सिखाने की प्रक्रिया थी।

गुरुकुल में कोई जाति, वर्ग या संपत्ति का भेद नहीं था। सब शिष्य एक समान जीवन जीते थे। यह भारत के सामाजिक समरसता के आदर्श को मूर्त रूप देता था।

देवियो और सज्जनो,

आज हम ‘विकसित भारत 2047’ की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हमारे पास तकनीकी संसाधन हैं, डिजिटल क्रांति है, वैश्विक प्रतिस्पर्धा है, परंतु इन सबके बीच मूल्य आधारित शिक्षा की आवश्यकता पहले से अधिक है। गुरुकुल प्रणाली का सबसे बड़ा संदेश यही है कि, ‘‘ज्ञान और संस्कार का संतुलन ही सभ्यता की पहचान है।’’ यदि आधुनिक शिक्षा हमें प्रगति के साधन देती है, तो गुरुकुल परंपरा हमें प्रगति का उद्देश्य बताती है।

आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी इसी दिशा में अग्रसर है, जहाँ ज्ञान के साथ भारतीय मूल्य, कला, योग, नैतिकता, पर्यावरण-जागरूकता और स्वावलंबन को भी शिक्षा का अंग बनाया गया है। यह नीति गुरुकुल परंपरा की आधुनिक व्याख्या है, जहाँ गुरु केवल पाठ पढ़ाने वाला नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक होता था, उसी भावना को यह नीति पुनः प्रतिष्ठित करती है।

इस नीति में विद्यार्थी को केवल परीक्षा का केंद्र नहीं, बल्कि शिक्षा प्रक्रिया का केंद्र माना गया है। उसे अपनी रुचियों, क्षमताओं और जीवन के उद्देश्यों के अनुरूप विषय चुनने की स्वतंत्रता दी गई है।

यह नीति शिक्षा को लचीला, व्यावहारिक और समग्र बनाती है। यह “One Size Fits All”की पुरानी सोच को समाप्त कर, बहुआयामी और अंतर्विषयी शिक्षा का मार्ग खोलती है। आज एक विद्यार्थी इंजीनियरिंग पढ़ते हुए संगीत या पर्यावरण अध्ययन भी कर सकता है। यही शिक्षा का वास्तविक लोकतंत्रीकरण है।

यह नीति बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा देने की वकालत करती है, क्योंकि यह मानती है कि जब बच्चा अपनी भाषा में सोचता और सीखता है, तभी उसकी रचनात्मकता और आत्मविश्वास दोनों विकसित होते हैं। यहाँ भारतीय भाषाओं को केवल शिक्षण का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता का आधार माना गया है।

प्रिय विद्यार्थियो,

हर माता-पिता का सपना होता है कि उनका बच्चा जीवन में आगे बढ़े। इसी उद्देश्य से वे अपने बच्चों को गुरुकुल या उत्तम शिक्षण संस्थानों में शिक्षा दिलाते हैं। गुरुकुलीय शिक्षा व्यवस्था में बच्चों का शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक विकास समग्र रूप से होता है। गुरुकुल में मिलने वाला संतुलित आहार, शुद्ध दूध-घी, प्राकृतिक वातावरण और विद्वानों के मार्गदर्शन से छात्रों में ज्ञान के साथ-साथ प्रेरणा, प्रेम, करुणा, अनुशासन, राष्ट्रप्रेम और भारतीय संस्कारों का भी विकास होता है।

विद्या प्राप्ति के इच्छुक विद्यार्थियों को जीवन के सुख और आराम को थोड़े समय के लिए त्यागकर पूरी लगन और मेहनत से शिक्षा प्राप्त करने पर ध्यान देना चाहिए। प्रगति के पथ पर चलने के लिए कठोर परिश्रम, अनुशासन और गुरुजनों के निर्देशों का पालन बेहद जरूरी है। ऐसा करने वाला विद्यार्थी अपने लक्ष्य को निश्चित रूप से प्राप्त करता है और समाज के लिए प्रेरणा बनता है।

आप भारत के भविष्य हैं। आपके हाथों में केवल कैरियर नहीं, बल्कि संस्कारयुक्त राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी है। अपने जीवन में ‘गुरुकुल भावना’ को जीवित रखिए अर्थात् गुरु का सम्मान, श्रम का मूल्य, और समाज के प्रति संवेदनशीलता को अपने आचरण में उतारिए।

जब आप तकनीकी रूप से दक्ष और नैतिक रूप से सजग बनेंगे, तभी भारत विश्वगुरु के अपने प्राचीन स्थान को पुनः प्राप्त कर सकेगा।

गुरुकुल कुरुक्षेत्र केवल एक संस्था नहीं, बल्कि राष्ट्र के सांस्कृतिक आत्मबल का प्रतीक है। इसने हमें यह सिखाया है कि ज्ञान का प्रकाश तभी सार्थक है जब वह संस्कार के दीपक से प्रज्वलित हो। और शिक्षा तभी पूर्ण है जब वह मनुष्य को बेहतर इंसान बनाए।

मुझे विश्वास है कि यह गुरुकुल आगे भी इसी भावना से नई पीढ़ी को संस्कारित करता रहेगा, और भारत को एक नैतिक, वैज्ञानिक और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।

मैं पुनः गुरुकुल के वार्षिक महोत्सव पर गुरुकुल के तमाम अधिकारियों, छात्रों एवं अभिभावकों को बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!