SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF CELEBRATION OF 100 YEARS OF HOCKEY IN INDIA AT CHANDIGARH ON NOVEMBER 7, 2025.

भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 07.11.2025, शुक्रवारसमयः दोपहर 12:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

आज हम सब यहाँ भारत में हॉकी के 100 वर्ष पूर्ण होने के राष्ट्रीय उत्सव के ऐतिहासिक अवसर के साक्षी बनने जा रहे हैं, जो भारत की खेल यात्रा में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित होने जा रहा है। यह उस भावना का उत्सव है जिसने हमारे देश की आत्मा में गर्व, एकता और अनुशासन का संचार किया।

मैं इस आयोजन के लिए ‘हॉकी चंडीगढ़’ और इससे जुड़े सभी आयोजकों, खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों एवं खेलप्रेमियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। आपने इस उत्सव को केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि खेल भावना, इतिहास और प्रेरणा के संगम का पर्व बना दिया है।

हॉकी चंडीगढ़, जो हॉकी इंडिया से संबद्ध इकाई है, की स्थापना 1959 में कैप्टन आर.एस. मेहता के नेतृत्व में की गई थी। इसके बाद 

श्री आर.के. गुप्ता, श्री जे.एस. संधू और पंजाब के पूर्व डीजीपी डॉ. चंदर शेखर ने संगठन को आगे बढ़ाया। वर्तमान में श्री करण गिल्होत्रा अध्यक्ष और डॉ. पी.जे. सिंह वरिष्ठ उपाध्यक्ष के रूप में इसका नेतृत्व कर रहे हैं। 

स्वर्गीय श्री एस.एन. वोहरा, जो संस्थापक महासचिव रहे और वर्ष 2000 तक सेवाएं दीं, चंडीगढ़ में हॉकी के आधार स्तंभ माने जाते हैं। उनके निधन के बाद उनके पुत्र श्री वाई.पी. वोहरा और अब श्री अनिल वोहरा महासचिव के रूप में इस विरासत को तीसरी पीढ़ी में आगे बढ़ा रहे हैं।

देवियो और सज्जनो,

हॉकी के शुरुआती रूप हजारों सालों से विभिन्न सभ्यताओं में खेले जाते रहे हैं। मिस्र, ग्रीस, फारस और रोम की प्राचीन सभ्यताओं में इस खेल की तरह के खेल खेले जाते थे। 

लेकिन आधुनिक हॉकी की शुरुआत 19वीं शताब्दी के अंत में इंग्लैंड में हुई। 1875 में लंदन में पहली बार हॉकी क्लब की स्थापना हुई। हॉकी एसोसिएशन की स्थापना 1886 में हुई, जिसने इस खेल के मानक नियम बनाए और इसे व्यवस्थित रूप से खेला जाने लगा।

भारत में हॉकी ब्रिटिश शासन के दौरान आई। ब्रिटिश सैनिकों और अधिकारियों ने इसे भारत में लाया, और 19वीं सदी के अंत में यह लोकप्रिय होने लगी। भारत में पहला हॉकी क्लब 1885-86 में कोलकाता में स्थापित किया गया था।

दुनिया के अनेक विकसित देशों ने समय-समय पर अपनी सुविधा के अनुसार हॉकी के नियमों और प्रारूप में परिवर्तन किए, फिर भी भारत आज भी इस खेल की आत्मा और उत्कृष्टता का अग्रदूत बना हुआ है। नियम बदल सकते हैं, तकनीकें विकसित हो सकती हैं, पर भारतीय हॉकी का जज़्बा, कौशल और परंपरा आज भी इसे विश्व पटल पर विशिष्ट बनाते हैं।

साथियो,

चाहे हमारे देश में क्रिकेट सहित अन्य कई लोकप्रिय खेल खेले जाते हैं लेकिन हॉकी आज भी देशवासियों के दिल के सबसे करीब है। हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल माना जाता है। यह भारतीय खेल जगत की एक ऐसी धरोहर है जिसने पूरे विश्व में भारत का परचम लहराया है और इसका इतिहास हमें गर्व से भर देता है।

1928 में भारत ने अपने पहले ओलंपिक खेल में भाग लिया और वहाँ से हॉकी में भारत का वर्चस्व शुरू हुआ। भारतीय हॉकी का स्वर्णिम युग 1928 से 1956 तक का समय था, जब भारतीय टीम ने ओलंपिक खेलों में लगातार छह स्वर्ण पदक जीते। 

इस दौर में हॉकी का जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया। ध्यानचंद का खेल ऐसा था कि विरोधी टीमें उनकी हॉकी स्टिक को जाँचने लगती थीं, यह देखने के लिए कि कहीं उसमें कोई जादू तो नहीं है। मेजर ध्यानचंद ने 1926 से 1949 तक अपने अंतरराष्ट्रीय करियर के दौरान कुल 185 मैचों में 570 गोल किए।

ऐसा कहा जाता है कि जर्मन नेता एडोल्फ हिटलर मेजर ध्यानचंद की कुशलता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें जर्मन की नागरिकता और जर्मन सेना में कर्नल का पद देने की पेशकश की, जिसे ध्यानचंद ने देश प्रेम की खातिर अस्वीकार कर दिया।

मेजर ध्यानचंद के अलावा यदि किसी दूसरे हॉकी खिलाड़ी को सबसे ज्यादा याद किया जाता है तो वह थे बलबीर सिंह सीनियर। उन्होंने 1952 में ओलंपिक में पुरुष हॉकी फ़ाइनल में सर्वाधिक 5 गोल करने का रिकॉर्ड बनाया। भारत सरकार ने बलबीर सिंह सीनियर को 1957 में पद्मश्री पुरूस्कार से सम्मानित किया। 

चंडीगढ़ में रहने वाले और चंडीगढ़ में ही अपनी अंतिम सांस लेने वाले बलबीर सिंह सीनियर का भारतीय हॉकी के उत्थान में योगदान न केवल स्वर्ण पदकों की संख्या से मापा जाता है, बल्कि उनके खेल के प्रति समर्पण, रणनीतिक कौशल, और नेतृत्व क्षमता के कारण भी उन्हें भारतीय हॉकी के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। 

भारतीय हॉकी टीम ने ओलंपिक में अब तक कुल 13 पदक जीते हैं जिनमें से 8 स्वर्ण, 1 रजत और 4 कांस्य पदक हैं। इसके अलावा इसने हॉकी विश्वकप में कुल 3 पदक जीते हैं जिनमें 1 स्वर्ण, 1 रजत और 1 कांस्य पदक शामिल हैं।

1980 के बाद भारतीय हॉकी टीम को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर संघर्ष करना पड़ा। कई कारण थे - जैसे कि हॉकी के नियमों में बदलाव, नई तकनीकों का अभाव, और आर्टीफिशियल टर्फ की कमी आदि। लेकिन आज हमारे यशस्वी प्रधानममंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में खेलों को जो प्रोत्साहन दिया जा रहा है उसके नतीजे आप सभी के सामने हैं।

पिछले तकरीबन एक दशक में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं। साल 2014 के मुकाबले देश का खेल बजट लगभग 3 गुना बढ़ाया गया है। 

खेलो इंडिया जैसी योजनाओं के तहत युवा खिलाड़ियों को विश्वस्तरीय प्रशिक्षण, सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। पूरे देश में आधुनिक हॉकी स्टेडियम और सिंथेटिक टर्फ तैयार किए जा रहे हैं, ताकि खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं मिल सकें और वे अपनी प्रतिभा को निखार सकें। 

खेलों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाया गया है। खेल को उसी श्रेणी में रखा गया है जैसे विज्ञान, कॉमर्स, गणित या दूसरी पढ़ाई; अब वह अतिरिक्त गतिविधि नहीं माने जाएंगे बल्कि खेलों का उतना ही महत्व होगा जितना बाकी विषयों का। 

चंडीगढ़ प्रशासन ने भी खेलों के प्रति सराहनीय कदम उठाए हैं जिसके तहत एक प्रगतिशील खेल नीति शुरू की है। इस खेल नीति के अनुसार, ओलंपिक में स्वर्ण पदक विजेता को 6 करोड़ रूपए का नकद पुरस्कार, रजत पदक विजेताओं को 4 करोड़ रुपए और कांस्य पदक विजेताओं को 2.5 करोड़ रुपए मिलेंगे। 

अब जब हम माननीय प्रधानमंत्री जी के विकसित भारत 2047 की राह पर अग्रसर हैं तो मेरा पूर्ण विश्वास है कि 2047 तक हम खेल के क्षेत्र में भी विश्व गुरू बनेंगे और यह हमारे युवा खिलाड़ियों के संकल्प और समर्पण के चलते ही संभव हो पाएगा।

देवियो और सज्जनो,

हालाँकि हॉकी लगभग भारत के हर राज्य में खेली जाती है, लेकिन पंजाब दुनिया के बेहतरीन हॉकी के खिलाड़ी पैदा करने के लिए जाना जाता है। इस बार पैरिस 2024 ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारती हॉकी टीम में भी अधिकांश खिलाड़ी पंजाब के ही थी जिनमें कप्तान हरमनप्रीत सिंह, उपकप्तान हार्दिक सिंह, मनप्रीत सिंह, मनदीप सिंह, शमशेर सिंह, जर्मनप्रीत सिंह और सुखजीत सिंह शामिल थे। इसके अलावा हॉकी टीम में पंजाब के दो रिजर्व खिलाड़ी जुगराज सिंह और कृष्ण बहादुर पाठक शामिल थे।

पंजाब के जालंधर शहर के समीप स्थित गांव संसारपुर को पूरे देश में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में “हॉकी की नर्सरी” के रूप में जाना जाता है। यह वही ऐतिहासिक धरती है जिसने भारत को असंख्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ियों, विशेषकर कई ओलंपियनों, को जन्म दिया है। संसारपुर वास्तव में उस गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है जिसने भारतीय हॉकी को वैश्विक पहचान दिलाई।

हरियाणा का शाहाबाद मारकंडा भी भारतीय हॉकी के गौरवशाली इतिहास में एक अहम अध्याय के रूप में जाना जाता है। इसे महिला हॉकी की नर्सरी कहा जाता है क्योंकि इसने विशेष रूप से महिला हॉकी में जो योगदान दिया है, वह अद्वितीय है। इस भूमि ने अनेक अंतरराष्ट्रीय स्तर की महिला हॉकी खिलाड़ियों को जन्म दिया, जिन्होंने एशियाई खेलों, ओलंपिक और विश्व कप में भारत का नाम रोशन किया।

हॉकी चंडीगढ़ ने भी कई ओलंपियन और अंतर्राष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी दिए हैं जिनमें बलजीत सिंह, दीपक ठाकुर, राजपाल सिंह, इंद्रजीत सिंह, रूपिंदर पाल सिंह, गुरजंट सिंह, मनिंदर, संजय, आदि शामिल हैं और जूनियर श्रेणियों में अमनदीप, अर्शदीप सिंह, सुखमन सिंह और अंगदबीर सिंह शामिल हैं।

इसके अलावा मनिंदर सिंह, अमनदीप, रोहित, बिक्रमजीत सिंह और अंकुश चंडीगढ़ के उभरते हुए युवा अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं।

साथियो,

आज भारत का खेल परिदृश्य बेहद विस्तृत हो चुका है। क्रिकेट, बैडमिंटन, कुश्ती, बॉक्सिंग, शूटिंग, एथलेटिक्स, हॉकी, हर क्षेत्र में भारतीय खिलाड़ियों ने विश्वस्तर पर अपनी छाप छोड़ी है।

ओलंपिक में नीरज चोपड़ा का स्वर्ण, पी.वी. सिंधु और मीराबाई चानू जैसी खिलाड़ियों की उपलब्धियाँ यह बताती हैं कि भारत अब केवल खेलों में भाग नहीं लेता, बल्कि इतिहास रचता है।

लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सभी उपलब्धियों की मूल प्रेरणा हॉकी रही है, वह खेल जिसने भारत को पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर विजेता राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।

खेल व्यक्ति के भीतर अनुशासन, आत्मविश्वास, और सहिष्णुता का विकास करते हैं। हार और जीत, दोनों को समान भाव से स्वीकार करने की क्षमता जीवन का सबसे बड़ा पाठ है।

महात्मा गांधी ने कहा था, “जीवन में नैतिकता और अनुशासन वही भूमिका निभाते हैं, जो खेल के मैदान में नियम निभाते हैं।” जब हम खेल के मैदान में उतरते हैं, तो यह केवल प्रतिस्पर्धा नहीं होती, बल्कि आत्मविजय का यज्ञ होता है। यही भावना भारतीय खेल संस्कृति की आत्मा है।

अब जब हम हॉकी के सौ वर्ष मना रहे हैं, तो यह समय है कि हम संकल्प लें कि हम हॉकी को उसकी पुरानी ऊँचाइयों तक वापस पहुँचाएँगे।

हमें इस खेल को ग्रासरूट स्तर तक पहुँचाना होगा, ग्रामीण और शहरी युवाओं के बीच खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करना होगा।

सरकार, स्कूल, खेल संस्थान और समाज, सभी को मिलकर एक ऐसा वातावरण तैयार करना होगा, जहाँ हर बच्चा यह महसूस करे कि हॉकी केवल इतिहास नहीं, भविष्य भी है।

साथियो,

यह सौ वर्ष की यात्रा केवल खेल की नहीं, बल्कि आस्था, अनुशासन, और राष्ट्रगौरव की यात्रा है।

आज जब हम इस मंच से यह संकल्प दोहराते हैं कि भारत को खेलों का महाशक्ति राष्ट्र बनाना है, तो आइए मेजर ध्यानचंद, बलबीर सिंह, और उन तमाम गुमनाम खिलाड़ियों को याद करें जिन्होंने देश के लिए पसीना बहाया।

जैसा कि गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था, “जहाँ मन भयमुक्त हो और मस्तक ऊँचा उठे, वहीं सच्चा भारत है।”

आइए, हम सब मिलकर उस गौरवशाली, आत्मविश्वासी और विजयी भारत के निर्माण में अपनी भूमिका निभाएँ, जहाँ हर बच्चे के हाथ में हॉकी स्टिक, हर युवा के दिल में देशभक्ति, और हर नागरिक के मन में खेल भावना हो।

धन्यवाद,

जय हिन्द!