SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF INAUGURATION OF CRAFT MELA AT CHANDIGARH ON DECEMEBER 5, 2025.

‘चंडीगढ़ क्राफ्ट मेला’ के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का सम्बोधन

दिनांकः 05.12.2025, शुक्रवारसमयः शाम 6:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

नमस्कार!

आज ‘चंडीगढ़ क्राफ्ट मेले’ के इस भव्य आयोजन में उपस्थित होकर मुझे अत्यंत हर्ष और गर्व महसूस हो रहा है। यह मेला एक सांस्कृतिक उत्सव तो है ही, साथ ही यह हमारी अमूल्य धरोहर हमारी कला, हमारे शिल्प, और हमारे कारीगर भाइयों-बहनों को सम्मान देने का एक अवसर भी है।

पिछले वर्ष भी मुझे इस मेले में आने का अवसर मिला था। मैं इस महत्वपूर्ण आयोजन के लिए उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र और चंडीगढ़ प्रशासन को हार्दिक बधाई देता हूँ, जिनकी निरंतर प्रतिबद्धता ने इस मेले को देशभर के कलाकारों और कला-प्रेमियों के लिए एक विशिष्ट मंच बनाया है।

देवियो और सज्जनो,

भारत विविधताओं का देश है। यहाँ हर कोने में संस्कृति, परंपरा और कला की अनूठी छवि देखने को मिलती है। इस समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने 1986 में क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना की। 

इन केंद्रों में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला; दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, तंजावुर; पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता; पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर; उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज; उत्तर पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, दीमापुर और दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर शामिल हैं जो देश की सांस्कृतिक एकता और विविधता को सशक्त बनाने के लिए काम करते हैं।

इन केंद्रों का मुख्य उद्देश्य स्थानीय कला, संगीत, नृत्य, नाटक, और परंपराओं को संरक्षित करना और देशभर में उन्हें प्रचारित करना है। साथ ही, यह विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देते हैं।

देवियो और सज्जनो,

चंडीगढ़, जो आधुनिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है, आज पारंपरिक कला और संस्कृति के रंगों से सराबोर हो उठा है। यह मेला हमारे विविधतापूर्ण भारत की उस सुंदरता को दर्शाता है, जिसमें हर प्रदेश, हर समुदाय, और हर घर की अपनी अनूठी कला और कहानी है।

भारतीय शिल्प केवल बाजार का सामान नहीं है; यह हमारे इतिहास का स्पंदन है, हमारे समाज की आत्मा है, और हमारे पूर्वजों की सृजनशीलता का जीवंत दस्तावेज़ है। कोई भी देश तब महान कहलाता है, जब वह अपनी परंपराओं को संजोए रखते हुए, नए युग का स्वागत करता है। इस मेले का उद्देश्य ठीक यही है, पुरातन संस्कृति और आधुनिक संवेदनशीलता का संतुलित संगम।

यह मेला केवल हस्तशिल्प का प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जहाँ शहरी और ग्रामीण संस्कृति का संगम होता है। यहाँ आने वाले लोग न केवल हस्तशिल्प के उत्पादों को खरीदते हैं, बल्कि उन्हें बनाने की प्रक्रिया और उनकी सांस्कृतिक महत्ता को भी समझते हैं।

हस्तशिल्प मेला छोटे व्यापारियों और कलाकारों को प्रोत्साहन देता है। यह उनके जीवन-यापन का साधन बनता है और उनके हुनर को नई पहचान देता है। साथ ही, पर्यटकों के लिए यह मेला हमारे देश की विविधता को करीब से जानने का अवसर प्रदान करता है।

मेरा मानना है कि इस तरह के मेले और आयोजन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को प्रदर्शित करने और उसे आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस मेले का स्वरूप इस प्रकार का है कि इसमें सभी आयु वर्गों के लिए कुछ ना कुछ मिलता है।

मुझे बताया गया है कि सुबह के समय स्कूली बच्चों के लिए कार्यक्रम होते हैं और सांस्कृतिक प्रश्नोत्तरी भी होती है। उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र का ये प्रयास बहुत ही सराहनीय है। इस तरह बच्चे अपनी सांस्कृतिक धरोहर से ना केवल परिचित होते हैं बल्कि उस पर उन्हें गर्व भी होता है।

मैं यहाँ देश के विभिन्न राज्यों से आये हुए लगभग 500 लोक कलाक़ारों का भी स्वागत करता हूं। इतने दूर-दूर से आये हुए कलाकार जब अपनी कलाओं का जादू बिखेरते हैं तो हमें अपनी विरासत पर ना केवल गर्व होता है बल्कि उनके संरक्षण और संवर्धन का दायित्व बोध भी होता है। 

इनकी कला में विविधता होते हुए भी एक आत्मा मिलती है जिसे हम भारतीयता कहते हैं। हमें इसी भारतीयता को बचाकर रखना है जो बहुत समृद्धशाली होने के साथ-साथ हमारे आदर्श वाक्य “वसुधैव कुटुम्बकम्” को  सिद्ध भी करती है।

हमारे देश के कारीगर, दस्तकार, बुनकर, कुम्हार, चित्रकार और नक्काशीकार सिर्फ कलाकार नहीं हैं, वे हमारी संस्कृति के सच्चे दूत हैं। वर्षों की साधना, पीढ़ियों की परंपरा, और बारीकियों में छिपा कौशल, ये सब उनकी हथेलियों से आकार लेता है और कला का ऐसा रूप बनता है, जिसे दुनिया न केवल सराहती है, बल्कि सीखने का प्रयास भी करती है।

आज यहाँ उपस्थित प्रत्येक स्टॉल, प्रत्येक कलाकृति, और प्रत्येक कलाकार अपने आप में एक कहानी है। कहीं फुल्कारी की चमक है, कहीं रंगाई-बुनाई की महक, कहीं नक्काशी का सौंदर्य, कहीं मिट्टी की खुशबू, और कहीं लोक-संगीत और लोक-कला का अद्भुत समन्वय।

मैंने देखा कि इस बार प्रदर्शनी में कई रोचक विषयों को जोड़ा गया है। पुराने और दुर्लभ कैमरों और टेलीफोन का संग्रहण बहुत अद्भुत है और निश्चित ही मेरे चंडीगढ़ वासियों को ये पसंद आ रहा होगा। इस अवसर पर पत्थर में ताराशी गयी कई नई कालाकृतियों का प्रदर्शन भी बड़ा ही अद्भुत है और इसके लिए में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र को बधाई देना चाहता हूं।

देवियो और सज्जनो,

हम सभी जानते हैं कि भारत त्योहारों और मेलों का देश है। इस प्रकार के मेलों में शिल्पकारों और हथकरघा कारीगरों के अलावा विविध अंचलों के पहनावों, लोक-कलाओं और लोक-व्यंजनों के अतिरिक्त, लोक-संगीत और लोक-नृत्यों का भी संगम होता है। ऐसे मेलों में भारत के गांव की खुशबू और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा के विविध रंग, यहां आने वालों को हमेशा आकर्षित करते हैं।

हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का कहना था कि भारत का विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक हम भारत के गांवों का जमीनी स्तर तक विकास नहीं कर लेते। उन्होंने देश के समग्र विकास की प्रक्रिया में हमेशा ग्रामोद्योग अर्थात हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों की भूमिका की पुरजोर वकालत की। 

हस्तशिल्प, जिसे हमारे कारीगर अपने हाथों से बनाते हैं, भारतीय कला और संस्कृति का प्रतिबिंब है। बंधेज, मधुबनी चित्रकला, पाषाण मूर्तियां, जरी-जरदोजी और लकड़ी पर नक्काशी जैसे हस्तशिल्प न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं। ये वस्तुएं न केवल उपयोगी होती हैं बल्कि सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर को भी जीवित रखती हैं।

कुटीर उद्योग की बात करें तो यह घर पर या छोटे स्तर पर चलने वाले उद्योग ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के प्रमुख साधन हैं। हथकरघा, बांस से बने उत्पाद, जैविक खाद्य पदार्थ, और दस्तकारी वाले कपड़े इस उद्योग के प्रमुख उदाहरण हैं। यह क्षेत्र महिलाओं और पारंपरिक कौशल रखने वाले लोगों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करता है।

हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग केवल आर्थिक संपन्नता ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराओं का परिचय भी हैं। हमें इनका संरक्षण और संवर्धन करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी हमारी इस समृद्ध धरोहर का आनंद ले सकें।

भारत में कारीगरों और शिल्पकारों की एक विस्तृत शृंखला है और शानदार कला की विरासत है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार न केवल कारीगरों और शिल्पकारों को रोजगार के अवसर प्रदान कर उनका आर्थिक सशक्तिकरण कर रही है, बल्कि भारत की स्वदेशी पारंपरिक विरासत का संरक्षण और प्रफुलन भी कर रही है, जो एक समय पर विलुप्त होने की कगार पर थी।

क्राफ्ट मेले में प्रदर्शित स्वदेशी हस्तनिर्मित उत्पादों के ज़रीए ‘वोकल फॉर लोकल’ अभियान को मज़बूती मिलेगी और ‘स्वदेशी से स्वावलंबन’ की सोच प्रोत्साहित होगी। 

‘वोकल फॉर लोकल’ का उद्देश्य अपने स्थानीय उत्पादों, कुटीर उद्योगों और स्वदेशी वस्तुओं को प्राथमिकता देना, उन्हें बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना है। यह विचार प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान के हिस्से के रूप में प्रस्तुत किया गया था।

इसका उद्देश्य न केवल देश की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाना है, बल्कि हमारे कारीगरों, किसानों और छोटे व्यवसायों को एक नई दिशा और समर्थन प्रदान करना है। जब हम अपने स्थानीय उत्पादों का समर्थन करेंगे, तो न केवल हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, बल्कि हमारा गौरव और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

स्वदेशी की भावना को अपनाकर जब हम अपनी जरूरतों को अपने प्रयासों से पूरा करने में सक्षम हो जाते हैं, तो वही स्वावलंबन कहलाता है। सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ और ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं के माध्यम से स्वदेशी और स्वावलंबन को बढ़ावा देने का कार्य किया है। 

ये पहल छोटे और मध्यम उद्यमों, स्टार्टअप्स, और किसानों को मजबूत करने में सहायक हैं। ‘स्वदेशी से स्वावलंबन’ केवल एक विचार नहीं, बल्कि एक मिशन है। यह हमारे देश को आत्मनिर्भर, सशक्त और विश्व में अग्रणी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

आज भारत आत्मनिर्भरता के जिस पथ पर आगे बढ़ रहा है, उसमें हस्तशिल्प और पारंपरिक कला का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है। यह क्षेत्र लाखों परिवारों को न केवल रोजगार देता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है।

'Vocal for Local'और 'Local to Global'जैसी पहलें तभी सफल होंगी, जब हम अपने कारीगरों को ऐसे मंच प्रदान करेंगे, जहाँ वे सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ सकें, अपनी कला प्रस्तुत कर सकें, और अपने श्रम का उचित मूल्य प्राप्त कर सकें।

मुझे यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता है कि चंडीगढ़ प्रशासन और उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र ने इस मेले के माध्यम से कलाकारों और कारीगरों के लिए एक ऐसा सशक्त मंच तैयार किया है जहाँ वे अपनी प्रतिभा देश-दुनिया के सामने प्रस्तुत कर सकते हैं, अपनी आजीविका को मजबूत बना सकते हैं और अपने कौशल का वास्तविक मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। 

यह मेला केवल चंडीगढ़ का उत्सव नहीं है; यह ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को जीवंत करता है। यहाँ देश के विभिन्न राज्यों के कलाकार एक मंच पर आकर अपनी कला, अपने लोकगीत, अपने नृत्य, और अपनी परंपराओं का आदान-प्रदान करते हैं। यह सांस्कृतिक संवाद न केवल संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि एक-दूसरे की विरासत को समझने और अपनाने का अवसर भी देता है।

आज के युवा वर्ग के लिए ऐसे कार्यक्रम अत्यंत प्रेरणादायक हैं। यह हमें यह भी सिखाते हैं कि भारत को समझना हो तो उसके गांवों में जाएं, उसकी कारीगरी को देखें, उसकी धरोहरों को महसूस करें, और उसकी आत्मा को समझें।

देवियो और सज्जनो,

चंडीगढ़ अपनी योजना आधारित संरचना, सुंदरता और प्रगतिशील सोच के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ की शासन प्रणाली, यहाँ का प्रशासन और यहाँ की जनता मिलकर एक ऐसे शहर का निर्माण करते हैं जो आधुनिकता और संस्कृति के बीच एक आदर्श संतुलन प्रस्तुत करता है।

चंडीगढ़ प्रशासन का यह प्रयास कि शहर को कला, संस्कृति और नवाचार का प्रमुख केंद्र बनाया जाए, वास्तव में अत्यंत प्रशंसनीय है। प्रशासन द्वारा किए जा रहे ऐसे नियमित सांस्कृतिक आयोजन न केवल शहर की रचनात्मक ऊर्जा को नई दिशा देते हैं, बल्कि यहां के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश को भी समृद्ध बनाते हैं।

आज, जब हम इस मेले का आयोजन कर रहे हैं, तो यह भी आवश्यक है कि हम भविष्य की ओर देखें। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कारीगरों को उचित बाजार मूल्य मिले, डिजिटल माध्यमों से उनकी कला वैश्विक स्तर पर पहुँचे, युवा पीढ़ी हस्तशिल्प और लोक-कला को सीखने के लिए प्रेरित हो, और यह पारंपरिक ज्ञान आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रूप से पहुंच सके।

मैं यह आश्वासन देना चाहता हूँ कि चंडीगढ़ प्रशासन ऐसी हर पहल का समर्थन करेगा जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखे और कलाकारों के जीवन को बेहतर बनाए।

आज जिन लोक कलाकारों को अवार्ड मिले हैं, मैं उनका हृदय से सम्मान करता हूं और मानता हूं कि आप लोगों के जीवन भर के प्रयास का ही ये फल है। ये आपका व्यक्तिगत सम्मान तो है ही साथ ही ये उस कला का भी सम्मान है जिसके संवर्धन और संरक्षण में आपने अपना जीवन लगा दिया। मैं अवार्ड चयन समिति का भी धन्यवाद करता हूं जिन्होंने अवार्ड के लिए इतने नायाब हीरे तलाशे।

मैं यहाँ आए सभी आगंतुकों से भी आग्रह करना चाहता हूँ कि इस मेले से खरीदारी अवश्य करें और यहां से अपने देश की कला, संस्कृति और अपने कारीगरों के प्रति गर्व की भावना लेकर जाएं। आपके द्वारा की गई खरीददारी दूर दराज़ से आये हुए इन शिल्पकारों की तो मदद करेगी ही साथ ही हमारी इन कलाओं को संरक्षित भी करेगी और देश की अर्थव्यवस्था में भी अपना योगदान दर्ज करवाएगी।

अंत में, मैं आप सबको एक बार पुनः बधाई देता हूं और मेले के शानदार आयोजन हेतु उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र और चंडीगढ़ प्रशासन को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद,

जय हिन्द!