SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF FOUNDATION STONE LAYING CEREMONY THE AMRIT SAROVAR PROJECT AT CHANDIGARH ON NOVEMBER 20, 2025.

धनास तालाब के पुनरूद्धार कार्य के शिलान्यास के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 19.11.2025, बुधवारसमयः शाम 5:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

    

नमस्कार!

आज धनास तालाब के पुनरूद्धार कार्य के इस शिलान्यास अवसर पर आप सभी के मध्य उपस्थित होना मेरे लिए अत्यंत हर्ष और गौरव का विषय है। यह केवल एक तालाब का शिलान्यास नहीं है, बल्कि यह हमारे शहर की प्रकृति-प्रेमी आत्मा, हमारी पर्यावरणीय जिम्मेदारी और हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति अथक समर्पण का प्रतीक है। 

मैं इस शुभ कार्यक्रम में उपस्थित सभी नागरिकों, अधिकारियों, विशेषज्ञों, स्वयंसेवी संगठनों और विशेष रूप से महिला स्वयं सहायता समूहों का हृदय से अभिनंदन करता हूँ।

साथियो,

भारत के जल संकटों ने लंबे समय से ऐसे उपायों की माँग की है, जिनमें संरचनात्मक सुधारों के साथ-साथ जन-सहभागिता भी समान रूप से शामिल हो। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2022 में आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत मिशन अमृत सरोवर को एक प्रमुख राष्ट्रीय पहल के रूप में आरंभ किया। 

इस मिशन का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में 75 जलाशयों का निर्माण या पुनर्जीवन करना है, ताकि जल संरक्षण को प्रोत्साहन मिले, जल-स्रोतों की स्थिरता सुनिश्चित हो, और परंपरागत सामुदायिक जल संरचनाओं को जन-सहभागिता के द्वारा नई ऊर्जा प्रदान की जा सके।

पूरे देश में 50 हजार अमृत सरोवरों के निर्माण के लक्ष्य के साथ आरंभ हुआ यह अभियान अब विस्तारित होकर ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक सशक्तिकरण का एक सशक्त राष्ट्रीय आंदोलन बन चुका है। यह केवल नए जलाशय बनाने की योजना नहीं है, यह राष्ट्रीय गर्व, पारिस्थितिक पुनरूद्धार और जन-भागीदारी पर आधारित सुशासन का एक अद्भुत संगम है। 

बढ़ती भूमिगत जल-क्षरण की समस्या और ग्रामीण क्षेत्रों में जल-संकट को देखते हुए मिशन अमृत सरोवर परंपरा और आधुनिकता, तथा संस्थागत तंत्र और जन-शक्ति के समन्वय का एक प्रभावी समाधान बनकर सामने आया है।

अब तक देशभर में 68 हजार से अधिक अमृत सरोवरों का निर्माण और पुनर्जीवन पूर्ण हो चुका है, जिससे अनेक क्षेत्रों में सतही एवं भूजल उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत ही 46 हजार से अधिक सरोवरों का निर्माण या पुनर्जीवन किया गया है। ये अमृत सरोवर न केवल तत्काल जल-आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं, बल्कि दीर्घकालिक जल-सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन को सुनिश्चित करने वाले स्थायी जल-स्रोतों के रूप में स्थापित हो चुके हैं।

आज जब देश जलवायु परिवर्तन, भूजल दोहन, और बढ़ते शहरी विस्तार जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है, ऐसे समय में अमृत सरोवर जैसे प्रयास हमें भविष्य के लिए सुरक्षित, समृद्ध और स्थायी विकल्प प्रदान करते हैं। इस परियोजना का सार है, “जल ही जीवन है, और जल का संरक्षण ही भविष्य की सुरक्षा है।”

देवियो और सज्जनो,

चण्डीगढ़ के ‘‘अमृत सरोवर’’ केवल जल-स्रोत नहीं हैं, वे इस शहर की धड़कन हैं। ये जलाशय हमारी जैव विविधता की रक्षा करते हैं, भू-जल स्तर में सुधार लाते हैं, और हमारे परिवेश को स्वच्छ, शांत और सौन्दर्य से परिपूर्ण बनाते हैं। 

इन सरोवरों का महत्व केवल पर्यावरणीय स्तर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज को प्रकृति से जोड़ने वाले एक सेतु की तरह भी कार्य करते हैं। जब हम किसी जलाशय को पुनर्जीवित करते हैं, तो वास्तव में हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन-स्रोत को सुरक्षित करते हैं।

आज धनास तालाब के बारे में हम बात कर रहे हैं, परंतु उतना ही महत्त्वपूर्ण है कि हम उन अन्य स्थलों को भी याद करें, जिनका संरक्षण निरंतर मेहनत और समर्पण से किया गया है। डड्डू माजरा, सारंगपुर, खुड्डा अलीशेर, और कैम्बवाला जैसे क्षेत्रों में जलाशयों का पुनर्विकास इस बात का प्रमाण है कि जब जनता और प्रशासन एक साथ कार्य करते हैं, तो प्राकृतिक संपदाएँ न केवल सुरक्षित रहती हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए और भी समृद्ध बनती हैं। ये सभी सरोवर सामुदायिक सहभागिता, जागरूकता और पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता के अद्भुत और प्रेरणादायी उदाहरण हैं।

मैं विशेष रूप से महिला स्वयं सहायता समूहों का उल्लेख करना चाहूँगा, जिन्होंने न केवल इन स्थलों की देखभाल की है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को सामाजिक आंदोलन का रूप दिया है। उनका समर्पण यह दर्शाता है कि जब समाज और प्रशासन मिलकर आगे बढ़ते हैं, तो परिणाम हमेशा सकारात्मक और प्रेरणादायक होते हैं।

देवियो और सज्जनो,

भारत सदियों से नदियों, तालाबों, कुओं और सरोवरों की संस्कृति वाला देश रहा है। जल को हमने सदैव “जीवन का स्रोत” माना है, और इसलिए जलस्रोतों का निर्माण, संरक्षण और पुनर्जीवन हमारी परंपरा, हमारी संस्कृति और हमारी लोक-आस्था का हिस्सा रहा है।

हमारे पूर्वज कहते थे, “संवरे तो सागर बने, बहे तो नाली बने।” अर्थात् जल को बचाया जाए तो जीवन बनता है, और व्यर्थ बहाया जाए तो विनाश।

भारत के हर गाँव में पहले तालाब, बावड़ियाँ, कुएँ, पोखर, जोहड़ सिर्फ जल-स्रोत नहीं थे, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन का केंद्रीय स्थान थे। हर व्यक्ति जल को पवित्र मानकर उसका सम्मान करता था। और यही सोच आज फिर जगाने की आवश्यकता है।

अमृत सरोवर परियोजना उसी प्राचीन परंपरा का आधुनिक पुनर्जागरण है, जहाँ संसाधनों का संरक्षण, सीमित उपयोग और पुनः उपयोग ही जीवन की नैतिकता थी।

श्री गुरु नानक देव जी ने भी सदियों पहले हमें प्रकृति के प्रति गहन संवेदनशीलता और श्रद्धा का संदेश दिया। उन्होंने कहा, “पवन गुरु, पानी पिता, माता धरत महत्त।” अर्थात् वायु गुरु के समान है, जो हमें जीवन का ज्ञान और प्रेरणा देती है; जल पिता के समान है, जो पोषण और जीवन शक्ति प्रदान करता है; और धरती माता के समान है, जो हमें अपनी गोद में संभालती और अन्न देती है। 

यह संदेश हमें याद दिलाता है कि स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल और स्वच्छ धरती केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं हैं, बल्कि हमारे जीवन का आधार और हमारी संस्कृति की आत्मा हैं। इनकी रक्षा करना और इन्हें स्वच्छ रखना हमारा नैतिक और आध्यात्मिक कर्तव्य है।

संसाधनों का न्यूनतम उपयोग करना, उन्हें सावधानीपूर्वक संरक्षित रखना, और आवश्यकता पड़ने पर पुनः उसी कार्य में अथवा किसी अन्य उपयोगी कार्य में लगाना, यह सदैव से हमारी जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहा है। भारतीय संस्कृति में “जितना आवश्यक उतना ही ग्रहण” करने की परंपरा रही है, और यही सोच आज सर्कुलर इकॉनमी और रिड्यूस-रीयूज़-रीसायकल जैसे आधुनिक सिद्धांतों का आधार बना है।

वास्तव में, सर्कुलर इकॉनमी कोई नया विचार नहीं है; यह हमारी प्राचीन जीवन-पद्धति का ही आधुनिक, वैज्ञानिक और व्यापक स्वरूप है। हमारे पूर्वज किसी वस्तु को फेंकने से पहले उसकी अनेक संभावनाओं पर विचार करते थे। पुराने कपड़े से थैला बनाना, मिट्टी के बर्तनों का पुनः प्रकृति में विलीन हो जाना, लकड़ी के प्रत्येक टुकड़े का किसी न किसी रूप में उपयोग, ये सभी उदाहरण दर्शाते हैं कि टिकाऊ जीवन का भाव हमारी संस्कृति में गहराई तक रचा-बसा है।

आज जब जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और बढ़ते कचरे की समस्या वैश्विक चुनौती बन गई है, तब रिड्यूस-रीयूज़-रीसायकल जैसी प्रणालियाँ केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुकी हैं। इसी सोच के साथ जल-आधारित संरचनाओं का पुनर्जीवन, वर्षाजल संचयन, अपशिष्ट जल का उपचार, और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण जैसे प्रयास ‘अमृत सरोवर’के वास्तविक उद्देश्य को और अधिक सार्थक बनाते हैं।

धनास सरोवर और अन्य महत्वपूर्ण जलाशयों का पुनर्विकास इसी सर्कुलर दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण है, जहाँ संसाधनों का संरक्षण, प्रकृति का पुनर्जागरण और भविष्य के प्रति हमारी जिम्मेदारी एक साथ प्रतिबिंबित होती है। यह पहल हमें यह भी याद दिलाती है कि स्थायी विकास केवल बड़े प्रोजेक्ट्स से नहीं, बल्कि हमारी दैनिक आदतों, सामुदायिक सहभागिता और पर्यावरण-सम्मत सोच से ही संभव हो सकता है।

देवियो और सज्जनो,

AMRUT 2.0 मिशन के अंतर्गत धनास तालाब का पुनरूद्धार केवल एक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना नहीं है, यह एक संकल्प है, एक प्रतिज्ञा है। यह संकल्प है टिकाऊ विकास का, स्वच्छ जल स्रोतों का, और संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र का। यह तालाब न केवल जल संरक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि पक्षियों, पौधों और अन्य जीवों के लिए भी सुरक्षित वास-स्थल बनेगा। इसके शांत जल में प्रकृति की गोद में बैठने जैसा सुकून है, और यही सुकून आने वाली पीढ़ियाँ भी अनुभव कर सकें, यह हमारा कर्तव्य है।

मैं नगर निगम चण्डीगढ़, परियोजना से जुड़े इंजीनियरों, पर्यावरण विशेषज्ञों, परामर्शदाताओं, सामाजिक संगठनों, स्थानीय निवासियों और समर्पित स्वयंसेवकों की सराहना करता हूँ। आपका योगदान यह दर्शाता है कि जब जिम्मेदारी, संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता साथ चलती है, तब परिवर्तन अवश्य आता है।

यह कार्य केवल मशीनों, योजनाओं और बजट से पूरा नहीं होता; यह पूरा होता है दिल से, लगन से और प्रकृति के प्रति प्रेम से, और आप सभी ने इसे सच्चे मन से निभाया है। यह पहल निस्संदेह अन्य शहरों के लिए भी प्रेरणा बनेगी। 

आज धनास तालाब के पुनर्जीवन का शिलान्यास एक संदेश देता है कि यदि हम चाहें, तो अपनी धरती को फिर से हरा-भरा और जीवंत बना सकते हैं। यह संदेश देता है कि विकास प्रकृति के विरोध में नहीं, बल्कि उसके साथ चलकर भी संभव है। यह संदेश देता है कि सामूहिक प्रयासों से असंभव भी संभव हो सकता है।

आइए, हम सब मिलकर यह प्रण लें कि हम अपने परिवेश को स्वच्छ रखेंगे, जल स्रोतों का संरक्षण करेंगे, वृक्षारोपण को बढ़ावा देंगे, और प्रकृति के प्रति संवेदनशील नागरिक बनेंगे।

एक स्वच्छ, हरा-भरा, और सतत चण्डीगढ़ तभी संभव है, जब हम सभी इसकी जिम्मेदारी साझा करें।

धनास तालाब का पुनरूद्धार केवल आज का उत्सव नहीं है, यह भविष्य के प्रति हमारा वादा है।

मेरा विश्वास है कि यह तालाब आने वाले वर्षों में पर्यावरण-चेतना का दीपक बनकर, हमें प्रकृति के महत्व का स्मरण कराता रहेगा।

अंत में, मैं आप सभी से आग्रह करता हूँ कि इस सुंदर धरोहर को सुरक्षित रखें, इसकी देखभाल में प्रशासन का सहयोग करें, और अपनी भावी पीढ़ियों के लिए एक बेहतर, स्वच्छ और सुंदर चण्डीगढ़ बनाने के इस अभियान में सहभागी बनें।

धन्यवाद,

जय हिन्द!