SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF 9TH MILITARY LITERATURE FESTIVAL AT CHANDIGARH ON NOVEMBER 7, 2025.

‘मिलिटरी लिट्रेचर फेस्टिवल’ के 9वें संस्करण के शुभारंभ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 07.11.2025, शुक्रवारसमयः सुबह 11:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

  

नमस्कार!

इस तीन दिवसीय 9वें सैन्य साहित्य महोत्सव चण्डीगढ़, 2025 के उद्घाटन समारोह के अवसर पर आप सबके बीच उपस्थित होकर बहुत खुशी हो रही है। यह महोत्सव हमारे देश के गौरवशाली सैन्य इतिहास, सैनिकों के बलिदान, और उनके अदम्य साहस को सलाम करने का एक अवसर है।

यह महोत्सव केवल सैन्य साहित्य का मंच नहीं, बल्कि यह राष्ट्रप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और वीरता की भावना का उत्सव है। यह हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल शब्द नहीं है, यह उन लाखों सैनिकों की आहुति से अर्जित हुई है, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

इस महोत्सव का आयोजन भारतीय सेना की पश्चिमी कमांड, पंजाब सरकार, यू.टी. चण्डीगढ़ प्रशासन और मिलटरी लिटरेचर फेस्टिवल ऐसोसिएशन द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है। यह महोत्सव हिंदुस्तान पाकिस्तान की 1962 की लड़ाई जिसके 60 साल पूरे हो चुके हैं, की याद को समर्पित है।

मुझे बताया गया है कि पहला सैन्य साहित्य महोत्सव दिसंबर 2017 में आयोजित हुआ था। उसके बाद हर साल यह महोत्सव चण्डीगढ में आयोजित किया जा रहा है। सन् 2019 और 2020 में कोविड की वजह से यह महोत्सव वर्चुअल मोड में किया गया। वर्ष 2023, 2024 और 2025 के फरवरी महीने में हेरिटेज महोत्सव पटियाला में भी आयोजित किया गया था।

इस महोत्सव का उद्देश्य भारतीय सेना में शामिल पंजाब और उत्तर भारत के लोगों द्वारा युद्ध और कठिन परिस्थितयों में जो योगदान दिया गया है, उसके संबंध में क्षेत्रवासियों को अवगत करवाना है। इस महोत्सव में प्रसिद्ध लेखक, कलाकार, गीतकार, पत्रकार और सेवा निवृत्त सेना के अफसर शामिल होते हैं।

मुझे बताया गया है कि समारोह दौरान विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से युद्ध दौरान दुश्मन के खिलाफ वीरता का प्रदर्शन करने वाले सेना के योद्धाओं और शहीदों को याद किया जाता है। साथ ही क्षेत्र के युवाओं को सेना में भर्ती होने हेतु आकर्षित करने के लिये सेना के शस्त्रों का प्रदर्शन भी किया जाता है।

7 से 9 नवंबर तक चलने वाले इस तीन दिवसीय समारोह दौरान युद्धों के विषयों संबंधी विचार-विमर्श के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियों पर भी चर्चा की जाती है।

इस वर्ष का 9वां साहित्य महोत्सव पिछले सालों के मुकाबले कुछ अधिक खास है। इस वर्ष यह महोत्सव “Heartland & Rimland Powers in a Multidomain Warfare and India” की थीम पर आधारित है।

हर्ष का विषय है कि मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल एसोसिएशन इस वर्ष अपने कार्यक्रमों का विस्तार करते हुए पंजाब के अन्य ऐतिहासिक स्थलों तक भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने जा रही है। इस क्रम में, अमृतसर में आयोजित होने वाले “रंगला पंजाब” नामक भव्य सांस्कृतिक आयोजन में एसोसिएशन की सक्रिय भागीदारी होगी, जहाँ पंजाब की वीर परंपरा, संस्कृति और सैन्य गौरव को प्रदर्शित किया जाएगा।

इसके साथ ही, फिरोजपुर स्थित सारागढ़ी शहीद स्मारक, जो वीरता, अनुशासन और बलिदान का प्रतीक स्थल है, वहाँ पर भी एक विशाल कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। इस कार्यक्रम के माध्यम से उस अदम्य साहस को श्रद्धांजलि दी जाएगी, जो 1897 की ऐतिहासिक सारागढ़ी लड़ाई में हमारे 21 सिख सैनिकों ने प्रदर्शित किया था।

इन आयोजनों का उद्देश्य पंजाब की वीर परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुँचाना है, ताकि हमारे युवाओं के मन में देशभक्ति, शौर्य और राष्ट्रसेवा की भावना और प्रबल हो सके।

देवियो और सज्जनों,

इस अवसर पर मैं पंजाब की वीरता और गौरवपूर्ण सैन्य इतिहास का उल्लेख करना चाहूंगा। पंजाब की भूमि सदियों से शौर्य, त्याग और सैन्य कौशल की प्रतीक रही है। यहां की मिट्टी ने असंख्य ऐसे वीर पुत्रों को जन्म दिया है, जिन्होंने राष्ट्र की रक्षा और सम्मान के लिए अपने प्राण न्योछावर किए हैं।

पंजाब का मार्शल इतिहास अत्यंत समृद्ध और प्रेरणादायक रहा है। प्राचीन महाकाव्य महाभारत में वर्णित कुरुक्षेत्र का महान युद्ध, जो आज के हरियाणा में स्थित है, उस समय के पंजाब क्षेत्र की युद्ध परंपरा और वीरता का ऐतिहासिक प्रमाण है।

326 ईसा पूर्व सिकंदर के आक्रमण के समय, इस धरती ने राजा पोरस जैसे वीर योद्धा को जन्म दिया, जिन्होंने विदेशी आक्रांता के विरुद्ध साहस और स्वाभिमान की अप्रतिम मिसाल पेश की। उनका अदम्य प्रतिरोध इस क्षेत्र की मार्शल भावना और रणकौशल का अमिट उदाहरण है।

मौर्य और गुप्त काल के दौरान भी पंजाब साम्राज्य की सीमा सुरक्षा और सैनिक योगदान का केंद्र बना रहा। इस प्रदेश ने उस समय के रणनीतिक कौशल और वीर सैनिकों के माध्यम से साम्राज्य की शक्ति को सुदृढ़ किया।

मुग़ल काल में पंजाब एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रांत के रूप में उभरा। उसी समय श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने “मीरी-पीरी” के सिद्धांत के माध्यम से आध्यात्मिकता और शक्ति के समन्वय की अवधारणा दी। बाद में श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की, जिसने सिखों को एक संगठित, अनुशासित और अदम्य मार्शल समुदाय के रूप में रूपांतरित किया। खालसा की यह परंपरा आज भी देश की सुरक्षा में अग्रणी भूमिका निभा रही है।

अठारहवीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिख साम्राज्य ने अपने अनुशासित, आधुनिक और साहसी सैनिकों के बल पर एक स्वर्णिम अध्याय लिखा। खालसा सेना की वीरता, अनुशासन और संगठन की मिसाल विश्वभर में दी जाती रही।

बीसवीं सदी में, दोनों विश्व युद्धों के दौरान पंजाब ने भारतीय सेना में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हजारों पंजाबी सैनिकों ने विदेशी मोर्चों पर अद्भुत साहस, निष्ठा और बलिदान का परिचय दिया। उनके पराक्रम की गूंज आज भी फ्रांस, बर्मा, मेसोपोटामिया और अफ्रीका के युद्धस्थलों तक सुनाई देती है।

वास्तव में, पंजाब की यह वीर परंपरा केवल इतिहास का हिस्सा नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा और एकता की आधारशिला है, जो आज भी हर भारतीय सैनिक के हृदय में धड़कती है।

यहां कई नायक पैदा हुए हैं जो अपनी बहादुरी, वीरता और बलिदान के लिए जाने जाते हैं। हम में से कोई भी स्वर्गीय फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और एअर चीफ मार्शल अर्जुन सिंह के नेतृत्व को कभी नहीं भूल सकता, जिन्होंने हमारे देश के सैन्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय में उदाहरण पेश किया।

सूबेदार जोगिंदर सिंहः 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान उनके असाधारण नेतृत्व और साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। उन्होंने भारी चीनी सेना के खिलाफ अपनी पलटन का नेतृत्व किया और अपनी आखिरी सांस तक लड़ते रहे।

नायब सूबेदार बाना सिंहः 1987 में सियाचिन संघर्ष के दौरान उनकी बहादुरी के लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। प्रतिकूल मौसम और दुश्मन की गोलाबारी के बावजूद एक रणनीतिक चौकी पर कब्जा करने के लिए एक टीम का नेतृत्व करते हुए, उन्होंने असाधारण वीरता का प्रदर्शन किया।

लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंहः 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपने नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने कुशलतापूर्वक भारतीय सेना की पश्चिमी कमान की कमान संभाली और असल उत्तर की लड़ाई में पाकिस्तानी आक्रमण को नाकाम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरीः वह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लोंगेवाला की प्रसिद्ध लड़ाई के नायक थे। चांदपुरी, जो उस समय एक मेजर थे, और उनके सैनिकों ने एक बहुत बड़ी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ सफलतापूर्वक अपनी पोस्ट का बचाव किया।

देवियो और सज्जनो,

भारत की सैन्य परंपरा उतनी ही प्राचीन है जितना इस देश का इतिहास। हमारे ग्रंथों में अर्जुन का धनुष, अभिमन्यु का पराक्रम, छत्रपति शिवाजी महाराज की रणनीति, और महारा रणजीत सिंह का साहस, सभी हमारे सैन्य गौरव के अमर प्रतीक हैं।

आज की भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना उसी गौरवशाली परंपरा की आधुनिक अभिव्यक्ति हैं। हमारे सैनिक केवल सीमाओं के रक्षक नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा के प्रहरी हैं।

1947 से लेकर आज तक, भारत की सेना ने हर चुनौती का डटकर सामना किया है। 1948, 1965, और 1971 के युद्धों ने न केवल हमारी सैन्य क्षमता, बल्कि हमारे राष्ट्रीय चरित्र को भी उजागर किया। 1971 का युद्ध भारतीय इतिहास का गौरवशाली अध्याय है, जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश के सृजन में निर्णायक भूमिका निभाई।

1999 के कारगिल युद्ध ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत का सैनिक असंभव को संभव करने का नाम है। ‘यश, कीर्ति और बलिदान’ के मंत्र को जीते हुए हमारे वीर जवानों ने बर्फीली चोटियों पर भारतीय तिरंगा लहराया।

हाल के वर्षों में भी भारत ने स्पष्ट कर दिया कि आतंकवाद को किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 की बालाकोट एयर स्ट्राइक इसके सशक्त उदाहरण हैं। अब भारत बदल चुका है। 

अब यह सहन करने के बजाय सटीक और निर्णायक जवाब देता है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसी नए भारत की दृढ़ नीति और अडिग संकल्प का प्रतीक है कि राष्ट्र की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है और आतंकवाद का उत्तर हमेशा निर्णायक होगा।

हम सभी जानते हैं कि भारत हमेशा से एक शांतिप्रिय देश रहा है, जिसने अपने इतिहास में कभी भी किसी अन्य देश के लोगों के प्रति आक्रामक रुख नहीं अपनाया है। लेकिन भारत उन लोगों को मुंहतोड़ जवाब देने में भी सक्षम है जो इसके प्रति आक्रामकता दिखाते हैं।

देवियो और सज्जनो,

आज जब तकनीकी प्रगति और वैश्विक चुनौतियाँ नई ऊँचाइयों पर हैं, यह अत्यंत आवश्यक है कि भारत भविष्य के युद्धों का सामना करने के लिए रणनीतिक और तकनीकी, दोनों स्तरों पर पूरी तरह तैयार हो। भविष्य के संघर्ष केवल बंदूकों और सैनिकों तक सीमित नहीं रहेंगे; वे सॉफ्टवेयर, सेंसर, डेटा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे तय होंगे। इसलिए हमारी सेना के तीनों अंगों में तकनीकी आधुनिकीकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी और ऑपरेशनल सोच को ‘डेटा-संचालित’ बनाना होगा।

साइबर सुरक्षा को हम राष्ट्रीय सुरक्षा का केंद्र मानें; आर्थिक बुनियादी ढांचे, संचार नेटवर्क और रक्षा प्रणालियों की सुरक्षा के लिए मजबूत साइबर डिफेन्स, रैपिड रिस्पॉन्स टीम और सतत् अभ्यास अनिवार्य हैं। ड्रोन तकनीक और एंटी-ड्रोन क्षमताओं के साथ-साथ स्पेस-डोमेन और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर की तैयारियाँ भी तेज़ करनी होंगी। 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सिमुलेशन-आधारित प्रशिक्षण सैनिकों की निर्णय क्षमता और प्रतिक्रिया समय को गुणात्मक रूप से बढ़ा सकते हैं। अतः हमारे प्रशिक्षण मॉड्यूल में डिजिटल युद्ध और स्पेस वॉरफेयर का समावेश अनिवार्य है।

यह हमारे लिए गर्व का विषय है कि अब भारत ने रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल से प्रेरित होकर हमारा रक्षा उत्पादन वित्त वर्ष 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ रुपये के ऐतिहासिक स्तर पर पहुँच गया है, जो 2014-15 की तुलना में 174 प्रतिशत वृद्धि को दर्शाता है। 

इसी अवधि में भारत का रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 21 हजार 83 करोड़ रुपये तक पहुँच गया है, जो एक दशक में 30 गुना वृद्धि का प्रतीक है। आज हम 100 से अधिक देशों को रक्षा उत्पाद निर्यात कर रहे हैं, जिससे ‘मेड इन इंडिया’ एक ‘ग्लोबली ट्रस्टेड ब्रांड’ बन गया है।

आईडेक्स (iDEX) (इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस) और ‘सामर्थ्य’ जैसी पहल एआई, साइबर युद्ध और स्वदेशी हथियार प्रणालियों में नवाचार को बढ़ावा दे रही हैं, जबकि ‘सृजन’ पोर्टल के तहत 14 हजार से अधिक वस्तुओं और ‘सकारात्मक देशीकरण सूची’ के अंतर्गत 3 हजार से अधिक वस्तुओं का स्वदेशीकरण हो चुका है।

भारत का लक्ष्य है कि वर्ष 2029 तक 3 लाख करोड़ रुपये का रक्षा उत्पादन और 50 हजार करोड़ रुपये का रक्षा निर्यात हासिल किया जाए। यह केवल आर्थिक नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प है जो भारत को एक सशक्त ‘रक्षा निर्माता राष्ट्र’ के रूप में स्थापित करेगा।

इसके अलावा, रक्षा बजट की बात करें तो वित्त वर्ष 2013-14 के 

2.53 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 6.81 लाख करोड़ रुपये तक पहुँचना, भारत के सैन्य ढांचे को सुदृढ़ करने के प्रति हमारे राष्ट्र के दृढ़ संकल्प और रणनीतिक दृष्टिकोण का स्पष्ट प्रमाण है। 

देवियो और सज्जनो,

हमारे सैनिक चाहे सीमा पर हों, या किसी राहत अभियान में, वे सदैव देशहित को सर्वोपरि रखते हैं। वे कठिनतम परिस्थितियों में भी राष्ट्र की गरिमा की रक्षा करते हैं। उनका अनुशासन, उनका साहस और उनका त्याग, भारत के हर नागरिक के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

मैं उन वीर नारियों को भी नमन करता हूँ, जिन्होंने अपने जीवनसाथी, पुत्र या पिता को मातृभूमि के लिए समर्पित किया। उनका योगदान उतना ही महान है जितना स्वयं रणभूमि में लड़ने वाले सैनिक का।

यह फेस्टिवल केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि राष्ट्रीय चेतना का पुनर्जागरण है। यह सैनिकों और नागरिकों के बीच संवाद का पुल है। यह हमें यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता का आनंद तभी सुरक्षित रह सकता है जब राष्ट्र के प्रहरी जाग्रत हों और नागरिक उनके बलिदान के प्रति कृतज्ञ रहें।

मैं विशेष रूप से इस आयोजन में शामिल युवाओं से कहना चाहूँगा कि इस फेस्टिवल से आप केवल इतिहास न सीखें, बल्कि सेवा, साहस और समर्पण की भावना को अपने जीवन में उतारें। भारत का भविष्य उन्हीं के हाथों में है जिनमें कर्तव्य की ज्वाला और मातृभूमि के प्रति प्रेम की भावना जीवित है।

आज जब हम मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल मना रहे हैं, तो यह केवल स्मरण का क्षण नहीं, बल्कि संकल्प का अवसर है। हम यह प्रण लें कि “हमारे सैनिकों का सम्मान केवल शब्दों में नहीं, बल्कि अपने कर्मों, अपने चरित्र और अपनी नागरिक जिम्मेदारी में झलके।”

भारत की सेनाएँ हमारी राष्ट्रीय एकता की ध्वजा हैं। उनके पराक्रम से ही हमारी सीमाएँ सुरक्षित हैं और हमारी अस्मिता अटूट है।

मैं सभी वीर सैनिकों, उनके परिवारों, और इस महोत्सव से जुड़े सभी सहयोगियों को राष्ट्र की ओर से हृदय से धन्यवाद और श्रद्धा-सुमन अर्पित करता हूँ।

धन्यवाद,

जय हिन्द!