SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION 16TH ALL INDIA CONFERENCE OF PRINCIPALS OF BHAVANS SECONDARY & SR. SECONDARY SCHOOL AT AMRITSAR ON NOVEMBER 6, 2025.

भवन्स सेकेंडरी और सीनियर सेकेंडरी स्कूलों के ‘16वें ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस ऑफ प्रिंसिपल्स’ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 06.11.2025, गुरूवारसमयः दोपहर 1:00 बजेस्थानः पंजाब राजभवन, वर्चुअल

  

नमस्कार!

मुझे आज अमृतसर के पवित्र नगर में स्थित भारतीय विद्या भवन, अमृतसर केन्द्र में आयोजित इस ‘16वें ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस ऑफ प्रिंसिपल्स’ को संबोधित करते हुए अत्यंत हर्ष और गर्व का अहसास हो रहा है।

मैं समझता हूं कि यह न केवल देश के विभिन्न भागों से आए भवन्स विद्यालयों के प्राचार्यों का संगम है, बल्कि यह भारतीय शिक्षा, संस्कृति और मूल्य-आधारित शिक्षण की निरंतर यात्रा का एक सशक्त प्रतीक भी है।

मुझे बताया गया है कि भवन्स स्कूलों के प्राचार्यों का यह अखिल भारतीय सम्मेलन प्रत्येक वर्ष देश के विभिन्न भागों में आयोजित किया जाता है। इस वर्ष के सम्मेलन का विषय है, “Expanding Horizons without Losing the Roots” अर्थात् “अपनी जड़ों को खोए बिना क्षितिज का विस्तार।” इसका आशय है कि हमें प्रौद्योगिकी और आधुनिकता की दिशा में निरंतर आगे बढ़ते हुए भी अपने मूल संस्कारों और परंपराओं से जुड़ाव बनाए रखना चाहिए।

मेरा मानना है कि ऐसे विमर्श समय-समय पर होना आवश्यक है ताकि हमारे शिक्षाविद बदलते वैश्विक परिदृश्य के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ सकें। मैं इस सम्मेलन के सफल और सार्थक विचार-विमर्श की कामना करता हूँ, जिससे देश के शैक्षिक भविष्य को नई दिशा मिले। साथ ही, मैं भवन्स की केंद्रीय नेतृत्व टीम को इस महत्वपूर्ण पहल के लिए हृदय से बधाई देता हूँ।

देवियो और सज्जनो,

भारतीय विद्या भवन की स्थापना वर्ष 1938 में कुलपति डॉ. के. एम. मुनशी जी द्वारा महात्मा गांधी जी के आशीर्वाद से हुई थी। उस समय भारत स्वतंत्रता के संग्राम में था, और इस संस्था का उद्देश्य केवल शिक्षा प्रदान करना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पुनर्जागरण की भावना को जन-जन तक पहुँचाना था।

डॉ. मुनशी ने कहा था, “शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह युवाओं को जीवन से जोड़े, उनमें मूल्यों की भावना विकसित करे, और उन्हें एक बेहतर कल के अच्छे नागरिक बनने में सहायता प्रदान करे।”

इसी विचारधारा के अनुरूप, भारतीय विद्या भवन ने शिक्षा को केवल ज्ञान अर्जन का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कार, चरित्र और राष्ट्रभावना के विकास का साधन माना। आज, देश और विदेश में फैले 300 से अधिक भवन्स केन्द्र और लगभग 125 विद्यालय इस संस्था की उस दीर्घदृष्टि के साक्षी हैं, जिसने “भारतीयता के मूल्यों” को आधुनिक शिक्षा के साथ जोड़ने का कार्य किया है।

भवन्स एस. एल. पब्लिक स्कूल, अमृतसर की बात करें तो यह पंजाब का एकमात्र भवन्स विद्यालय है जिसकी स्थापना वर्ष 1991 में उस समय के पंजाब के राज्यपाल श्री जयसुख लाल हाथी जी की प्रेरणा से की गई थी। 

यह हर्ष का विषय है कि इस विद्यालय को यह सम्मेलन दूसरी बार आयोजित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। पहली बार यह अवसर दस वर्ष पूर्व मिला था। यह इस विद्यालय की संगठनात्मक दक्षता और शिक्षकों की निष्ठा एवं उत्तम कार्य निष्पादन का प्रमाण है।

यह विद्यालय न केवल शैक्षणिक क्षेत्र में बल्कि खेल और सह-शैक्षणिक गतिविधियों में भी निरंतर उत्कृष्ट उपलब्धियाँ प्राप्त करता आ रहा है। विद्यालय के विद्यार्थी और शिक्षक अनेक पुरस्कारों और सम्मान से अलंकृत हो चुके हैं। पिछले दस वर्षों में इस विद्यालय ने सर्वाधिक सी.बी.एस.ई. सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी हासिल किया है।

भारतीय विद्या भवन ने पिछले आठ दशकों में राष्ट्र-निर्माण के क्षेत्र में जो योगदान दिया है, वह अनुकरणीय है। चाहे वह संस्कृत, कला, संगीत, भारतीय दर्शन, विज्ञान या प्रबंधन शिक्षा हो, भवन्स ने हर क्षेत्र में उत्कृष्टता की मिसाल कायम की है।

यह संस्था भारतीयता की उस आत्मा को पोषित करती है, जो कहती है “आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः” अर्थात् सभी दिशाओं से हमारे पास श्रेष्ठ विचार आएँ।

इसी भावना से भवन्स ने पूर्व और पश्चिम, परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु बनाया है। यह संस्था इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति आधुनिकता के विरोध में नहीं, बल्कि उसकी प्रेरणा में निहित है।

देवियो और सज्जनो,

भवन्स की सबसे बड़ी विशेषता यह रही है कि यहाँ शिक्षा केवल पुस्तकों और अंकों तक सीमित नहीं है। यहाँ शिक्षा का लक्ष्य है, मनुष्य निर्माण। 

यहाँ विद्यार्थियों को यह सिखाया जाता है कि जीवन में सफलता का अर्थ केवल करियर में ऊँचाई प्राप्त करना नहीं, बल्कि ईमानदारी, सहिष्णुता, कर्तव्य-परायणता और करुणा जैसे मानवीय गुणों का विकास करना है।

भारतीय संस्कृति में कहा गया है, “विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।” अर्थात, विद्या हमें विनम्र बनाती है और वही विनम्रता हमें योग्य बनाती है।

आज जब हम तकनीकी और डिजिटल युग में प्रवेश कर चुके हैं, तब इस मूल्य-आधारित शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है। शिक्षा के माध्यम से हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे विद्यार्थी केवल “स्मार्ट” ही नहीं, बल्कि “संस्कारवान” और “संवेदनशील नागरिक” भी बनें।

मैं इस सम्मलेन में उपस्थित सभी प्राचार्यों को विशेष बधाई देता हूँ, जो अपने विद्यालयों में केवल प्रशासक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत के रूप में कार्य कर रहे हैं।

आपके नेतृत्व में विद्यालय केवल संस्थान नहीं रहते, बल्कि “संस्कार की प्रयोगशालाएँ” बन जाते हैं, जहाँ प्रत्येक विद्यार्थी के भीतर एक संभावनाशील नागरिक आकार लेता है।

महात्मा गांधी जी ने कहा था, “शिक्षा से मेरा अर्थ है, बच्चे और मनुष्य, दोनों के भीतर विद्यमान श्रेष्ठतम गुणों का सर्वांगीण विकास यानी शरीर, मन और आत्मा, तीनों का समन्वित उन्नयन।” यह भाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना स्वतंत्रता से पूर्व था।

मैं समझता हूं कि शिक्षा तभी सार्थक है जब वह व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाए, सोचने की स्वतंत्रता दे, और उसे समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराए। इस दृष्टि से, प्राचार्य समाज-निर्माण के सशक्त वाहक हैं।

साथियो,

आज भारत नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से एक ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। यह नीति राष्ट्रीय मूल्यों, कौशल-आधारित शिक्षण, अनुसंधान और नवाचार को केंद्र में रखती है।

इस नीति की भावना वही है, जिसे भारतीय विद्या भवन ने दशकों पहले अपने आदर्श के रूप में अपनाया था, “भारतीयता में निहित आधुनिकता।”

आज जब शिक्षा वैश्विक प्रतिस्पर्धा के युग में प्रवेश कर चुकी है, तब यह और भी आवश्यक है कि हम “ज्ञान” के साथ-साथ “मूल्य” और “मानवता” को भी समान महत्व दें।

मुझे विश्वास है कि यह सम्मेलन इस दिशा में विचार-विमर्श और नवाचार का मंच बनेगा, जहाँ आप सभी अपने अनुभवों को साझा कर शिक्षा की गुणवत्ता को और ऊँचाइयों तक ले जाने की योजना बनाएंगे।

प्रिय प्रचार्यों,

आज का युग तकनीक का युग है। भारत आज न केवल एक प्राचीन सभ्यता और सांस्कृतिक धरोहर वाला देश है, बल्कि आर्थिक, तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टि से भी विश्व के अग्रणी देशों में अपना स्थान बना चुका है। 

हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से विकसित हो रही है, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हमारे योगदान की पहचान हो रही है, और वैश्विक मंच पर भारत की आवाज़ और प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। हम शिक्षा, नवाचार, स्टार्टअप्स, हरित ऊर्जा और डिजिटल क्षेत्रों में नए मानक स्थापित कर रहे हैं। यही कारण है कि आज भारत विश्व के शीर्ष देशों में अपनी शक्ति, प्रतिभा और नेतृत्व के लिए सम्मानित है।

आज जब हम “विकसित भारत 2047” के महान लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं, तब देश की नई दिशा और नई परिभाषा गढ़ने में शिक्षकों की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। भारत का भविष्य कक्षाओं में गढ़ा जाता है, और आप सब उस भविष्य के निर्माता हैं।

शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण की सबसे सशक्त प्रक्रिया है। “अमृत काल” हमारे लिए अवसर लेकर आया है, ऐसा अवसर जिसमें हम एक आत्मनिर्भर, सशक्त और नैतिक भारत की नींव रख सकते हैं। “विकसित भारत 2047” एक राष्ट्रीय संकल्प है, एक ऐसे भारत का जो समृद्ध हो, सक्षम हो, और मूल्यों से संपन्न हो।

आज जब कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटलीकरण और नवाचार की तेज़ लहरें शिक्षा जगत में गहरा परिवर्तन ला रही हैं, तब यह आवश्यक है कि हम अपने विद्यार्थियों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के साथ-साथ उन्हें नैतिकता, संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों से भी समृद्ध करें। क्योंकि ज्ञान तभी सार्थक होता है, जब वह विवेक, मूल्य और करुणा के साथ जुड़ा हो। 

विकसित भारत के निर्माण में आपकी भूमिका केवल शिक्षक की नहीं, बल्कि “नेशन बिल्डर” की है। आप बच्चों में जिज्ञासा जगाते हैं, सोचने की शक्ति विकसित करते हैं, और उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाते हैं। याद रखिए, हर प्रेरित विद्यार्थी, एक सशक्त भारत की नींव है।

आने वाले वर्षों में हमें शिक्षा को “समावेशी, नवोन्मेषी और मूल्य-आधारित” बनाना है। यदि हम अपने विद्यार्थियों को यह सिखा दें कि हर कार्य में निष्ठा, सेवा और अनुशासन ही सफलता का मार्ग है, तो विकसित भारत का स्वप्न स्वतः साकार हो जाएगा।

मेरा मानना है कि आपके हाथों में भारत का भाग्य है। जब आप किसी विद्यार्थी में आत्मविश्वास जगाते हैं, तो आप केवल एक जीवन नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र को दिशा दे रहे होते हैं। आपका हर शब्द, हर पाठ, हर प्रेरणा भारत के उज्ज्वल भविष्य की ध्वनि है।

आप सभी उस ज्योति के रक्षक हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को आलोकित करती है। आप केवल शिक्षण नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में सहभागी हैं।

मैं समझता हूं कि आपका यह सम्मेलन केवल विचार-विमर्श का मंच नहीं, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा चेतना को पुनः सशक्त करने का एक प्रयास है।

मुझे विश्वास है कि इस सम्मेलन से निकलने वाले विचार और संकल्प हमारे बच्चों के लिए एक उज्ज्वल, संस्कारित और आत्मविश्वासी भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

मैं भारतीय विद्या भवन अमृतसर केन्द्र और इस आयोजन से जुड़े सभी शिक्षाविदों, आयोजकों तथा प्रतिभागियों को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।

आपकी यह यात्रा शिक्षा के माध्यम से राष्ट्र के स्वर्णिम भविष्य के निर्माण की दिशा में निरंतर अग्रसर रहे, यही मेरी कामना है।

धन्यवाद,

जय हिंद!