SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SAPTA SINDHU SOLIDARITY CINE AWARD AND CONCLAVE AT MOHALI ON NOVEMBER 20, 2025.

सप्त सिंधु सिने अवार्ड्स के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 19.11.2025, बुधवारसमयः शाम 6:15 बजेस्थानः मोहाली

  

नमस्कार!

आज ‘सप्त सिंधु सिने अवार्ड्स’के अवसर पर आप सभी के बीच उपस्थित होकर मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। आज यहाँ हमारे सामने सिनेमा जगत के दिग्गज अभिनेता, निर्देशक, गायक और सृजनशील व्यक्तित्व उपस्थित हैं, जिन्होंने पंजाबी फिल्म उद्योग को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया है।

मैं देख पा रहा हूं कि हमारे बीच आज पंजाबी सिनेमा के दिग्गज मोहम्मद सदीक जी, जसपिंदर नरूला जी, बिन्नू ढिल्लों जी और जसबीर जस्सी जी सहित अनेक जाने-माने कलाकार उपस्थित हैं, जिन्होंने अपने अद्वितीय योगदान से सिनेमा के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम अंकित किया है।

मैं आज इस मंच पर सिनेमा जगत के सम्मानित सभी 62 प्रतिभावान व्यक्तित्वों को अपनी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। आपने अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देकर न केवल अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत भी बने हैं। 

सप्त सिंधु फोरम द्वारा अयोजित आज का यह आयोजन केवल सिनेमा की उत्कृष्टता का उत्सव नहीं है, बल्कि सप्त सिंधु की उस भूमि की आत्मा का भी उत्सव है, जिसने इस सृजनशीलता को जन्म दिया।

मुझे बताया गया है कि सप्त सिंधु फोरम की स्थापना श्री वरिन्दर गर्ग जी द्वारा 2021 में की गई थी और इसका संचालन 2017 में स्थापित निवेदिता ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है।

यह बड़े ही हर्ष और गर्व का विषय है कि सप्त सिंधु फोरम द्वारा शैक्षणिक, साहित्यिक, मीडिया, सोशल मीडिया और सामाजिक जीवन के अन्य संबंधित क्षेत्रों से जुड़े प्रख्यात व्यक्तित्वों को सप्त सिंधु के 12 हजार वर्ष के शानदार इतिहास और परंपरा के साथ जोड़ने का कार्य बखूबी किया जा रहा है। 

इस मंच के माध्यम से हमारी युवा पीढ़ी को भी अपने इतिहास, सभ्यता और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ पुनः जुड़ने का अवसर मिल रहा है ताकि वे यह समझ सकें कि यह विरासत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के मार्गदर्शन का स्रोत है।

देवियो और सज्जनो,

बहुत समय तक, हमारी सभ्यता और इतिहास की व्याख्या दूसरों की दृष्टि से होती रही। जैसा कि इस कार्यक्रम की प्रस्तावना में कहा गया है कि हम अपने ही अतीत को उन उपनिवेशवादी दृष्टिकोणों से देखते रहे, जिन्होंने हमारी उपलब्धियों को कमतर आँका और हमारी बुद्धि को संदेह की दृष्टि से देखा।

किन्तु आज की यह शाम उस पुराने अंधकार से बाहर निकलने का संकल्प है। सप्त सिंधु की विचारधारा हमारे उस आह्वान का प्रतीक है, जिसके माध्यम से हम अपने गौरवशाली अतीत, अपने मौलिक ज्ञान और अपनी सांस्कृतिक विरासत को पुनः स्थापित कर रहे हैं।

सप्त सिंधु भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास, संस्कृति, धर्म और भूगोल का केंद्रीय तत्व रहा है। संस्कृत शब्द-‘सप्त सिंधु’का अर्थ है ‘सात नदियाँ’ और यह शब्द ऋग्वेद तथा अन्य वैदिक ग्रंथों में विशेष महत्त्व के साथ प्रयुक्त होता आया है।

विभिन्न वैदिक ग्रंथों और आधुनिक शोधों के अनुसार, सामान्यतः जिन नदियों को ‘सप्त सिंधु’ के रूप में जाना जाता है, उनमें सिन्धु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास, सतलुज और सरस्वती शामिल हैं।

इन सात नदियों ने पश्चिमोत्तर भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक और सांस्कृतिक पहचान को आकार दिया। इनकी घाटियों में ही सबसे उपजाऊ भूमि पाई जाती थी, जहाँ मानव बस्तियों का विकास हुआ और वैदिक सभ्यता ने अपनी जड़ें मजबूत कीं।

सात नदियों की यह भूमि वही भूमि है जहाँ वैदिक संस्कृति ने अपने स्वर्ण युग का विस्तार किया। यहीं से सृजन की धारा प्रारंभ हुई। और आज उस प्राचीन गौरव की धड़कन कहाँ महसूस होती है? यहीं, पंजाब की धरती पर। पंजाब केवल एक सीमावर्ती प्रदेश नहीं है, यह तो सप्त सिंधु सभ्यता की जननी है, उसका जीवन-स्रोत है।

यह वही भूमि है, जहाँ वेदों की ज्ञानगंगा प्रवाहित हुई, जहाँ सुश्रुत संहिता के माध्यम से चिकित्सा विज्ञान विकसित हुआ, जहाँ कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने शासन और नीति का अद्वितीय मार्गदर्शन दिया। जब विश्व अंधकार में था, तब हमारे पूर्वज यहाँ योजनाबद्ध नगर बसा रहे थे और हम उस काल में भी ज्ञान, विज्ञान और सभ्यता के अग्रदूत थे।

आज का यह सप्त सिंधु सिने अवॉर्ड्स सम्मेलन इसी गौरवशाली परंपरा का उत्सव है। इस आयोजन का उद्देश्य केवल सिनेमा को सम्मानित करना नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक संवाद की शुरुआत करना है, एक ऐसा संवाद जो हमारे प्राचीन ज्ञान की गहराइयों को 21वीं सदी की नई चुनौतियों और संभावनाओं से जोड़े।

देवियो और सज्जनो,

पंजाबी सिनेमा की सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह लोकभावना से जुड़ा हुआ है। यह खेतों, मिट्टी, लोकगीतों, लोकनृत्य और रिश्तों की सच्चाई को उसी सहजता से प्रस्तुत करता है, जैसे कोई माँ अपने बच्चे को लोरी सुनाती है।

फिल्मों के माध्यम से यह सिनेमा हमें हमारे मूल से जोड़ता है, चाहे वह “मां-बाप की इज़्ज़त” हो, “किसानी का गर्व” हो, “भाईचारे की भावना” हो या “शौर्य और परिश्रम” की परंपरा। 

इसने हर पंजाबी को यह महसूस कराया है कि उसकी भाषा, उसकी मिट्टी और उसकी संस्कृति किसी से कम नहीं है। आज पंजाबी सिनेमा केवल पंजाब की नहीं, बल्कि वैश्विक भारत की पहचान बन चुका है।

कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, और यूरोप में बसे करोड़ों पंजाबी अपने बच्चों को अपनी मातृभाषा, अपनी परंपरा, और अपनी जड़ों से जोड़ने के लिए पंजाबी फ़िल्में देखते हैं। इस तरह पंजाबी सिनेमा “सांस्कृतिक दूत” की भूमिका निभा रहा है, जो विदेशों में भी “भारत की आत्मा” को जीवंत रखे हुए है। यह प्रवासी भारतीयों के दिलों में अपने गाँव, अपने खेत और अपने संगीत की यादें ताज़ा कर देता है।

देवियो और सज्जनो,

मैं समझता हूं कि सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं, यह शिक्षा, प्रेरणा और सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम है। यह युवाओं को सकारात्मक दिशा, रचनात्मक अवसर और आत्मविश्वास देने के लिए अहम भूमिका निभा सकता है।

हम जानते हैं कि आज का युवा अपनी प्रेरणा और पहचान के लिए सिनेमा और संगीत की ओर देखता है। ऐसे में आप सभी कलाकार अपने अभिनय, अपने संगीत, अपनी रचनात्मकता और इस मंच के माध्यम से किए गए संवादों के द्वारा हमारे युवाओं को उनकी जड़ों से जोड़ने वाले सेतु बन रहे हैं। हमें उन्हें यह समझाना है कि हमारी विरासत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य दोनों की दिशा निर्धारित करने वाली शक्ति है।

सिनेमा केवल ग्लैमर नहीं, जिम्मेदारी भी है। फिल्में हमारे समाज की सोच को गढ़ती हैं। यदि सिनेमा हिंसा, असहिष्णुता और नकारात्मकता फैलाएगा, तो उसका प्रभाव गहरा होगा; और यदि वह प्रेम, सद्भाव और सत्य का संदेश देगा, तो वह पीढ़ियों तक याद किया जाएगा। इसलिए सिनेमा से जुड़े हर व्यक्ति को यह समझना चाहिए कि वह केवल कलाकार नहीं, बल्कि समाज का नैतिक वास्तुकार भी है।

आज हमारे सामने कई सामाजिक चुनौतियाँ हैं, जैसे नशा-मुक्ति, पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और कृषि सुधार, महिला सशक्तिकरण,  और युवाओं में रोजगार व उद्यमिता को बढ़ावा देना। यदि इन विषयों को सिनेमा की भाषा में प्रस्तुत किया जाए, तो उसका असर किसी सरकारी योजना से कहीं अधिक गहरा और स्थायी होता है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि हमारे फ़िल्मकार, निर्देशक और लेखक इन जन-सरोकारों को अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाएं।

साथियो,

भाषा किसी समाज की आत्मा होती है। जब हम अपनी भाषा में फिल्म बनाते हैं, तो हम केवल मनोरंजन नहीं करते, हम अपनी पहचान को सहेजते हैं। पंजाबी भाषा की मिठास, उसकी हास्य-शैली, उसकी गहराई और भावनाओं को सिनेमा ने विश्व पटल पर प्रतिष्ठित किया है।

“मां बोली पंजाबी” को जीवंत रखने में फिल्मों का योगदान अतुलनीय है। यह गर्व की बात है कि आज पंजाबी फिल्में न केवल क्षेत्रीय बल्कि राष्ट्रीय पुरस्कारों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। 

देवियो और सज्जनो,

जब हम भारत को “विकसित भारत 2047” की दिशा में आगे ले जाने की बात करते हैं, तो यह केवल तकनीकी या आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता के दृष्टिकोण से भी ज़रूरी है।

एक सशक्त राष्ट्र वही होता है, जो अपनी कला, संस्कृति और सृजनशीलता में आत्मविश्वास रखता है। पंजाबी सिनेमा इस सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता की एक सशक्त धारा है, जिसने न केवल पंजाब को बल्कि संपूर्ण भारत और विदेशों में बसे पंजाबियत को विशिष्ट पहचान दी है।

पंजाबी सिनेमा को हमारी नदियों की तरह, अपने प्रवाह, अपनी ऊर्जा और अपनी मिट्टी से जुड़ेपन के लिए जाना जाता है। आप वही सशक्त स्वर हैं जो विभाजनकारी विचारधाराओं से ऊपर उठकर मानवता की एकता और करुणा का संदेश देने की क्षमता रखते हैं। 

आप सभी हमारी रचनात्मक धरोहर हैं। आपके माध्यम से पंजाब का गौरव, भाषा का सौंदर्य और संस्कृति की आत्मा जीवित रहती है। आपके कार्य केवल कला नहीं, बल्कि समाज के नैतिक, भावनात्मक और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की प्रेरणा हैं।

मैं आप सभी को हृदय से बधाई देता हूँ और अपेक्षा करता हूँ कि आप अपनी रचनाओं के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को स्वाभिमान, सकारात्मकता और सृजनशीलता की राह दिखाएँगे। आपके प्रयासों से पंजाबी सिनेमा न केवल मनोरंजन का माध्यम बना है, बल्कि पंजाबियत का एक जीवंत प्रतीक भी बना हुआ है।

अंत में मैं एक बार फिर सप्त सिंधु फोरम को इस समारोह के आयोजन के लिए धन्यवाद देता हूँ और सप्त सिंधु सिने अवार्ड्स से सम्मानित सभी प्रतिष्ठित लोगों को बधाई देता हूँ।

आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि पंजाबी सिनेमा केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि समाज की आत्मा, संस्कृति का दर्पण और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का प्रकाशस्तंभ बने।

धन्यवाद,

जय हिन्द!