SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SHAKTI CHETNA UTSAV AT CHANDIGARH ON DECEMBER 7, 2025.
- by Admin
- 2025-12-07 18:50
‘शक्ति चेतना उत्सव’ के अवसर पर माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का सम्बोधनदिनांकः 07.12.2025, रविवार समयः शाम 5:30 बजे स्थानः ज़ीरकपुर
नमस्कार!
आज “शक्ति चेतना उत्सव” के इस पावन अवसर पर आप सभी के बीच उपस्थित होना मेरे लिए सचमुच हर्ष और सौभाग्य का विषय है। विश्व धर्म चेतना मंच, तिरूपति, आंध्र प्रदेश के चंडीगढ़ केंद्र द्वारा आयोजित यह उत्सव हम सभी के लिए अत्यंत शुभ है क्योंकि इस उत्सव में परम पूज्य सिद्धगुरु सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुर्वानंद स्वामी जी सजीव रूप से उपस्थित होकर हमें दर्शन, आशीर्वाद और अमृत समान उपदेश प्रदान कर रहे हैं। मैं स्वामी जी के श्रीचरणों में अपनी विनम्र श्रद्धा और हृदयपूर्ण प्रणाम अर्पित करता हूँ।
हम सभी यह जानते हैं कि परम पूज्य गुर्वानंद स्वामी जी का जन्म 12 जनवरी 1941 को हुआ था। जन्म के समय ही उनकी दोनों किडनियाँ ठीक से कार्य नहीं कर रही थीं और शारीरिक दुर्बलता के कारण वे सही ढंग से बोलने में भी असमर्थ थे। सामान्य परिस्थितियों में यह अवस्था किसी भी व्यक्ति के लिए जीवनभर की चुनौती बन सकती थी, परंतु ईश्वर की अद्भुत कृपा और दिव्य नियति ने उनके जीवन के लिए एक विशेष मार्ग चुना था।
जब वे बाल्यावस्था में ही सिद्ध योगी, महातपस्वी संत, परम पूज्य देवरहा बाबा जी के पावन सान्निध्य में आए, तब उनके जीवन में एक अद्भुत परिवर्तन का प्रारंभ हुआ।
देवरहा बाबा जी की दिव्य दृष्टि, उनके आशीर्वाद और आध्यात्मिक शक्ति के प्रभाव से गुरुवनंद स्वामी जी न केवल पूर्णतः स्वस्थ होने लगे, बल्कि धीरे-धीरे उन्होंने एक अलौकिक ऊर्जा, असाधारण चेतना और दिव्य वाणी प्राप्त की।
परम पूज्य देवरहा बाबा जी की करुणा इतनी अप्रमेय थी कि जिन किडनियों को चिकित्सक असमर्थ मान चुके थे, वे स्वाभाविक रूप से सुचारु होने लगीं, जिन शब्दों को वे बोल नहीं पाते थे, वही शब्द आगे चलकर अमृत वाणी, उपदेश और प्रेरणा का रूप लेने लगे, और जिन सीमाओं के साथ उनका जन्म हुआ था, वही सीमाएँ बाद में उनकी आध्यात्मिक महाशक्ति बन गईं।
कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि देवरहा बाबा जी की दिव्य कृपा से गुर्वानंद स्वामी जी के जीवन का रूपांतरण केवल शारीरिक नहीं था; यह एक पूर्ण आध्यात्मिक पुनर्जन्म था, एक ऐसी शुरुआत, जिसने आगे चलकर लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन को मार्गदर्शन देने वाले एक महान संत को जन्म दिया। उनकी साधना, त्याग, करुणा और आध्यात्मिक अनुभवों ने विश्वभर में अनगिनत लोगों के जीवन को प्रकाशमान किया है।
मैं अत्यंत विनम्र भाव से यह कहना चाहूँगा कि वर्तमान युग में यदि किसी महापुरुष ने आध्यात्मिक शक्ति, दिव्य सिद्धियों और मानवीय कल्याण, इन तीनों का अद्भुत समन्वय स्थापित किया है, तो वे हैं परम पूज्य सिद्धगुरु सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुरुवनंद स्वामी जी।
उनके दिव्य आभामण्डल में आने मात्र से ही मनुष्य के भीतर ऊर्जा, शांति और चेतना का एक नया प्रवाह प्रारंभ हो जाता है। वे न केवल भाग्य का पठन करने वाले महायोगी हैं, बल्कि भाग्यदाता और भाग्य-परिवर्तक संत हैं, जिनके स्पर्श और प्रेरणा से असंख्य लोगों के जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन आए हैं।
पूज्य गुरुदेव का व्यक्तित्व भले ही अत्यंत सौम्य और सरल प्रतीत होता है, परंतु उनके भीतर योगविभूति, तपशक्ति और ब्रह्मज्ञान का अथाह सागर समाया हुआ है। उन्होंने न केवल सांसारिक शिक्षा में उच्च स्थान प्राप्त किया, बल्कि आध्यात्मिक अध्ययन के मार्ग पर भी उन्होंने गहन साधना और अध्ययन से आगम-निगम, वेद, पुराण, गुरु ग्रंथ साहिब, रामायण, बाइबिल, कुरान, उपनिषद, महाकाव्य और भगवद्गीता जैसे पवित्र ग्रंथों का गूढ़ ज्ञान प्राप्त किया है। संस्कृत में सिद्धहस्त होने के साथ-साथ उन्होंने ज्योतिष में डॉक्टरेट की उपाधि भी अर्जित की।
गुरुवर जन्म से ही उन चुनिंदा महायोगियों में सम्मिलित हैं जिनकी कुंडलिनी के सातों चक्र जन्म से ही जाग्रत माने जाते हैं। अपनी तपसाधना के माध्यम से वे विष्णुलोक, शिवलोक और ब्रह्मलोक तक की अद्वितीय आध्यात्मिक यात्राएँ करके ब्रह्मर्षि, सिद्धेश्वर और अरिहंत जैसे दैवी स्थानों को प्राप्त कर चुके हैं। यह वास्तव में अत्यंत विरल, अद्भुत और प्रेरणादायक है।
अपनी साधना की अद्भुत ऊँचाइयों पर पहुँचकर स्वामी जी ने अष्ट सिद्धियों और नव निधियों को प्राप्त किया है। जिन सिद्धियों का वर्णन ऋषियों-मुनियों के काल से मिलता है और जो समय के साथ विलुप्त-सी हो गई थीं, गुरुदेव ने उन्हें मंत्र-शक्ति और गहन तप द्वारा पुनः सिद्ध किया।
आज भी गुरुवर अपनी साधना की ज्योति से नई-नई सिद्धियों के शोध और सिद्धीकरण में रत रहते हैं, और उनका प्रत्येक प्रयास संसार और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित है। निस्संदेह वे नरदेह में ईश्वरीय शक्ति के साक्षात् रूप हैं।
शांति और अहिंसा के अग्रदूत गुर्वानंद स्वामी जी ने विश्व के 192 देशों में यात्रा कर मानवता, एकता, बंधुत्व और धर्म-सद्भाव का संदेश पहुँचाया है। वे ऐसे समाज और विश्व की स्थापना में लगे हैं जहाँ जाति, धर्म, पंथ या सम्प्रदाय के लिए कोई स्थान नहीं, बल्कि मानवता ही सर्वोच्च धर्म हो। इस युग में ऐसे महायोगविभूति का सान्निध्य मिलना हम सभी के लिए सचमुच अहोभाग्य है।
पूज्य गुरुदेव सदैव कहते हैं कि यदि हमारे अंदर विश्वास, समर्पण और संकल्प शत-प्रतिशत हो, तो उनकी कृपा, उनके दुर्लभ आध्यात्मिक आशीर्वाद और सिद्ध मंत्र हमारे जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल सकते हैं।
गुरुवर का संदेश अत्यंत सरल, परंतु अत्यंत गहन है, “अपनी आत्मा को ऊपर उठाओ, उसे शक्तिशाली बनाओ, उसे दैविक बनाओ। तुम सभी परमात्मा के भेजे हुए दूत हो। तुममें जन्मजात क्षमता है, विजय का सामर्थ्य है। जीवन को इस प्रकार जीओ कि तुम्हारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए भी आदर्श बने।”
आप हमें बताते हैं कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य “शिक्षा, सेवा और साधना” है। यानी जो सीखा है, उसे समाज को लौटाना है। यही जीवन का धर्म है। उनका यह भी संदेश है कि “जीव सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है। धर्म ही सेवा है, सेवा ही पूजा है।” स्वयं को ऊपर उठाते हुए दूसरों के जीवन को ऊपर उठाने का भाव ही स्वधर्म और परधर्म का वास्तविक सार है।
गुरुदेव का मार्गदर्शन यह भी है कि जीवन में संयम, अहिंसा, तप, दर्शन और चरित्र, इन पाँच तत्वों का सुसंतुलित समन्वय होना चाहिए। तभी हमारा जीवन आत्मदर्शन का जीवन बन पाता है, प्रदर्शन का नहीं।
उनकी साधना, उनके तप और उनकी अध्यात्मिक चेतना ने विश्वभर में करोड़ों लोगों के जीवन को आलोकित किया है। आज जब समाज अनेक भौतिक चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे समय में स्वामी जी जैसे आध्यात्मिक महापुरुष हमारे लिए दिशा-सूचक दीपस्तंभ हैं।
प्रिय श्रद्धालुजनों,
हमारे महान राष्ट्र भारत की सबसे सुंदर पहचान इसकी विविधता में एकता है। यहाँ धर्म, मत, भाषा, परंपरा, संस्कृति सबमें अद्भुत विविधता है, लेकिन इस विविधता के भीतर एक गहरा आध्यात्मिक संदेश छुपा है, और वह है कि सत्य एक है, मार्ग अनेक हो सकते हैं; ईश्वर एक है, पहुँचना अलग-अलग तरीकों से हो सकता है।
भारत ने सदियों से यही संदेश दुनिया को दिया है कि भिन्नताओं को विभाजन का कारण नहीं बनाया जाता, बल्कि उन्हें सौंदर्य, शक्ति और सामूहिक समृद्धि का आधार बनाया जाता है। यहाँ विचारों की भिन्नता मतभेद नहीं, बल्कि मनुष्य की स्वतंत्र चेतना का उत्सव मानी जाती है। यही कारण है कि हमारे देश में हर धर्म, हर परंपरा, हर साधना-पद्धति को आदर, स्थान और समान मान मिला है।
प्रिय श्रद्धालुजनों,
भारत की तपोभूमि ने हर युग में ऐसे महापुरुष दिए हैं जिन्होंने हमें धर्म का वास्तविक अर्थ समझाया है। धर्म का अर्थ केवल पूजा-विधि नहीं, बल्कि जीवन की ऐसी राह है जो सत्य, अहिंसा, करुणा, सेवा और प्रेम की ओर ले जाए।
और हर युग में, कभी श्रीराम के रूप में, कभी बुद्ध के रूप में, कभी गुरु नानक देव जी के रूप में, कभी यीशु मसीह, महावीर, कबीर, रूमी या गांधी के रूप में, सभी महापुरुषों ने मानवता को प्रकाश दिया है। उन्होंने दिखाया कि धर्म का उद्देश्य विभाजन नहीं, बल्कि समन्वय, एकता और कल्याण है।
और आज जब पूरा संसार आध्यात्मिक उलझनों और नैतिक रिक्तता के एक कठिन दौर से गुजर रहा है, ऐसे समय में परम पूज्य सिद्ध गुरु सिद्धेश्वर ब्रह्मर्षि गुर्वानंद स्वामी जी जैसी दिव्य विभूतियों का मार्गदर्शन युग-युगांतरों के लिए आशा, शांति और दिशा का अद्वितीय स्रोत बना हुआ है। उनका चिंतन और उपदेश आधुनिक समाज को स्थिरता, सकारात्मकता और मानवीय मूल्यों की ओर पुनः उन्मुख कर रहे हैं।
प्रिय श्रद्धालुजनों,
आज का यह पावन आयोजन हमें याद दिलाता है कि सभी धर्म एक ही दिशा की ओर ले जाते हैं, सत्य की ओर, प्रेम की ओर, ईश्वर की ओर। यदि हम सभी धर्मों के मूल सिद्धांतों पर दृष्टि डालें, तो स्पष्ट होता है कि हर धर्म का आधार मानव कल्याण, सद्भाव और नैतिकता ही है।
हिंदू धर्म ‘सर्वभूत हिताय’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ का संदेश देता है, जो समस्त विश्व के कल्याण की भावना से परिपूर्ण है। सिख धर्म ‘नाम जपो, किरत करो, वंड छको’ के माध्यम से आध्यात्मिकता, परिश्रम और साझेदारी की संस्कृति को बढ़ावा देता है।
वहीं इस्लाम शांति, सेवा और सच्चे जीवन-मूल्यों पर विशेष बल देता है। ईसाई धर्म प्रेम, क्षमा और मानव सेवा को अपने मूल में रखता है। जैन धर्म ‘अहिंसा परमो धर्मः’ के सिद्धांत के माध्यम से करुणा, संयम और जीव मात्र के प्रति सम्मान का संदेश देता है। तो वहीं बौद्ध धर्म करुणा, तप और मध्यम मार्ग को जीवन की संतुलित, शांतिपूर्ण और सकारात्मक दिशा मानता है।
इन सभी शिक्षाओं का सार यही है कि मानवता सर्वोपरि है, और धर्म का वास्तविक उद्देश्य मनुष्य को बेहतर, संवेदनशील और करुणामय बनाना है। सभी धर्म हमें वही सिखाते हैं जिनका उल्लेख स्वामी जी अपने उपदेशों में करते हैं। ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग अलग हो सकते हैं, पर उद्देश्य एक ही है, प्रेम, शांति और करुणा।
प्रिय श्रद्धालुजनों,
आज विश्व कई संकटों से जूझ रहा है। कभी हिंसा और टकराव, कभी तनाव और अविश्वास, कभी पर्यावरणीय चुनौतियाँ, कभी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े प्रश्न। ऐसे समय में केवल राजनीतिक या आर्थिक नेतृत्व पर्याप्त नहीं बल्कि मानवता को आध्यात्मिक नेतृत्व की आवश्यकता है।
जिस समाज में आध्यात्मिक मूल्यों का सम्मान हो, वहाँ हिंसा की जगह सह-अस्तित्व फलता है और प्रतिस्पर्धा की जगह सहयोग जन्म लेता है। आज आवश्यकता इसी बात की है कि हम अपने व्यक्तिगत आचरण, पारिवारिक जीवन, सामाजिक व्यवहार और राष्ट्रीय कर्तव्यों में आध्यात्मिक मूल्यों को पुनः स्थापित करें। यह वही मार्ग है जो हमें स्थायी शांति, स्थिरता और वैश्विक सद्भाव की ओर ले जा सकता है।
आज का युग चाहे कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, लेकिन सही नेतृत्व, सच्चे मार्गदर्शन और उच्च आध्यात्मिक मूल्यों की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। इसलिए यह समय हमें दोबारा याद दिलाता है कि नैतिक और आध्यात्मिक आधार ही वह शक्ति है, जो समाज को स्थिर रखती है और व्यक्ति को सही दिशा देती है।
हम अक्सर बाहरी परिस्थितियों को अपनी प्रगति में बाधा मानते हैं, पर अध्यात्म कहता है कि वास्तविक शक्ति केवल मन और आत्मचेतना में बसती है। जब व्यक्ति भीतर से जागृत होता है, तभी उसका परिवार, समाज और राष्ट्र भी प्रगतिशील बनता है।
मैं पूरी निष्ठा से मानता हूँ कि विश्व की शांति तभी संभव है जब हम धर्म की आत्मा को समझें, भेदभाव को त्यागें, और मानवता को सर्वोच्च स्थान दें।
प्रिय श्रद्धालुजनों,
भारत ने 2047 तक विकसित भारत का जो संकल्प लिया है, वह केवल आर्थिक, औद्योगिक या तकनीकी प्रगति तक सीमित नहीं है। भारत का विकास विज्ञान और आध्यात्म, प्रगति और संस्कृति, समृद्धि और मूल्य इन सबके समन्वय पर आधारित है। भारत तभी विकसित होगा जब भारत के नागरिक विशेषकर युवा ऊर्जा, नैतिकता और आध्यात्मिकता को अपनी शक्ति बनाएँगे।
आज जब विश्व कई चुनौतियों से जूझ रहा है, भारत की यह सद्भावना की परंपरा विश्व को सही दिशा दिखाने में सक्षम है। “शक्ति चेतना उत्सव” का यह आयोजन भी धर्मों के बीच संवाद, सम्मान और शांति का संदेश देता है। यह उत्सव हमें याद दिलाता है कि धर्म विभाजित नहीं करता धर्म जोड़ता है।
मुझे गर्व है कि भारत ने हमेशा दुनिया को शांति, सहिष्णुता और संवाद का मार्ग दिखाया है। हमारा संविधान भी इसी विचार को आगे बढ़ाता है, जो धर्म की स्वतंत्रता, धर्मों का सम्मान और समरसता का भाव को न केवल संरक्षण देता है, बल्कि उसे हमारे राष्ट्रीय चरित्र की आधारशिला बनाता है।
मैं एक बार फिर सिद्धगुरु सिद्धेश्वर ब्रह्मऋषि गुर्वानंद स्वामी जी के श्रीचरणों में नमन करता हूँ और विश्व धर्म चेतना मंच, चंडीगढ़ केंद्र को इस अद्भुत एवं कल्याणकारी आयोजन के लिए हृदय से बधाई देता हूँ।
मैं कामना करता हूँ कि यह ‘शक्ति चेतना उत्सव’ सभी के जीवन में शांति, संतुलन, सद्बुद्धि और आध्यात्मिक जागरण लाए। भारत आत्मविश्वास, सदाचार और आध्यात्मिकता के मार्ग पर आगे बढ़ता हुआ 2047 तक विश्व का पथप्रदर्शक राष्ट्र बने।
इन्हीं शुभकामनाओं के साथ, आप सभी का हृदय से आभार।
धन्यवाद,
जय हिन्द!