SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SEMINAR ON ANUVRAT & LOKTANTAT BY MUNI SHRI VIJAY KUMAR JI ALOK AT CHANDIGARH ON DECEMBER 7, 2025.

‘अणुव्रत और लोकतंत्र’ विषयक विशिष्ट विचार-गोष्ठी के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का सम्बोधन

दिनांकः 07.12.2025, रविवारसमयः शाम 7:00 बजेस्थानः चंडीगढ़

         

सादर जै जिनेन्द्र!

सर्वप्रथम, मैं अपने हृदय की गहराइयों से आप सभी का इस पावन अवसर पर अभिनंदन करता हूँ। आज हम सब यहाँ एकत्रित हुए हैं, न केवल मुनिश्री अभय कुमार जी की 83वीं जन्म जयंती के पुण्य अवसर पर, बल्कि ‘अणुव्रत और लोकतंत्र’ जैसे अत्यंत प्रासंगिक विषय पर विमर्श हेतु भी। यह अवसर हमारे लिए आत्मचिंतन, समाज-निर्माण और लोकतांत्रिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रेरक क्षण है।

आज मैं यहाँ केवल राज्यपाल के रूप में उपस्थित नहीं हूँ, मैं यहाँ एक जैन अनुयायी, एक अणुव्रत प्रेमी और मुनिश्री विनय कुमार जी ‘आलोक’ एवं मुनिश्री अभय कुमार जी के अनन्य श्रद्धालु के रूप में उपस्थित हूँ।

इस पवित्र अवसर पर, इस पवित्र स्थल पर, मेरे हृदय में असीम भाव-विभोरता है।

मुनिश्री अभय कुमार जी के 83वें जन्मदिवस का यह पर्व, हम सबके लिए केवल एक समारोह नहीं, यह उनके महान तप, संयम, प्रेम और मानवीयता का उत्सव है।

उनके चरणों में मन स्वतः झुक जाता था। वे जहाँ बैठते थे, वहाँ शांत प्रकाश उतरता था। उनके जीवन ने यह सिद्ध किया है कि अहिंसा केवल विचार नहीं जीवन की शैली है। अणुव्रत केवल व्रत नहीं, मानवता की शरण है। उनके द्वारा दिए गए प्रत्येक उपदेश में एक निर्मलता, एक गहराई और एक मातृत्व की अनुभूति होती है।

मैं नवयुग के प्रकाशस्तंभ मनीषीसंत मुनिश्री विनय कुमार जी ‘आलोक’ को हृदय से नमन करता हूँ, जिन्होंने अणुव्रत संदेश को युवा पीढ़ी की धड़कन बना दिया। 

उनकी वाणी में जो करुणा है, उनके चिंतन में जो व्यापकता है और उनके व्यक्तित्व में जो तेज है, वह सचमुच “आलोक” नाम को सार्थक करता है। जब भी मैं उनके सान्निध्य में बैठता हूँ, मुझे ऐसा लगता है, मानो आत्मा को एक नई दिशा, नई शांति और नई समझ मिल गई हो।

प्रिय श्रद्धालुजनों,

भारत की सांस्कृतिक परंपरा में धर्म और राजनीति का संबंध सदैव गहन रहा है। किंतु जब हम ‘अणुव्रत’ की बात करते हैं, तो यह केवल धार्मिक या आध्यात्मिक अनुशासन नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक नैतिक आंदोलन है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। नैतिकता, सहिष्णुता, समानता और अहिंसा, ये सभी मूल्य लोकतंत्र की आत्मा हैं। अणुव्रत आंदोलन ने इन मूल्यों को समाज के प्रत्येक स्तर पर स्थापित करने का प्रयास किया है।

आज, जब हम मुनिश्री अभय कुमार जी के जीवन और योगदान को स्मरण करते हैं, तो यह अवसर हमें आत्मावलोकन का भी आमंत्रण देता है  कि कैसे अणुव्रत के सिद्धांत लोकतांत्रिक समाज के निर्माण में सहायक हो सकते हैं।

‘अणुव्रत’ शब्द दो भागों से बना है - ‘अणु’ अर्थात् ‘छोटा’ और ‘व्रत’ अर्थात् ‘संकल्प’। जैन धर्म में जहाँ साधुओं के लिए ‘महाव्रत’ होते हैं, वहीं गृहस्थों के लिए ‘अणुव्रत’ निर्धारित किए गए हैं। महाव्रतों की अपेक्षा अणुव्रतों का पालन अपेक्षाकृत सरल, किंतु जीवन को संयमित और नैतिक बनाने वाला है।

आचार्य श्री तुलसी ने 1 मार्च 1949 को राजस्थान के सरदारशहर में अणुव्रत आंदोलन की शुरुआत की। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में नैतिकता, अनुशासन और सामाजिक समरसता के पतन को देखकर उन्होंने यह आंदोलन प्रारंभ किया। उनका उद्देश्य व्यक्ति के नैतिक रूपांतरण के माध्यम से समाज और राष्ट्र का पुनर्निर्माण करना था।

आचार्य तुलसी ने कहा था कि ‘‘जब तक मनुष्य अच्छा नहीं बनेगा, समाज अच्छा हो नहीं सकता।’’ इसी मान्यता से अणुव्रत की गंगोत्री का उदय हुआ। इसका उद्देश्य व्यक्तिगत आचरण में नैतिकता, समाज में शांति और राष्ट्र में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना करना है। यह आंदोलन किसी एक धर्म, जाति या वर्ग तक सीमित नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए है।

महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य आदि व्रतों को जीवन का आधार माना। उन्होंने कहा था कि ‘‘जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं, वह सबसे पहले खुद में लाएँ।’’

अणुव्रत आंदोलन ने भी व्यक्ति के आत्मपरिवर्तन के माध्यम से समाज और राष्ट्र के परिवर्तन का मार्ग चुना। गांधी की अहिंसा और तुलसी जी का अणुव्रत, दोनों ही लोकतांत्रिक समाज के लिए कल्याणकारी हैं।

अणुव्रत आंदोलन की जड़ें जैन धर्म के अहिंसा, अनेकांतवाद और अपरिग्रह के तीन मूल सिद्धांतों में हैं। इन सिद्धांतों के आधार पर अणुव्रत आंदोलन ने नैतिकता को धर्म का केंद्र बिंदु बनाया। संयम, करुणा, सह-अस्तित्व, और सत्यनिष्ठा, ये सभी लोकतांत्रिक समाज के लिए भी अनिवार्य हैं।

अणुव्रत का मूल मंत्र है, ‘‘संयमः खलु जीवनम’’ अर्थात् संयम ही जीवन है। जहाँ संयम है, वहीं धर्म है। यह संयम आत्ममुखी भी है (इंद्रियों पर नियंत्रण) और समाजाभिमुखी भी (सामाजिक उत्तरदायित्व)। यह किसी धर्म या पंथ का नहीं, बल्कि मानवीयता का आंदोलन है।

प्रिय श्रद्धालुजनों,

भारत का लोकतंत्र केवल व्यवस्था नहीं, यह एक संस्कृति, एक संवेदना है और इस संस्कृति की आत्मा है। लोकतंत्र केवल शासन की पद्धति नहीं, बल्कि एक जीवन दृष्टि है, जिसमें समानता, स्वतंत्रता, न्याय, सहिष्णुता और उत्तरदायित्व के मूल्य निहित हैं। अणुव्रत आंदोलन ने इन मूल्यों को व्यवहार में उतारने का प्रयास किया है।

आज की इस विशिष्ट विचार-गोष्ठी का विषय अत्यंत सामयिक और गहन इसलिए है क्योंकि यह मानव जीवन और राष्ट्र-व्यवस्था दोनों के मूल प्रश्नों को छूता है। अणुव्रत और लोकतंत्र दो अलग-अलग विषय नहीं हैं, क्योंकि दोनों की आत्मा में मनुष्य के भीतर जागृति और चरित्र निर्माण का संदेश निहित है। 

अणुव्रत का सार है, छोटे-छोटे लेकिन दृढ़ संकल्पित नैतिक व्रत, जिनसे व्यक्ति अपने व्यवहार में सत्य, अहिंसा, मर्यादा और आत्म-संयम को अपनाता है। यह व्यक्तिगत नैतिक उत्थान का मार्ग है।

दूसरी ओर, लोकतंत्र राजनीतिक व्यवस्था के साथ-साथ नागरिकों के व्यवहार, दृष्टिकोण और जिम्मेदारियों पर आधारित जीवन-पद्धति है। लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब नागरिक अपने कर्तव्यों को समझें, विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाएँ, विविधता का सम्मान करें और समाज के कल्याण के लिए सक्रिय योगदान दें।

किन्तु लोकतंत्र तब ही फलता-फूलता है जब उसके नागरिक संयमित, जिम्मेदार और विवेकपूर्ण हों; जब समाज सत्यनिष्ठ, पारदर्शी और न्यायप्रिय हो; जब नीतियाँ केवल राजनीतिक लाभ पर नहीं, बल्कि नैतिकता, करुणा और मानव कल्याण पर आधारित हों; और जब देश का नेतृत्व चरित्र, आत्मानुशासन और लोक-हित को सर्वोपरि मानकर निर्णय ले।

इसी संदर्भ में अणुव्रत लोकतंत्र के लिए एक आध्यात्मिक आधार-शिला का कार्य करता है। अणुव्रत हमें यह सिखाता है कि अनुशासन बाहर से थोपा नहीं जाता, वह भीतर से उत्पन्न होता है, और यही भावना लोकतंत्र की सबसे बड़ी आवश्यकता भी है।

यदि लोकतंत्र को हम एक सशक्त शरीर के रूप में देखें, तो अणुव्रत उसकी चेतना, उसकी नैतिक ऊर्जा और उसकी आत्मा है। दोनों का संगम ही वह समाज निर्मित कर सकता है जो बाहरी विकास के साथ-साथ आंतरिक उन्नति से भी समृद्ध हो।

अणुव्रत आंदोलन का मूल सिद्धांत है कि “बड़ा परिवर्तन बड़े नियमों से नहीं, छोटे-छोटे व्रतों से आता है।” ये छोटे व्रत ही व्यक्ति को मजबूत करते हैं, व्यक्ति मजबूत होगा तो समाज मजबूत होगा और समाज मजबूत होगा तो लोकतंत्र अपने आप सशक्त हो जाएगा।

आज जब दुनिया अनियंत्रित सूचना प्रवाह, मूल्य-संकट, सामाजिक विभाजन जैसी कई प्रकार की चुनौतियों से गुजर रही है, तब अणुव्रत जैसे आंदोलनों की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है।

अणुव्रत हमें यह गहराई से समझाता है कि लोकतंत्र केवल अधिकारों की मांग करने का माध्यम नहीं है, बल्कि कर्तव्यों को निभाने और आत्म-अनुशासन का पालन करने की एक निरंतर साधना भी है। अणुव्रत का संदेश है कि “पहले स्वयं को बदलो, तभी समाज बदलेगा।”

इसीलिए यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को केवल बाहरी ढाँचा नहीं मानता, बल्कि इसे एक नैतिक चरित्र पर आधारित जीवन-शैली के रूप में देखने की प्रेरणा देता है। जब नागरिक आत्मसंयम और कर्तव्यबोध से युक्त होते हैं, तभी लोकतंत्र वास्तव में जीवंत, प्रभावी और जनकल्याणकारी बन पाता है।

प्रिय श्रद्धालुजनों,

पंजाब और चंडीगढ़ की धरती पर शांति, सद्भाव, सहअस्तित्व और सेवा की जो समृद्ध परंपरा सदियों से प्रवाहित हो रही है, वह हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की आधारशिला रही है। यहाँ की मिट्टी ने गुरुओं और संतों की शिक्षाओं को अपने आचरण में ढाला है।

गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी तक की वाणी ने मानवता को ‘सरबत दा भला’ का संदेश दिया, वहीं सूफी संतों और फकीरों ने भाईचारे, मेल-जोल और आध्यात्मिक एकता की राह दिखाई। इसी विरासत के कारण यह क्षेत्र विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों का संगम बनकर उभरा है, जहाँ विविधता किसी विभाजन का कारण नहीं, बल्कि सामूहिक शक्ति का स्रोत है।

सेवा की परंपरा तो मानो इस भूमि की आत्मा है। लंगर से लेकर राहत कार्यों तक, हर परिस्थिति में यहाँ के लोग मानवता की सेवा के लिए अग्रणी रहे हैं। चाहे प्राकृतिक आपदाएँ हों, सामाजिक चुनौतियाँ हों या दैनिक जीवन की साधारण आवश्यकताएँ, पंजाब और चंडीगढ़ के लोगों ने हमेशा अपने कर्म से यह सिद्ध किया है कि सच्ची शांति और सद्भाव सेवा और सहयोग की भावना से ही संभव है।

इस प्रकार, यह पावन भूमि आज भी हमें प्रेरित करती है कि हम एक-दूसरे का सम्मान करें, साथ मिलकर चलें और मानवता की भलाई को सर्वोपरि रखें।

प्रिय श्रद्धालुजनों,

मुनिश्री अभय कुमार जी और विनय कुमार जी ‘आलोक’ का विशेष योगदान यह रहा कि उन्होंने अणुव्रत को युवा पीढ़ी की भाषा में रूपांतरित किया। आज आवश्यकता है कि हम युवाओं को यह समझाएँ कि विकास और मूल्य, दोनों साथ चलें। तकनीक और नैतिकता दोनों आवश्यक हैं।

युवाओं को आत्म-अनुशासन, अहिंसा, नशामुक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी की ओर प्रेरित करना आज के समय की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है, क्योंकि यही वे मूल्य हैं जो एक मजबूत, जागरूक और संवेदनशील समाज की नींव रखते हैं। जब युवा अपने भीतर संयम, धैर्य और नैतिकता को विकसित करते हैं, तो वे न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी सकारात्मक परिवर्तन के वाहक बनते हैं।

मेरे लिए अणुव्रत और लोकतंत्र एक ही धारा के दो पहलू हैं। एक व्यक्ति को भीतर से परिष्कृत करता है, तो दूसरा उस परिष्कृत व्यक्ति को समाज में रचनात्मक भूमिका निभाने का अवसर देता है। जब व्यक्तिगत चरित्र और सामाजिक आचरण दोनों नैतिक मूल्यों से संचालित होते हैं, तभी लोकतंत्र मजबूत होता है, समाज स्थिर होता है और राष्ट्र प्रगति की ओर अग्रसर होता है।

इसलिए, हमारे युवाओं में इन मूल्यों का संचार केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि राष्ट्र-निर्माण का अनिवार्य आधार है।

प्रिय श्रद्धालुजनों,

एक जैन के रूप में मुझे सदैव सिखाया गया कि व्यक्ति यदि अपने भीतर सत्य, संयम और अहिंसा को धारण करे तो समाज स्वयं ही आदर्श बन जाता है।

अणुव्रत आंदोलन के लघु-व्रत दिखने में छोटे हो सकते हैं, पर इनकी शक्ति महान है। ये व्यक्ति की आत्मा को कठोर नहीं, कोमल, संवेदनशील और उत्तरदायी बनाते हैं और यही गुण लोकतांत्रिक समाज का श्रृंगार हैं।

आज यहाँ खड़े होकर मुझे अपने धर्म, संस्कार और गुरुओं की छत्र-छाया की अनुभूति हो रही है। मुझे गर्व है कि मैं उस परंपरा का छोटा सा अंश हूँ जिसने दुनिया को अहिंसा, अपरिग्रह और सदाचार की रोशनी दी है।

यह भी मेरा सौभाग्य है कि मैं मुनिश्री अभय कुमार जी और मुनिश्री विनय कुमार जी ‘आलोक’ जैसे संतों के आध्यात्मिक सान्निध्य में अपने जीवन के कुछ क्षण व्यतीत कर पाया हूँ।

अंत में, मैं अणुव्रत समिति चंडीगढ़ के सभी कार्यकर्ताओं का पुनीत मनोभाव से साधुवाद देता हूँ।

मैं आशा करता हूँ कि अणुव्रत की यह ज्योति हमारे समाज, शासन और लोकतंत्र सभी को सदाचार, शांति और जनकल्याण के मार्ग पर अग्रसर करती रहे।

मुनिश्री अभय कुमार जी के तप का आशीष, मुनिश्री विनय कुमार जी ‘आलोक’ के मार्गदर्शन का प्रकाश, हम सबके जीवन को निरंतर प्रकाशित करता रहे।

धन्यवाद,

जय हिंद! जै जिनेन्द्र!