SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF FOUNDATION DAY OF NAGALAND/ASSAM/JHARKHAND & UTTARKHAND AT PUNJAB RAJ BHAVAN ON DECEMBER 4, 2025.
- by Admin
- 2025-12-04 20:30
उत्तराखण्ड, झारखंड, असम और नागालैंड राज्यों के स्थापना दिवस पर माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का सम्बोधन दिनांकः 04.12.2025, वीरवार समयः शाम 4.00 बजे स्थानः पंजाब राजभवन
सभी को मेरा नमस्कार!
आज हम यहाँ उत्तराखण्ड, झारखंड, असम और नागालैंड राज्यों का स्थापना दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं।
इस अवसर पर सबसे पहले, मैं हमारे देश की 562 रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर आधुनिक और अखंड भारत की नींव रखने वाले लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
उनका विश्वास था कि “भारत एक है, भारत अखंड है, भारत सदा अखंड रहेगा।” जिसके चलते वे “भारत के बिस्मार्क” और “लौह पुरुष” के नाम से अमर हो गए।
हम सभी अक्सर यह कहते हैं कि सरदार पटेल ने भारत का एकीकरण किया, लेकिन यह “कैसे” किया, यह पक्ष उतना विस्तार से सामने नहीं आता। उस समय कुछ रियासतें कई यूरोपीय देशों से भी बड़ी थीं, कुछ का आकार तो फ्रांस जितना विशाल था। इतने विविध, स्वतंत्र, बड़े और छोटे राज्यों को दो वर्षों से भी कम समय में एक राष्ट्र के सूत्र में पिरो देना कोई साधारण कार्य नहीं था। यह पटेल जी की अद्भुत दूरदृष्टि, अटूट राष्ट्रीय प्रतिबद्धता और विलक्षण प्रशासनिक कौशल था।
हमारे राष्ट्र के युवाओं को सरदार पटेल के अद्वितीय राष्ट्रभक्ति भाव, उनके अनुशासन, सरलता और उच्च विचारों से परिचित कराना अत्यंत आवश्यक है। मैं सरदार पटेल के जीवन के एक प्रसंग का उल्लेख करना चाहूँगा, जो उनके संपूर्ण जीवन में निहित त्याग और महानता को दर्शाता है।
युवावस्था का एक प्रसंग उनके चरित्र की विशेषता को उजागर करता है। सरदार पटेल इंग्लैंड में उच्च विधि शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने अपने लिए टिकट बुक कराया, जिस पर वी.जे. पटेल लिखा हुआ था। यही आद्याक्षर उनके बड़े भाई विठ्ठलभाई पटेल के भी थे।
संयोगवश, बड़े भाई भी इंग्लैंड जाकर उच्च अध्ययन करना चाहते थे। ऐसे में दोनों भाइयों ने निर्णय किया कि बड़े भाई ही इंग्लैंड जाएँगे। वल्लभभाई ने एक क्षण भी विलंब नहीं किया और बड़े भाई के हित को अपने हित से ऊपर रखा। बाद में, अपनी पत्नी के निधन के दो वर्ष बाद वल्लभभाई स्वयं इंग्लैंड गए और अपनी पढ़ाई टॉप पोज़िशन से पूर्ण की।
आज भारत के युवाओं के लिए सरदार पटेल का जीवन एक उज्ज्वल मार्गदर्शक है, जो सिखाता है कि सफलता केवल प्रतिभा से नहीं, बल्कि चरित्र की दृढ़ता, निष्ठा और नैतिकता से प्राप्त होती है।
सरदार पटेल का जीवन हमें प्रेरित करता है कि यदि संकल्प सच्चा हो और मनोबल दृढ़ हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं। यही भावना हमें राष्ट्रनिर्माण के पथ पर आगे बढ़ाती है और ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की नींव को और सुदृढ़ बनाती है।
आज हम जिस “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” की भावना के साथ विभिन्न राज्यों के स्थापना दिवस का यह उत्सव मना रहे हैं, उसका श्रेय भी सरदार पटेल जी की अदम्य इच्छाशक्ति, अद्भुत दूरदृष्टि और राष्ट्र-एकीकरण के प्रति उनके अथक प्रयासों को ही जाता है। यदि उनके नेतृत्व में राज्यों का यह ऐतिहासिक एकीकरण न हुआ होता, तो हम आज इस विविधता से भरे, परंतु एकता से जुड़े भारत के गौरव को इस रूप में नहीं मना पाते।
इसी एकता की शक्ति के कारण हम भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं के बीच भी ‘भारतीयता’ के भाव के साथ एक दूसरे के उत्सवों में सहभागी बनते हैं और राष्ट्र की समग्र प्रगति में अपना योगदान देते हैं।
मित्रों,
भारत, जिसे ‘‘अनेकता में एकता’’ का प्रतीक माना जाता है, दुनिया का एक ऐसा देश है जहाँ भाषा, धर्म, संस्कृति, परंपराएँ, और जीवनशैली में अनगिनत विविधताएँ हैं। यहाँ हर कुछ किलोमीटर की दूरी पर भाषा, खान-पान और पहनावे में परिवर्तन देखने को मिलता है, फिर भी यह देश राष्ट्रवाद एकता के सूत्र में बंधा हुआ है।
इसी दृष्टिकोण से हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के सम्मान में मनाए जाने वाले राष्ट्रीय एकता दिवस के उपलक्ष्य में 31 अक्टूबर 2015 को “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य मौजूदा सांस्कृतिक संबंधों के माध्यम से देश के विभिन्न भागों में एकता को बढ़ावा देना है।
इस पहल के तहत हर राज्य की विरासत और परंपराओं को प्रकट करने पर जोर दिया जा रहा है। इसने विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों को एक-दूसरे से जोड़ा है और देश में एकता और अखंडता को मजबूती प्रदान की है।
स्थापना दिवस का यह कार्यक्रम कला, संगीत, नृत्य, भोजन, खेल आदि जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक-दूसरे के साथ जोड़ने का काम कर रहा है, उनके बीच सांस्कृतिक और भाषाई आदान-प्रदान को बढ़ावा दे रहा है।
साथियो,
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत की संस्कृति अत्यंत प्राचीन और समृद्ध है। हम यह भी जानते हैं कि हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता है विविधता में एकता। इन विविधताओं के बावजूद, पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, हम ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से एकता की डोर से बंधे हुए हैं।
भारत में 22 आधिकारिक भाषाएँ हैं और 19 हजार 500 से अधिक बोलियाँ बोली जाती हैं जो इसे दुनिया का सबसे बहुभाषी देश बनाती हैं। हर राज्य का अपना एक सांस्कृतिक रंग है।
धर्म और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में भी भारत विश्व में अद्वितीय है। यहाँ हर धर्म के लोग सौहार्दपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। यह विविधता हमें सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश देती है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर वर्तमान समय तक, विविधता में एकता का दर्शन हमारी राष्ट्रीय एकता का मूल आधार रहा है। जब भी देश पर कोई संकट आया है, हर धर्म, जाति, और भाषा के लोग एक साथ खड़े हुए हैं।
भारत में हर धर्म और समुदाय के त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। दीवाली, ईद, क्रिसमस, गुरुपर्व, और बौद्ध पूर्णिमा जैसे त्योहारों का महत्व न केवल धार्मिक है, बल्कि वे सभी के लिए एक साथ आने का अवसर प्रदान करते हैं।
इसी एकता की डोर को मजबूत किया है हमारे संविधान ने। संविधान में भी हमारे अधिकारों में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। उनको अवसर प्रदान करने में भी भेदभाव नहीं किया जाएगा।
हमारी शान, हमारा राष्ट्रगान की एक पंक्ति पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा में भी विभिन्न प्रांतों को एक एक सूत्र में बाँधा गया है।
हमारी संस्कृति का आधार हमारे पुरातन वेद ग्रंथ हैं जैसे गीता, रामायण, गुरू ग्रंथ साहिब आदि। इन्होंने मानवता की भलाई का संदेश दिया जो आज भी प्रासंगिक है।
आमतौर पर देखा जाए तो अधिकतर देशों का मौसम एक तरह का होता है पर हमारे भारत की जलवायु की विशेषता देखिए यहाँ हर तरह का मौसम पाया जाता है जैसे सर्दी, गर्मी, बरसात, बंसत ऋतु आदि। ऐसा भारत में ही देखने को मिलता है जहाँ सियाचिन के माइनस तापमान से लेकर राजस्थान जैसे उच्च तापमान वाले राज्य हैं।
आज जब हम देश के 4 राज्यों का स्थापना दिवस मना रहे हैं, तो मैं आप सभी को इन प्रदेशों की विशिष्टताओं से अवगत कराना चाहता हूँ।
उत्तराखण्ड
सबसे पहले मैं उत्तराखंड की बात करना चाहूंगा। मैं यहां के महान सपूतों पर्यावरण-चिन्तक एवं चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेता श्री सुंदरलाल बहुगुणा, देश के पहले Chief of Defence Staff रहे जनरल बिपिन रावत और श्री देव सुमन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नौजवान स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करता हूँ।
इस पहाड़ी राज्य ने मां भारती को कई और वीर सपूत भी दिए हैं जिनमें पहाड़ी संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले मोहन उप्रेती, स्वतंत्रता सेनानी व उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री श्री गोविन्द बल्लभ पंत और उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल है।
इसके इलावा राइफलमैन जसवंत सिंह रावत से लेकर रणबांकुरे दरबान सिंह नेगी जैसे वीर सपूतों ने जन्म लिया था जिनका नाम आज भी राज्य और देश को गर्व से भर देता है।
यहां की कुछ महिला शक्तियों की बात की जाए तो उनमें रानी कर्णावती जैसी वीरांगना, गौरा देवी जैसी वन संरक्षक और माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाली पहली महिला बछेंद्री पाल जैसी वीरांगना शामिल हैं जिनकी जीवनगाथाओं में गरिमा और शक्ति का अंश मिलता है।
उत्तराखण्ड हिमालय की तलहटी पर बसा एक सुन्दर पहाड़ी राज्य है। यह राज्य पर्यटन के साथ-साथ अपनी संस्कृति परंपराओं व पारस्परिक सौहार्द के लिए भी विश्वभर में जाना जाता है। उत्तराखण्ड राज्य का वर्तमान जितना रोचक व आकर्षण से परिपूर्ण है, उतना ही रोचक व महान इस राज्य का इतिहास भी है।
2000 और 2006 के बीच यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था, 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड देश के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।
यहां का मसूरी शहर जिसे “पहाड़ों की रानी” भी कहा जाता है, उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है।
यह तीर्थ यात्रा और पर्यटन की दृष्टि से विशेष महत्त्व रखता है। यहाँ हरिद्वार, ऋषिकेश सहित चारों धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री हैं। इसके पवित्र तीर्थस्थलों के कारण ही इसे देवताओं की धरती ‘देवभूमि’ कहा जाता है। यह राज्य हिन्दू धर्म में सबसे पवित्र मानी जाने वाली देश की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना का उद्गम स्थल भी है।
कहते हैं कि जब राजा भागीरथ गंगा जी को धरती पर लाए तो यह हरिद्वार के रास्ते से गुजरी थी और इसी कारण हरिद्वार को गंगा का प्राचीन द्वार भी कहते हैं।
उत्तराखण्ड केवल हिन्दुओं के लिए ही तीर्थस्थल नहीं है। हिमालय की गोद में स्थित हेमकुण्ड साहिब, सिखों का तीर्थ स्थल है। मिंद्रोलिंग मठ और उसके बौद्ध स्तूप से यहाँ तिब्बती बौद्ध धर्म की भी उपस्थिति है।
कहा जाता है कि महान ऋषि वेद व्यास जी ने महाभारत की रचना इसी धरती पर की थी और गुरू द्रोणाचार्य जी का आश्रम भी यहीं पर था। ऐसा माना जाता है कि पांडव अपनी अंतिम यात्रा पर उत्तराखंड में रुके थे।
यह लोक-मान्यता है कि लक्ष्मण जी के उपचार के लिए इसी क्षेत्र के द्रोण-पर्वत को ‘संजीवनी बूटी’ सहित हनुमान जी लेकर गए थे। इस तरह आध्यात्मिक शांति और शारीरिक उपचार दोनों ही दृष्टियों से उत्तराखंड कल्याण का स्रोत रहा है।
उत्तराखण्ड के शैक्षणिक संस्थान भारत और विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये एशिया के कुछ सबसे पुराने इंजीनियरिंग संस्थानों का गृहस्थान रहा है, जैसे IIT Roorkee और पन्तनगर का गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। इनके अलावा विशेष महत्व के अन्य संस्थानों में, देहरादून स्थित Indian Military Academy, Wildlife Institute of India और द्वाराहाट स्थित कुमाऊँ इंजीनियरिंग कॉलेज भी हैं।
मुझे खुशी है कि आज उत्तराखण्ड चार धाम यात्रा से आगे बढ़कर, वैश्विक वेलनेस डेस्टिनेशन, वेडिंग डेस्टिनेशन, शूटिंग डेस्टिनेशन, योग और आयुर्वेद डेस्टिनेशन आदि कई दिशाओं में आगे बढ़ रहा है। आज सैकड़ों युवा अपने गाँव लौटकर आत्मनिर्भरता और स्वावलम्बन का नया अध्याय लिखने लगे हैं।
झारखण्ड
झारखंड की बात करुं तो सबसे पहले मैं झारखण्ड के महान क्रांतिकारी एवं अदम्य जननायक भगवान बिरसा मुंडा को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। झारखण्ड की अस्मिता और आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए संघर्षरत बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के विरुद्ध एक संगठित और साहसिक जन-विद्रोह का नेतृत्व किया था। उनके बारें में कहानियाँ और गीत पूरे झारखंड में आज भी गाए जाते हैं।
15 नवंबर 2021 को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बिरसा मुंडा को उनके जन्मदिवस पर सम्मान देते हुए एक ऐतिहासिक फैसला लिया था कि हर वर्ष देश 15 नवम्बर, यानी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस को ‘जन-जातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाएगा। इसी दिन माननीय प्रधानमंत्री जी ने झारखंड में देश का पहला जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी म्यूज़ियम देशवासियों को समर्पित किया था।
झारखंड का कोना-कोना महान विभूतियों की स्मृतियों से जुड़ा हुआ है। तिलका मांझी, नीलाम्बर-पीताम्बर भाईयों, सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव, फूलो-झानो और परमवीर चक्र से सम्मानित अल्बर्ट एक्का जैसे अनेक वीरों की गाथाओं से यहां का गौरवशाली इतिहास परिपूर्ण है।
झारखण्ड ने देश को श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के रूप में पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति दी है। श्रीमती मुर्मू की सफलता हर महिला और आदिवासी समुदाय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका जीवन यह दर्शाता है कि समाज की कोई भी वर्ग चाहे वो आदिवासी हो, दलित हो या महिला हो, अगर उसे अवसर मिलें, तो वह किसी भी शिखर तक पहुँच सकता है।
इसके अलावा इस राज्य ने प्रसिद्ध क्रांतिकारी बुधु भगत, भारतीय क्रिकेट को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने वाले महेन्द्र सिंह धोनी, प्रसिद्ध मुक्केबाज़ अरूणा मिश्रा, झारखंड आंदोलन के पुरोधा बिनोद बिहारी महतो आदि जैसे कई व्यक्तित्वों को जन्म दिया है।
झारखण्ड राज्य का गठन 15 नवम्बर 2000 को भारत सरकार द्वारा बिहार से पृथक कर एक नए राज्य के रूप में किया गया। यह भूभाग अपनी वीर परंपरा, समृद्ध संस्कृति और प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रसिद्ध है। इसी ऐतिहासिक दिन पर, श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प के कारण झारखण्ड का स्वप्न साकार हुआ। उन्होंने देश में सर्वप्रथम अलग आदिवासी मंत्रालय की स्थापना कर आदिवासी समाज के हितों को राष्ट्रीय नीतियों से जोड़ने का ऐतिहासिक निर्णय लिया।
झारखंड का सांस्कृतिक धरोहर अत्यंत समृद्ध है। यहाँ की लोक कला, संगीत, नृत्य, और पारंपरिक उत्सवों में राज्य की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि झलकती है। यहां के आदिवासी समुदायों के अनमोल रीति-रिवाज, उनके पारंपरिक जीवनशैली और संघर्ष की कहानियाँ हमारे इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं।
झारखण्ड राज्य का वृक्षों से विशिष्ट संबंध रहा है। यहाँ हर्षोल्लास के साथ सरहुल पर्व मानाया जाता है जिसमें वृक्ष की पूजा की जाती है। यहाँ के प्रत्येक घर के आँगन में हरा पेड़ अवश्य नजर आएगा। यहाँ हजारीबाग जैसा सुंदर अभयारण्य मौजूद है।
झारखंड की धरती को रत्नगर्भा भी कहा जाता है क्योंकि इस राज्य की धरती के गर्भ में अमूल्य खनिज पदार्थ विद्यमान हैं। खनिज संपदा की दृष्टि से झारखंड देश के सबसे समृद्ध राज्यों में है।
यहां के दुमका जिले में 108 टेराकोटा मंदिरों का मलूटी गाँव, झारखंड की सांस्कृतिक धरोहर है।
असम
असम की बात करें तो, मैं तो असम का राज्यपाल भी रहा हूं। इसलिए मैं तो इस प्रदेश से भलिभांति परिचित हूं। असम विविधताओं से भरी भूमि है, जिसे उसकी हरियाली, शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र नदी और मेहनती लोगों ने अद्वितीय बनाया है। चाय के बागानों से लेकर बिहू उत्सव की धुनों तक, सत्त्रिया नृत्य और अहोम साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास तक, असम ने हमेशा भारत की संस्कृति और परंपराओं में एक विशेष स्थान बनाया है।
असम भारत की विविधता का प्रतीक है, जहाँ अनेक समुदाय, भाषाएँ और परंपराएँ शांतिपूर्ण ढंग से सह-अस्तित्व में रहती हैं। असम की भूमि जैव विविधता का भंडार है और साथ ही कला, साहित्य और हस्तशिल्प का केंद्र भी। यहाँ के पर्यटन स्थलों में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, तिलिंगा मंदिर, माजुली द्वीप, कामाख्या मंदिर प्रमुख हैं।
इस राज्य में सबसे अधिक चाय का उत्पादन होता है जो देश-विदेश में बहुत पसंद की जाती है।
असम ने दुनिया को ज्योति प्रसाद अग्रवाल, भूपेन हजारिका और विष्णु प्रसाद राभा जैसे महान कलाकार दिए हैं, जिन्होंने असम की सांस्कृतिक संपदा को विश्व मंच तक पहुँचाया।
अगर हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखेंगे तो पता चलेगा कि असम के लोगों ने अनेकों बार तुर्कों, अफगानों, मुगलों के आक्रमणों का मुक़ाबला किया, और आक्रमणकारियों को पीछे खदेड़ा।
अपनी पूरी ताकत झोंककर मुगलों ने गुवाहाटी पर कब्ज़ा कर लिया था। लेकिन, लचित बोरफुकन जैसे योद्धा आए, और अत्याचारी मुगल सल्तनत के हाथ से गुवाहाटी को आज़ाद करवा लिया।
औरंगजेब ने हार की उस कालिख को मिटाने की हर मुमकिन कोशिश की, लेकिन वो हमेशा-हमेशा असफल ही रहा।
वीर लचित बोरफुकन ने जो वीरता दिखाई, जो साहस दिखाया, वो मातृभूमि के लिए अगाध प्रेम की पराकाष्ठा भी थी। लचित बोरफुकन जैसा साहस, उनके जैसी निडरता, यही तो असम की पहचान है।
स्वाधीनता संग्राम और भारत के नवनिर्माण में अमूल्य योगदान देने वाले भारत-रत्न, लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई की स्मृति को भी मैं सादर नमन करता हूं।
आज असम शिक्षा, प्रौद्योगिकी, पर्यटन और उद्योग के क्षेत्रों में प्रगति कर रहा है। यह असम के लोगों की कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता का परिणाम है।
नागालैंड
नागालैंड की बात करूं तो इसका गठन 1 दिसंबर 1963 को इसे असम से अलग करके ही किया गया था। नागालैंड का उद्घाटन करते समय, डॉ. एस. राधाकृष्णन ने नागा लोगों की प्रशंसा करते हुए कहा था, ‘‘आपमें न केवल निष्ठा, वीरता और अनुशासन के गुण हैं, बल्कि मेहनत की आदत, सौंदर्य की सहज भावना और कलात्मक कौशल भी है... मुझे उम्मीद है कि सभी नागा लोग उन्हें मिले नए अवसरों का पूरा लाभ उठाएंगे और देश की समृद्धि और प्रगति के निर्माण में हिस्सा लेंगे।’’
नागालैंड न केवल अपनी भौगोलिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की विविध परंपराएँ और समुदायों के बीच की एकता इसे और भी खास बनाती हैं। अपने पहाड़ों, सुरम्य परिदृश्य, जंगलों और हरियाली के कारण, नागालैंड को अक्सर ‘‘पूर्व का स्विट्जरलैंड’’ कहा जाता है।
नागालैंड भारत का एक अनमोल हिस्सा है। नागा संस्कृति अपने संगीत, नृत्य, हस्तशिल्प और त्योहारों के लिए जानी जाती है। विशेष रूप से, हॉर्नबिल महोत्सव ने नागालैंड को वैश्विक पहचान दी है। गीत और नृत्य, दावतें और त्यौहार नागा जीवन का अभिन्न अंग हैं।
नागालैंड की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विविधता है। यहाँ की विभिन्न जनजातियाँ अपने अद्वितीय रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ हमारे देश की सांस्कृतिक माला में एक सुंदर मोती की तरह हैं।
देवियो और सज्जनो,
ये तो केवल हमारे महान राष्ट्र के चार राज्यों की विशेषताएँ हैं; किंतु सच्चाई यह है कि भारत का हर राज्य अपनी अनोखी पहचान, अद्भुत विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर अपने भीतर समेटे हुए है।
कहीं हिमालय की ऊँचाइयों में बसती अध्यात्म की धुन है, कहीं समुद्र तटों पर खड़ी प्रगति की नई लहरें, कहीं परंपरा की गहरी जड़ें हैं, तो कहीं विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार की तेज़ उभरती हुई लहरें। हमारा हर राज्य भारत के राष्ट्रीय चरित्र को और अधिक जीवंत, अधिक दृढ़ और अधिक सशक्त बनाता है। यही विविधता, यही समरसता और यही परस्पर सम्मान हमारे ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की बुनियाद है। और यही भारत की वास्तविक ताक़त भी है कि विविधता में भी हम एक हैं, और एकता में भी हमारी विविधता खिलती है।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने राज्यों की शांति, सद्भावना, और अखंडता को बनाए रखें। हर राज्य का विकास भारत की समग्र प्रगति में योगदान देता है।
मैं समझता हूं कि राज्यों को अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर, भाषा, और परंपराओं को संरक्षित और बढ़ावा देने का काम निरंतर करते रहना चाहिए क्योंकि विविधता ही भारत की असली ताकत है।
साथ ही राज्यों की शिक्षा नीति और स्वास्थ्य सेवाएँ जैसे महत्वपूर्ण पहलु सीधे नागरिकों के जीवन को प्रभावित करते हैं। राज्यों का कर्तव्य है कि वे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करें।
शांति और स्थिरता केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह हर नागरिक का दायित्व है। जब हम मिलकर समाज में शांति और सद्भावना बनाए रखने की कोशिश करते हैं, तो हम अपने देश को प्रगति और समृद्धि की ओर ले जाते हैं।
हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी का विकसित भारत 2047 का सपना तभी साकार होगा, जब हर राज्य अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ निभाए।
हर राज्य का विकास भारत के समग्र विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। मेरा पूर्ण विश्वास है कि हमारा देश अपने लक्ष्यों को जल्द पूरा करते हुए श्रेष्ठ भारत बनेगा।
अंत में मैं कहना चाहूंगा कि अनेकता ही हमारी ताकत है, और इस विविधता में निहित एकता ही भारत की असली पहचान है। आइए, इस विविधता को संजोकर रखें और इसे भारत की शक्ति बनाएं।
इसी कामना के साथ एक बार फिर आज के इस अवसर की आप सभी को बहुत-बहुत बधाई। बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
धन्यवाद,
जय हिन्द!