SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH , SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION KAR SEWA OF SAROVAR, SHREE DEVI TALAB MANDIR AT JALANDHAR ON NOVEMBER 7, 2025.
- by Admin
- 2025-11-07 17:05
देवी तालाब मंदिर के पवित्र सरोवर की कार सेवा के शुभारंभ पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 07.11.2025, शुक्रवार समयः दोपहर 3:00 बजे स्थानः जालंधर
नमस्कार!
सिद्ध शक्ति पीठ श्री देवी तालाब मंदिर में विराजमान 51 शक्ति पीठों में से एक माँ त्रिपुरमालिनी के पावन स्थान में उपस्थित देवियो और सज्जनो।
जय माता जी की!
आज मुझे यहाँ, शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर, जालंधर में आयोजित पावन-पवित्र सरोवर की कार सेवा के इस मंगलमय अवसर पर उपस्थित होकर अत्यंत हर्ष और गर्व हो रहा है। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत का संवर्धन, आध्यात्मिक एकता और सामाजिक सौहार्द की स्थापना का प्रत्यक्ष प्रतीक है।
श्री देवी तालाब मंदिर जालंधर शहर के अत्यंत हृदयस्थल में, एक विशाल और प्राचीन तालाब के मध्य स्थित है। इस मंदिर का इतिहास लगभग 200 वर्ष से अधिक पुराना माना जाता है, जबकि उसकी धार्मिक स्मृति-रेखाएँ इससे कहीं पुरानी, पुराणों और शक्ति परंपराओं में निहित हैं।
यह मान्यता है कि देवी सती का अंग यहाँ गिरा था, जब भगवान विष्णु ने शिव के तांडव को शांत करने हेतु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंगों को 51 स्थानों पर विभाजित कर दिया। यही कारण है कि देवी तालाब मंदिर को शक्ति पीठों में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ है, जिसे कुछ संदर्भों में त्रिपुरमालिनी शक्तिपीठ भी कहा जाता है।
श्री देवी तालाब मंदिर में विराजमान देवी त्रिपुरमालिनी का स्वरूप सनातन शक्ति, मातृत्व और दिव्यता का अद्वितीय प्रतीक है। यह स्वरूप देवी दुर्गा के सैकड़ों रूपों में से एक ‘विशेष’ रूप माना जाता है, जिसे तीनों लोकों की स्वामिनी (त्रिपुरा) और सभी प्रकार के संकट-नाशिनी ‘मालिनी’ के नाम से भी पूजा जाता है।
इतिहासकारों तथा स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, जालंधर नगर किसी समय दैत्यराज जालंधर के नाम पर प्रसिद्ध था और यहाँ कभी बारह पवित्र सरोवर हुआ करते थे। उनमें से देवी तालाब का सरोवर धार्मिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण माना गया।
यह वो पावन स्थान है जहाँ स्वयं भगवान शिव तथा अन्य देवताओं ने आकर इसे अपने चरणों से स्पर्श किया। इस पावन ऐतिहासिक स्थान का उल्लेख पुराणों में है तथा जो सौभाग्यशाली होते हैं उन्हें ही यहाँ आकर माँ के दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त होता है।
मुझे यहाँ आमंत्रित करके श्री देवी तालाब मंदिर कमेटी ने मुझ पर जो उपकार किया है, मैं उसे कभी भुला नहीं पाऊंगा। इसके लिए मैं कमेटी के अध्यक्ष श्री शीतल विज और पूरी कमेटी का आभार व्यक्त करता हूं।
यह जालंधर शहर एक ऐतिहासिक शहर है जहाँ देव दानव युद्ध हुआ, जहाँ माता तुलसी का निवास है तथा जहाँ पर भगवान शालिग़ राम का अवतार हुआ। और यह महान तीर्थ स्थान माँ त्रिपुरमालिनी का वो पावन स्थान है जहाँ मान्यता है कि समस्त देवी देवताओं के चरण पड़े हैं।
मंदिर के मध्य में स्थित विशाल सरोवर (तालाब) लगभग 200 वर्ष पुराना है और इसे केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि और जीवन ऊर्जा से जुड़ा हुआ माना जाता है।
यह तालाब न केवल पवित्र जल का स्रोत है, बल्कि भक्तों के लिए एक प्रतीकात्मक स्थान भी है जहाँ वे स्नान करके अपने अंदर की अशुद्धियों को धोने की प्रथा निभाते हैं।
मंदिर परिसर में माँ वैष्णो देवी गुफा और अमरनाथ गुफा का लघु रूप भी निर्मित किया गया है, जो श्रद्धालुओं को पवित्र तीर्थों का दिव्य अनुभव प्रदान करता है और साधना, संगीत तथा भक्ति की भावना को और भी गहराई प्रदान करता है।
मुझे बताया गया है कि लगभग 30 एकड़ में फैले इस विशाल मंदिर परिसर में लगभग 2 हजार श्रद्धालुओं के ठहरने की सुसज्जित व्यवस्था की गई है। साथ ही साधु-संतों के लिए 10 विशेष कक्ष भी निर्मित किए गए हैं। यहाँ 24 घंटे चलने वाला लंगर, निस्वार्थ सेवा और अन्नदान की भारतीय परंपरा का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
इसके अतिरिक्त, मंदिर प्रबंधक कमेटी द्वारा एक मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल भी चलाया जा रहा है, जिसमें बहुत उच्च कोटि के डॉक्टर्स, रेडियोलॉजिस्ट, फिजिशियन, गैस्ट्रोलॉजिस्ट, चाइल्ड स्पेशलिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, पैथोलॉजिस्ट, गायकोनोलॉजिस्ट इत्यादि द्वारा जरूरतमंद लोगों को अत्यंत सुलभ दरों पर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं।
इसके अलावा, इस हस्पताल में अत्याधुनिक मशीनरी जैसे कि MRI, CT Scan, X-Ray, Dailisis Machine और बड़ी उच्च कोटि की टेस्टिंग लैबोरेटरी भी जरूरतमंद लोगों के लिए बहुत कम रेट पर उपलब्ध है। यह इस संस्था की करुणा और मानव सेवा के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मंदिर से जुड़ी गौशाला में लगभग 1 हजार गौमाताओं की सतत सेवा और देखभाल की जाती है। यह भारतीय संस्कृति के उस गहरे भाव का प्रतीक है, जो ‘गौ सेवा ही नारायण सेवा’ मानता है।
मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई कि इस मंदिर से पंजाब भर के 400 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर जुड़े हुए हैं, जो इसी पावन धाम से मार्गदर्शन लेते हुए धर्म का प्रचार कर रहे हैं। इन्हें श्री देवी तालाब मंदिर कमेटी द्वारा समय-समय पर आर्थिक एवं व्यवस्थागत सहायता प्रदान की जाती है। यह संगठनात्मक समरसता और सहयोग की अनूठी मिसाल है।
मैं यह मानता हूँ कि श्री देवी तालाब मंदिर केवल उपासना का स्थल ही नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक चेतना का केंद्र भी है। यहाँ प्रतिवर्ष दिसंबर माह में आयोजित हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन उस गौरवशाली परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है, जो सदियों से शास्त्रीय हिंदुस्तानी संगीत की आत्मा को संजोए हुए है। यह सम्मेलन भारत की संगीत साधना, अध्यात्म और संस्कृति के अद्वितीय संगम का प्रतीक है।
मुझे बताया गया है कि आज हम श्री देवी तालाब मंदिर के पावन सरोवर की जिस कार सेवा के लिए एकत्रित हुए हैं, यह हर दस वर्षों में एक बार की जाती है।
इस कार सेवा के पावन आयोजन में हम सभी मिलकर देवी के इस तालाब की स्वच्छता, जल संरक्षण और आध्यात्मिक संरक्षा सुनिश्चित करते हैं। यह सिर्फ एक भौतिक उत्सव नहीं, बल्कि हमारी आत्मीयता का, हमारी आस्था का और हमारी सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक है।
यह सेवा हमें याद दिलाती है कि धार्मिक श्रद्धा और मानवता की सेवा साथ-साथ चल सकते हैं, और हमें भविष्य की पीढ़ियों के लिए इस पवित्र धरोहर को संरक्षित रखने का दायित्व है।
मेरा मानना है कि पवित्र स्थानों की देखभाल सिर्फ प्रबंधक कमेटियों की ही नहीं, पूरे समाज और प्रशासन की ज़िम्मेदारी है। मैं आज इस अवसर पर सभी नागरिकों, धार्मिक संस्थाओं और प्रशासनिक अधिकारियों से आग्रह करना चाहता हूँ कि वे इस सेवा में अपनी भूमिका निभाएं।
जल संरक्षण, पर्यावरण सुरक्षा और आध्यात्मिक जागरूकता इन क्षेत्रों को हम सभी मिलकर मजबूत बना सकते हैं।
यह तालाब हमें सिर्फ धार्मिक शुद्धि नहीं देता, बल्कि यह हमें मानव मूल्यों, सहिष्णुता और आध्यात्मिक एकता की ओर भी प्रेरित करता है। जैसा कि कहा गया है, “शुद्धता में शक्ति है, और सेवा में परमात्मा का साक्षात्कार।” इस सेवा के माध्यम से हम न सिर्फ एक मंदिर का सम्मान बढ़ा रहे हैं, बल्कि एक ऐसे समाज का भी निर्माण कर रहे हैं जहाँ करुणा, सद्भाव और सांस्कृतिक एकता की भावना हर दिल में बसी हो।
देवियो और सज्जनो,
सनातन परंपरा, भारत की आत्मा है, जो जीवन जीने की पूर्ण शैली है। यह परंपरा हमें सिखाती है कि प्रत्येक जीव में ईश्वर का अंश है और ‘सेवा ही सच्ची साधना’ है। करुणा, सहयोग, सत्य, और धर्म के सिद्धांतों पर आधारित यह परंपरा हमें समाज और प्रकृति के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराती है।
जब हम किसी सरोवर की कार सेवा करते हैं, तो वह केवल जलाशय की सफाई नहीं होती, बल्कि अपने भीतर की अशुद्धियों को दूर करने का एक प्रतीकात्मक प्रयास होता है। यह हमें स्मरण कराती है कि शुद्धता केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी होनी चाहिए।
आज जब पूरी दुनिया आर्थिक, तकनीकी और भौतिक प्रगति की दौड़ में आगे बढ़ रही है, तब मनुष्य का आंतरिक संतुलन, नैतिकता और करुणा पीछे छूटते जा रहे हैं। ऐसे समय में सनातन धर्म के सत्य, अहिंसा, करुणा, सेवा, त्याग, संयम और आत्म-साक्षात्कार के मूल्य हमें आत्मचिंतन की राह दिखाते हैं।
सनातन संस्कृति यह नहीं कहती कि आधुनिकता का विरोध करो, वह कहती है, “आधुनिक बनो, परंतु अपनी जड़ों से जुड़े रहो।” यह हमें सिखाती है कि विज्ञान और अध्यात्म, दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, विरोधी नहीं।
भारतीय संस्कृति ने कभी किसी पर अपनी विचारधारा थोपने का प्रयास नहीं किया। इसने सदा कहा कि “एकम सद्विप्रा बहुधा वदन्ति” यानी सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक रूपों में कहते हैं। यह उदारता, यह सहिष्णुता, यह समावेशी दृष्टि ही भारत की सबसे बड़ी शक्ति है।
इसीलिए भारत की संस्कृति आज भी विश्व के कोने-कोने में लोगों को आकर्षित करती है। योग, ध्यान, आयुर्वेद, संस्कृत और भारतीय दर्शन, ये सब आज वैश्विक चेतना के केंद्र में हैं।
साथियो,
मुझे यह देखकर प्रसन्नता होती है कि आज हमारे युवा अपनी जड़ों की ओर लौटने की इच्छा रखते हैं। मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ कि यदि तुम अपने जीवन में धर्म, संयम, सेवा और सत्य को आधार बनाओगे, तो न केवल अपने परिवार का, बल्कि पूरे राष्ट्र का गौरव बढ़ाओगे। भारत के “विकसित भारत 2047” के सपने को साकार करने में तुम्हारी यही संस्कृति सबसे बड़ी पूंजी बनेगी।
“धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यही कारण है कि आज की पीढ़ी के लिए यह अभियान अत्यंत प्रासंगिक है।
देवियो और सज्जनो,
अंत में मैं कहना चाहूंगा कि श्री देवी तालाब मंदिर जालंधर का केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक चेतना का केंद्र है। यह मंदिर लोक-आस्था, परंपरा, एकता और सांस्कृतिक गौरव का जीवंत प्रतीक है। इसकी वास्तुकला, आयोजन और श्रद्धालुओं की आस्था मिलकर इसे एक अद्वितीय धरोहर बनाते हैं।
हम सबका कर्तव्य है कि इसकी पवित्रता और परंपरा को संरक्षित रखते हुए सामाजिक एकता, करुणा, सहिष्णुता और सांस्कृतिक उत्थान के इसके मूल संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें। यही देवी माँ की सच्ची आराधना और समाज की समृद्धि का मार्ग है।
आज की यह कार सेवा न केवल धार्मिक क्रिया है, बल्कि हमारे सामाजिक और आत्मिक दायित्व का पुनः स्मरण है। मैं आप सभी को, विशेषकर मंदिर प्रबंधन समिति, सेवा दल और श्रद्धालुओं को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ।
आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें, “हमारा पवित्र सरोवर स्वच्छ रहे, हमारी आस्था अडिग रहे, और हमारी सेवा भाव स्थिर रहे।”
आप सभी को इस पवित्र आयोजन की बहुत-बहुत बधाई।
धन्यवाद,
जय हिन्द!