SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF 10TH CONVOCATION OF ARMY INSTITUTE OF LAW AT CHANDIGARH ON OCTOBER 31, 2025.
- by Admin
- 2025-10-31 13:45
आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ के 10वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर
राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन
दिनांकः 31.10.2025, शुक्रवार
समयः सुबह 9:30 बजे
स्थानः मोहाली
नमस्कार!
आज मुझे आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली के इस 10वें दीक्षांत समारोह के गरिमामयी अवसर पर उपस्थित होकर अत्यधिक प्रसन्नता और गर्व का अनुभव हो रहा है।
हमारे देश की रक्षा पंक्तियों से निकली यह एक अनुशासित परंपरा, उच्च मूल्य और कठिन परिश्रम की प्रतिमूर्ति संस्था, आज विधि के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुकी है।
इस संस्थान की स्थापना जुलाई 1999 में भारतीय सेना द्वारा Army Welfare Education Society (AWES) के तत्वावधान में की गई थी। प्रारंभिक रूप से यह संस्था पटियाला में स्थित थी, और जुलाई 2003 में इसे मोहाली के सेक्टर 68 में स्थानांतरित किया गया। 1 दिसंबर 2003 को मोहाली परिसर का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा किया गया।
यह संस्थान पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से संबद्ध है और Bar Council of India से अनुमोदित है। ‘Aspire & Achieve’ इसका ध्येय वाक्य है, जिसके अनुरूप यह विधि शिक्षा के क्षेत्र में एक Centre of Excellence के रूप में विकसित हुआ है। इसे National Assessment and Accreditation Council (NAAC) द्वारा ग्रेड ‘बी’ से मान्यता प्राप्त है।
संस्थान का भव्य आवासीय परिसर मोहाली, सेक्टर-68 में स्थित है। संस्थान द्वारा पाँच वर्षीय BA LLB, B.COM LLB और एक वर्षीय LLM के कोर्स संचालित किए जाते हैं।
इसके प्रमुख लक्ष्यों में अपने विद्यार्थियों को उच्च गुणवत्ता वाली विधि शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना; विद्यार्थियों को बार, न्यायिक सेवा, सिविल सेवा, सशस्त्र बलों, कॉर्पोरेट जगत और अन्य संस्थाओं में करियर बनाने के लिए सक्षम बनाना है।
देवियो और सज्जनो,
आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली की यात्रा देश के शिक्षण इतिहास में प्रेरणादायक अध्यायों में से एक है। आज जब मैं इस प्रतिष्ठित आर्मी इंस्टिट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली के दीक्षांत समारोह में आप सभी के बीच उपस्थित हूं, तो मेरे मन में अत्यंत प्रसन्नता और गर्व की भावना है।
मैं इस अवसर पर विधि शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्टता की नई ऊँचाइयों को छूने वाले सभी 125 प्रतिभाशाली स्नातकों को अपनी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। इनमें 110 विद्यार्थी बी.ए. एलएल.बी. से तथा 15 विद्यार्थी एलएल.एम. से स्नातक हो रहे हैं।
आपके लिए यह दिन केवल एक औपचारिक उपलब्धि नहीं, बल्कि एक नई जिम्मेदारी की शुरुआत है। कानूनी पेशे को हर समाज में एक महान और सम्मानित व्यवसाय माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वकील केवल कानून के जानकार नहीं होते, बल्कि वे न्याय तक जनता की पहुँच सुनिश्चित करने और संविधान के आदर्शों को जीवन में उतारने का कार्य करते हैं। वे उस सेतु की भूमिका निभाते हैं जो नागरिकों को न्याय, समानता और अधिकारों से जोड़ता है।
भारत में यह परंपरा अत्यंत गौरवपूर्ण रही है। महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, देशबंधु चित्तरंजन दास, सैफुद्दीन किचलू, सरदार वल्लभभाई पटेल और हमारे प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जैसे अनेक राष्ट्रीय नेता कानून के क्षेत्र से ही आए थे।
वकील के रूप में मिले उनके प्रशिक्षण और भारत तथा विदेशों में कानूनी प्रणालियों के अनुभव ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमारे महान नेताओं ने भारत को एक सशक्त संविधान दिया, एक ऐसा संविधान जो न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों पर आधारित है। यह संविधान हमारे देश की दूसरी आज़ादी का प्रतीक है। पहली आज़ादी हमें विदेशी शासन से मिली, और दूसरी आज़ादी हमें उस मानसिकता, असमानता, जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय से मुक्ति दिलाती है जिसने समाज को लंबे समय तक जकड़ रखा था।
प्रिय स्नातको,
आप देश के संविधान के प्रहरी हैं। इसलिए आवश्यक है कि आप संविधान का गहराई से अध्ययन करें, इसकी आत्मा को समझें। हमारी राजनीतिक व्यवस्था, उसकी संस्थाओं और प्रक्रियाओं को जानें। उन निर्णयों और विकल्पों का विश्लेषण करें जिनसे आज का भारत बना है। यह भी सोचें कि आने वाले समय में हमें किन बुद्धिमत्तापूर्ण और नैतिक विकल्पों की आवश्यकता होगी ताकि भारत अपनी सर्वोच्च क्षमता तक पहुँच सके।
आप इस देश के सर्वश्रेष्ठ और प्रतिभाशाली युवा प्रतिभाओं में से हैं। आपको केवल अपने करियर में नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की उन्नति में भी योगदान देना है। नीति-निर्माण की प्रक्रिया में सकारात्मक भूमिका निभाएँ। राष्ट्रीय मुद्दों से दूरी न बनाएँ; बल्कि उन पर अध्ययन करें, विचार करें और सार्थक दृष्टिकोण विकसित करें।
हमारे न्यायिक और राजनीतिक संस्थानों को और अधिक सशक्त एवं पारदर्शी बनाने में सहयोग दें। आपने यहाँ जो ज्ञान और मूल्य अर्जित किए हैं, उन्हें समाज में आगे बढ़ाएँ। लोगों को उनके अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी बोध कराएँ।
याद रखें, एक सच्चा वकील केवल कानून का रक्षक नहीं होता, बल्कि वह समाज में न्याय, सत्य और नैतिकता का संवाहक होता है। आप सब भारत के संविधान के सच्चे प्रहरी बनें और इस महान राष्ट्र को न्याय और समानता के पथ पर निरंतर आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें।
साथियो,
विधि का अध्ययन मात्र एक शैक्षणिक प्रयास नहीं है; यह एक महान व्यवसाय है जो बौद्धिक अनुशासन, सत्यनिष्ठा और नैतिक साहस की माँग करता है। एक जटिल और निरंतर बदलते विश्व में, कानून का शासन ही वह नींव है जिस पर न्याय और समानता टिकी है। इस व्यवसाय में प्रवेश करने वालों पर इन मूल्यों की रक्षा की जिम्मेदारी होती है।
मेरा मानना है कि विधान का अध्ययन केवल पुस्तकीय ज्ञान तक सीमित नहीं होना चाहिए। विधि तब तक जीवंत नहीं रहती जब तक वह समाज के वास्तविक प्रश्नों से जुड़कर उनके समाधान न उत्पन्न करे।
किसी भी प्रकार की शिक्षा का मूल स्तंभ अनुशासन होता है, जो हमें बताता है कि अधिकार के साथ-साथ दायित्व भी आते हैं। एक वकील का कर्तव्य केवल अपने मुवक्किल का पक्ष रखना नहीं, बल्कि न्याय के अनुशासन, सत्य के प्रति निष्ठा और कमजोरों के हित में आवाज उठाना भी है।
जैसे-सैन्य जीवन में सेवा और देशप्रेम सर्वोपरि हैं, वैसे ही विधि के क्षेत्र में नैतिकता और सेवा भाव सर्वोच्च हैं। कानून के क्षेत्र में शोध और नवाचार भविष्य की दिशा तय करते हैं। संवैधानिक प्रश्न, टेक्नोलॉजी और डेटा प्राइवेसी, पर्यावरण कानूनी ढाँचे, वैधानिक सुधार और डिस्प्यूट रेसोल्यूशन के नवीन तरीके, ये वे विषय हैं जिनमें नई पीढ़ी को नेतृत्व करना होगा।
सामाजिक न्याय की बात करते समय हमें ध्यान रखना है कि न्याय तक पहुँच सबके लिए समान होनी चाहिए। संवैधानिक मूल्यों की प्रतिबद्धता तभी सार्थक होगी जब वंचित वर्गों, आदिवासियों, महिलाओं और सामाजिक रूप से पिछड़े समुदायों के अधिकारों की रक्षा कानून के माध्यम से सुनिश्चित की जाएगी।
साथियो,
आज जब हम कानून, न्याय और संविधान की बात करते हैं, तो हमारे मन में सबसे पहले जिस महान व्यक्तित्व की छवि उभरती है, वह हैं भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर जी। वे केवल एक विधिवेत्ता या संविधान निर्माता ही नहीं थे, बल्कि सामाजिक न्याय, समानता और मानव अधिकारों के सबसे प्रखर प्रतीक थे।
डॉ. अंबेडकर जी ने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि यदि किसी व्यक्ति के भीतर ज्ञान, दृढ़ निश्चय और देश के प्रति समर्पण हो, तो वह परिस्थितियों की सीमाओं को पार कर इतिहास रच सकता है।
हमारे संविधान निर्माता को सच्ची श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से, हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने डॉ. बी. आर. अंबेडकर जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में, 26 नवंबर 2015 से प्रत्येक वर्ष संविधान दिवस मनाने की घोषणा की। इस निर्णय का उद्देश्य देशवासियों में संविधान के प्रति जागरूकता, सम्मान और उसके मूल्यों के प्रति आस्था को और अधिक सशक्त करना है।
डॉ. भीमराव अंबेडकर जी ने संविधान के बारे में एक बहुत ही गहरी और प्रेरक बात कही थी। उन्होंने कहा था- “हमारा संविधान न केवल एक राजनीतिक या कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह एक भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक अनुबंध भी है।”
आज के इस अवसर पर मैं बाबा साहेब अंबेडकर और डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे दूरअंदेशी महानुभावों को नमन करता हूं। संविधान सभा के सभी सदस्यों को भी नमन करता हूं। महीनों तक भारत के जिन विद्वतजनों ने, एक्टिविस्टों ने देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए व्यवस्थाओं को निर्धारित करने के लिए मंथन किया था, उन्हें नमन करता हूं क्योंकि इस मंथन से संविधान रुपी अमृत हमें प्राप्त हुआ है जिसने आजादी के इतने लंबे कालखंड के बाद हमे यहां पहुंचाया है।
आजादी के आंदोलन की छाया, देशभक्ति की ज्वाला, भारत विभाजन की विभिषका इन सबके बावजूद भी देशहित सर्वोच्च! विविधताओं से भरा हुआ यह देश, अनेक भाषाएं, अनेक बोलियां, अनेक पंथ, अनेक राजे रजवाड़े इन सबके बावजूद भी संविधान के माध्यम से पूरे देश को एक बंधन में बांध करके आगे बढ़ाने के लिए योजना बनाना आज के संदर्भ में देखें तो असंभव सा प्रतीत होता है।
इन चुनौतियों के बावजूद डॉ. बी. आर. अंबेडकर जी के नेतृत्व में संविधान सभा के सदस्यों ने दूरदर्शिता, धैर्य और अदम्य संकल्प के साथ भारतीय संविधान का निर्माण किया, जिसने इस विशाल और विविध राष्ट्र को एक साझा कानूनी और नैतिक ढाँचा प्रदान किया। आज हमारा पूरा न्याय तंत्र, शासन व्यवस्था और नागरिक जीवन इसी महान संविधान की नींव पर टिका है।
प्रिया स्नातको,
आज आप जीवन के एक नए पड़ाव पर पहुँच रहे हैं। विधि के क्षेत्र में आप चाहे वकालत चुनें, चाहे न्यायपालिका, चाहे नीति निर्माण या अकादमिक जगत, हर क्षेत्र में आपका दायित्व होगा कि आप सत्य की रक्षा करें और लोगों के विश्वास को बनाए रखें। याद रखिए, कानून का असली मकसद केवल दंड अथवा नियम नहीं, बल्कि समाज में समानता, गरिमा और स्वतंत्रता सुनिश्चित करना है।
आज इस संस्थान में जो भी दीपक ज्ञान और सफलता का प्रकाश बिखेर रहा है, वह विद्यार्थियों के माता-पिता, शिक्षकों, प्रशासनिक स्टाफ तथा समस्त सहकर्मियों के अथक परिश्रम, समर्पण और सहयोग का परिणाम है। अभिभावकों के त्याग और शिक्षकों के मार्गदर्शन के बिना यह उपलब्धि संभव नहीं थी। मैं इन सबका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
मैं आशा करता हूँ कि आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ लॉ, मोहाली आगे भी उच्च शैक्षिक मानकों, अनुसंधान, नैतिक शिक्षण और सामुदायिक जुड़ाव के द्वारा देश की कानूनी शिक्षा के मानदण्डों को और ऊँचा उठाता रहेगा। हमारा लक्ष्य होना चाहिए कि यह संस्थान विधि के क्षेत्र में राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रेरणास्पद नेतृत्व दे।
अंत में, मैं पुनः सभी स्नातकों को दिल से बधाई देता हूँ। आपका यह संघर्ष, आपकी यह लगन और आपकी यह सेवा भाव ही देश के उज्ज्वल भविष्य की आधारशिला है। आप जहाँ भी जाएँ, अपने जज़्बे, अपने सिद्धांत और अपने कर्तव्य-बोध को साथ ले जाइए। देश आपसे न्यायसंगत, संवेदनशील और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक बनने की उम्मीद करता है।
मैं संस्थान के समस्त प्रबंधन, संकाय और स्टाफ तथा सैनिक परिवार का आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस संस्थान को भविष्य के संवैधानिक संरक्षक तैयार करने की दिशा में लगातार मार्गदर्शन दिया।
धन्यवाद,
जय हिंद!