SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF BHARAT PARV 2025 AT GUJARAT ON NOVEMBER 14, 2025.
- by Admin
- 2025-11-14 20:10
गुजरात सरकार द्वारा मनाए जा रहे ‘भारत पर्व’ के अवसर पर राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 14.11.2025, शुक्रवार समयः शाम 5:15 बजे स्थानः एकता नगर, गुजरात
नमस्कार!
आज ‘भारत पर्व 2025’ के इस भव्य आयोजन में, एकता की धरती केवड़िया, जो स्वयं भारत की एकता के प्रतीक सरदार वल्लभभाई पटेल जी की प्रेरणास्थली है, पर उपस्थित होकर मैं अपने आप को अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ।
1 नवंबर से 15 नवंबर तक चलने वाला ‘भारत पर्व’ का यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की आत्मा के उत्सव का प्रतीक है, वह आत्मा जो विविधताओं के बीच एकता की अद्भुत शक्ति से ओतप्रोत है।
भारत पर्व, भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा आयोजित एक वार्षिक राष्ट्रीय उत्सव है, जो वर्ष 2016 में प्रारंभ हुआ था। अपनी स्थापना के बाद से यह पर्व एक सशक्त मंच के रूप में विकसित हुआ है, जहाँ भारत की विविध संस्कृति, समृद्ध परम्पराएँ, क्षेत्रीय व्यंजन, हस्तशिल्प और पर्यटन की असीम संभावनाएँ एक साथ प्रदर्शित होती हैं।
वर्ष दर वर्ष, यह आयोजन भारत सरकार के प्रमुख सांस्कृतिक उत्सवों में से एक बन गया है, जो देशभर के लोगों के साथ-साथ विश्वभर से आने वाले आगंतुकों को भी आकर्षित करता है।
यह आयोजन “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना का सजीव प्रतीक है, जो हमारी विविधता में निहित एकता को सुदृढ़ करता है, और नागरिकों को “देखो अपना देश” पहल के अंतर्गत अपने ही देश की सांस्कृतिक और प्राकृतिक संपदाओं को देखने, समझने और सराहने के लिए प्रेरित करता है।
इस वर्ष का ‘भारत पर्व’ विशेष और ऐतिहासिक है, क्योंकि पहली बार यह उत्सव दिल्ली से बाहर, गुजरात के एकता नगर में स्थित विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ पर आयोजित किया जा रहा है।
यह संस्करण एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित होगा, क्योंकि यह हमारे लौह पुरुष, भारत की एकता के शिल्पकार सरदार वल्लभभाई पटेल जी की 150वीं जयंती को समर्पित है।
यह आयोजन उन महान विचारों और उस दृढ़ संकल्प को स्मरण करता है, जिनके कारण आज हम एक अखंड और एकजुट भारत के रूप में खड़े हैं।
माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्व में, और गुजरात के माननीय मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्रभाई पटेल जी तथा माननीय उपमुख्यमंत्री श्री हर्ष सांघवी जी के मार्गदर्शन में यह आयोजन न केवल गुजरात, बल्कि सम्पूर्ण भारत की सांस्कृतिक विरासत को विश्व पटल पर उजागर कर रहा है।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का यह परिसर इस वर्ष भारत की विविधताओं के उत्सव का केंद्र बना है, जहाँ देश के कोने-कोने से आए रंग, स्वाद, शिल्प और संस्कृतियाँ एक साथ मिलकर भारत की आत्मा का अद्भुत चित्र प्रस्तुत कर रही हैं। यहाँ हर परंपरा, हर कला, हर संस्कृति एक स्वर में गूंज रही है, मानो यह संदेश दे रही हो “हम सब एक हैं, और यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।”
इस पर्व का आरंभ सरदार वल्लभभाई पटेल जी की जयंती से हुआ है, वह व्यक्तित्व जिन्होंने असंभव को संभव किया। उन्होंने 562 रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर ‘भारत माता’ को अखंड रूप प्रदान किया। जर्मनी के एकीकरण में ‘ओटो वॉन बिस्मार्क’ की भूमिका की तरह, पटेल के कूटनीतिक और राजनीतिक प्रयासों से अखंड भारत का निर्माण हुआ।
उनका विश्वास था कि “भारत एक है, भारत अखंड है, भारत सदा अखंड रहेगा।” जिसके चलते वे “भारत के बिस्मार्क” और “लौह पुरुष” के नाम से अमर हो गए। आज के इस अवसर पर हम उनके उस अदम्य संकल्प को पुनः जी रहे हैं।
उनकी यह वाणी हमें सदा प्रेरित करती है, उन्होंने कहा था कि “हमारे जीवन में एकता, अनुशासन और आत्मबल आवश्यक हैं, तभी हम सशक्त भारत का निर्माण कर सकते हैं।”
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ। कठिन परिश्रम, आत्मविश्वास और अनुशासन से उन्होंने अपने जीवन को गढ़ा और वकालत में उत्कृष्टता प्राप्त की।
वे भारतीय संविधान सभा के वरिष्ठतम नेताओं में से एक थे और संविधान निर्माण में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा। डॉ. भीमराव आंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त करने में तथा सिविल सेवाओं की स्वायत्तता सुनिश्चित करने वाले प्रावधान पारित कराने में उनका विशेष योगदान रहा। इसी कारण उन्हें “भारतीय सिविल सेवाओं का संरक्षक संत” कहा जाता है।
पटेल जी का राजनीतिक जीवन गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा। 1918 के खेड़ा सत्याग्रह, 1923 के झंडा सत्याग्रह, और 1928 के बारडोली सत्याग्रह में उनका योगदान अतुलनीय रहा। बारडोली में किसानों के हित में नेतृत्व करने के बाद उन्हें “सरदार” की उपाधि मिली। भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने जनसमूह के बीच ताकत और एकजुटता की प्रेरणा दी।
उनका योगदान केवल राजनीतिक नहीं था। उन्होंने समाज सुधार, शिविरों, महिला सशक्तिकरण, पंचायत राज, सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार जैसे कार्यों में भी सक्रिय भूमिका निभाई। उनकी कार्यशैली में व्यवहारिक नेतृत्व, संवाद, टीमवर्क और समावेशिता का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
हम हर वर्ष 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाकर उनके उस अमर संदेश को याद करते हैं जिसने भारत को एक सूत्र में बाँधा। उनका नेतृत्व साहस, अनुशासन, निर्णायकता और समावेशिता का प्रतीक था। वे मानते थे कि “नेतृत्व आदेश से नहीं, प्रेरणा से आता है।”
आज जब हम ‘भारत पर्व’ मना रहे हैं, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उस एकता के विचार का पुनर्स्मरण है जिसे सरदार पटेल ने अपने जीवन से साकार किया।
15 नवंबर, यानी कल जब यह भारत पर्व संपन्न होगा, वह भगवान बिरसा मुंडा की जयंती का दिन है, वह महापुरुष जिन्होंने जनजातीय समाज को अपने स्वाभिमान, संस्कृति और अधिकारों के लिए संगठित किया। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आत्मिक स्वाभिमान का नाम है।
प्रति वर्ष 15 नवंबर को हम ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में भगवान बिरसा मुंडा के अदम्य साहस, संघर्ष और बलिदान को नमन करते हैं। यह दिवस हमें उस भारत के निर्माण का संकल्प दिलाता है, जहाँ हर समाज, हर जनजाति और हर संस्कृति को समान सम्मान, समान अवसर और समान भागीदारी प्राप्त हो।
देवियो और सज्जनो,
“विविधता में एकता” भारत की पहचान है, जिसका निर्माण विविध भाषा, संस्कृति, धर्म के तानो-बानो, अहिंसा और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम तथा सांस्कृतिक विकास के समृद्ध इतिहास द्वारा हुआ है।
इसी दृष्टिकोण से हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने राष्ट्रीय एकता दिवस के उपलक्ष्य में 31 अक्टूबर 2015 को “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य मौजूदा सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में एकता को बढ़ावा देना है।
इस पहल के तहत हर राज्य की विरासत और परंपराओं को प्रकट करने पर जोर दिया जा रहा है। इसने विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों को एक-दूसरे से जोड़ा है और देश में एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान की है।
जितनी विविधता भारत में देखने को मिलती है, उतनी दुनिया के किसी अन्य देश में देखने को नहीं मिलती। फिर भी जब राष्ट्रगान की ध्वनि गूंजती है, तो 140 करोड़ भारतीय एक स्वर में “भारत माता की जय” का उद्घोष करते हैं, और यही एकता, हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।
इसी भावना का मूर्त रूप है “भारत पर्व” जिसका सार है “एक भारत, श्रेष्ठ भारत”। यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की आत्मा है, जो विविधता में एकता की अनंत शक्ति का प्रतीक है।
एकता नगर में आयोजित यह भारत पर्व उस जीवंत भारत की झांकी प्रस्तुत करता है, जहाँ परंपरा और प्रगति, संस्कृति और आधुनिकता, विरासत और नवाचार, सभी एक साथ मिलकर एक सशक्त और विकसित भारत का चित्र उकेरते हैं।
यहाँ उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। लोकगीत, नृत्य, हस्तशिल्प, व्यंजन, परिधान, हर रंग भारत की आत्मा का परिचय दे रहा है।
भारत की संस्कृति वह अमर दीपक है जो युगों से मानवता को दिशा दे रहा है। आज जब दुनिया अपनी पहचान तलाश रही है, भारत अपनी संस्कृति, योग, आयुर्वेद, विज्ञान और आध्यात्मिकता से विश्व को मार्गदर्शन दे रहा है।
मेरा मानना है कि श्रेष्ठ भारत का निर्माण तभी संभव है जब हमारे युवा और हमारी महिलाएँ समान रूप से सशक्त हों। सरकार द्वारा ‘स्टार्टअप इंडिया’, ‘स्किल इंडिया’, ‘नारी शक्ति वंदन’ जैसी योजनाएँ इस दिशा में परिवर्तनकारी कदम हैं।
आज का युवा केवल रोजगार का नहीं, बल्कि नवाचार का प्रतीक है। और हमारी महिलाएँ, जिन्होंने प्राचीन काल से लेकर आज तक समाज का मार्ग प्रशस्त किया, अब विज्ञान से लेकर सुरक्षा तक हर क्षेत्र में नेतृत्व कर रही हैं।
देवियो और सज्जनो,
यू.टी. चंडीगढ़ के प्रशासक के रूप में मुझे गर्व है कि भारत की योजनाबद्ध आधुनिक नगरी चंडीगढ़ स्वयं एकता, समरसता और आधुनिकता की प्रतीक है। यह पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी है, और भारत सरकार के अधीन एक केन्द्र शासित प्रदेश है।
यहाँ विभिन्न प्रांतों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोग रहते हैं, परंतु सबका उद्देश्य एक है, राष्ट्रहित और विकास।
हमारा प्रशासन भी प्रधानमंत्री जी के “विकसित भारत 2047” के विज़न को साकार करने में जुटा है और हम स्वच्छता, हरित प्रौद्योगिकी, डिजिटल सेवाएँ, और जनसहभागिता के माध्यम से एक समावेशी नगर के निर्माण की दिशा में अग्रसर हैं।
जब हम ‘भारत पर्व’ के इस मंच से देखते हैं, तो हमें एहसास होता है कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक विचार है। हमारी विविधता में जो सामंजस्य है, वही हमें विश्व में सांस्कृतिक लोकतंत्र का सबसे बड़ा उदाहरण बनाता है।
आज जब हम सरदार पटेल और भगवान बिरसा मुंडा की स्मृति में यह पर्व मना रहे हैं, तो हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में एकता, समरसता, और सेवा की भावना को अपनाएँगे।
हम अपने देश की संस्कृति का संरक्षण करेंगे, और आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाएँगे कि भारत केवल एक भूमि नहीं, बल्कि एक भावना है, जिसे प्रेम, परिश्रम और एकता से सींचना हमारा कर्तव्य है।
जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान, और सबसे ऊपर, जय एकता!
भारत माता की जय!
धन्यवाद,
जय हिंद!