THE PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF RASHTRIYA EKTA DIVAS AND EKTA MARCH TO COMMEMORATE THE BIRTH ANNIVERSARY OF SARDAR VALLABHBHAI PATEL AT CHANDIGARH ON MARCH 22, 2025.

‘राष्ट्रीय एकता दिवस एवं एकता मार्च’ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 22.11.2025, शनिवारसमयः सुबह 11:00 बजेस्थानः तिरंगा पार्क, चंडीगढ़

         

नमस्कार!

प्रिय चंडीगढ़वासियो, सम्माननीय नागरिको, विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आए हुए मेरे भाइयों और बहनों, विशिष्ट अतिथि गण, युवा शक्ति, और देश के इस गौरवपूर्ण आयोजन के सभी सहभागी,

आज का यह अवसर, यह वातावरण, यह विशाल जनसमूह, यह तिरंगा पार्क, सब मिलकर हमें एक गहरा संदेश दे रहे हैं।

आज यहाँ केवल लोग इकट्ठे नहीं हुए हैं, बल्कि भारत की विविधता, भारत की संस्कृति, भारत की आत्मा और भारत की शक्ति, सभी एक मंच पर एकत्रित हुई हैं। मेरे लिए यह सम्मान की बात है कि मुझे इस ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण में आप सबको संबोधित करने का अवसर मिला है।

आज हम सब यहाँ Sardar@150 Unity March के लिए एकत्र हुए हैं। यह केवल एक कार्यक्रम नहीं, एक स्मरण नहीं, एक उत्सव नहीं, यह भारतीय एकता का जीवंत दर्शन है। 

यह वह क्षण है जब 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों की धड़कनें, एक ताल, एक स्वर और एक संकल्प के साथ धड़क रही हैं।

देवियो और सज्जनो,

हम सभी जानते हैं कि चंडीगढ़ केवल एक शहर नहीं है, यह आधुनिक भारत की कल्पना है। यह शहर दर्शाता है कि यदि दूरदृष्टि, अनुशासन, सौंदर्य और जनसहभागिता मिल जाएँ, तो एक ऐसा नगर खड़ा हो सकता है जो पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल बन जाए।

परंतु चंडीगढ़ की सबसे बड़ी पहचान यह नहीं कि यह सुंदर है, सुव्यवस्थित है या आधुनिक है, इस शहर की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह एक ऐसा अद्भुत केन्द्र है जहाँ भारत के 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों के लोग एक साथ रहते हैं।

यहाँ विभिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं, विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं, अलग-अलग व्यंजन घरों में पकते हैं, और अलग-अलग संस्कृतियाँ फूलती-फलती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद यहाँ हर दिल में एक ही पहचान रहती है, “हम भारत के नागरिक हैं।”

यह शहर हमें दिखाता है कि विविधता कभी बाधा नहीं होती, बल्कि विविधता ही भारत की शक्ति है। और चंडीगढ़ इसका सबसे सुंदर, सबसे सजीव उदाहरण है।

आज जब यह शहर एकता मार्च का केंद्र बना है, तो यह संदेश और भी प्रबल हो जाता है कि जब भारत एक साथ चलता है, तो दुनिया उसे रोक नहीं सकती।

देवियो और सज्जनो,

आज की एकता मार्च मात्र एक परेड नहीं है। यह एक प्रेरणा है, एक चेतना है, एक संकल्प है। आज हजारों लोग, विभिन्न प्रदेशों से आए हुए परिवार, युवा, महिलाएँ, बच्चे, सब एक ही उद्देश्य से चल रहे हैं, “भारत एक है, भारत अखंड है, और भारत इसी एकता के कारण महान है।”

यह देखकर हृदय आनंद से भर उठता है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, गुजरात से लेकर असम तक, बंगाल से लेकर राजस्थान तक, हर संस्कृति, हर भाषा, हर परंपरा आज एक ही मार्च का हिस्सा बनकर चल रही है।

इतना ही नहीं, आज चंडीगढ़ का हर नागरिक, चाहे वह मूलरूप से किसी भी राज्य से हो, एक ही ध्वज के नीचे, एक ही भावना के साथ, इस एकता मार्च में कदम से कदम मिला रहा है। यह दृश्य केवल आँखों को अच्छा नहीं लगता, यह राष्ट्रीय चेतना को पुनर्जागृत करता है।

यह बताता है कि भारत की आत्मा आज भी उतनी ही जीवंत है जितनी स्वतंत्रता के समय थी, जितनी संविधान निर्माण के समय थी, और जितनी राष्ट्र-निर्माण के कठिनतम दौर में थी।

देवियो और सज्जनो,

31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे सरदार वल्लभभाई पटेल जी की जयंती से जुड़ा यह अवसर उस महान व्यक्तित्व को स्मरण करता है, जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया। उन्होंने 562 रियासतों को एक सूत्र में पिरोकर ‘भारत माता’ को अखंड स्वरूप प्रदान किया। जर्मनी के एकीकरण में ‘ओटो वॉन बिस्मार्क’ की भूमिका जिस प्रकार ऐतिहासिक मानी जाती है, उसी प्रकार पटेल जी के कूटनीतिक कौशल और राजनीतिक दूरदृष्टि से अखंड भारत का निर्माण संभव हो सका।

सरदार वल्लभभाई पटेल जी का अटूट विश्वास था कि “भारत एक है, भारत अखंड है, भारत सदा अखंड रहेगा।” इसी कारण वे “भारत के बिस्मार्क” और “लौह पुरुष” के नाम से अमर हुए।

मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि न्याय, साहस और नेतृत्व की भावना पटेल जी में बचपन से ही रची-बसी थी। इसी संदर्भ में मैं उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग आपके साथ साझा करना चाहूँगा।

जब सरदार पटेल छठी कक्षा में थे, उनकी अंग्रेज़ी की शिक्षिका अक्सर देर से कक्षा में आती थीं। एक दिन, लंबे इंतज़ार के दौरान पटेल ने अपने सहपाठियों से कहा कि वे शोर न करें, बल्कि मिलकर कोई गीत गाएँ, ताकि अन्य कक्षाओं को असुविधा न हो। तभी अध्यापिका आ गईं और यह देखकर नाराज़ हो गईं। उन्होंने विद्यार्थियों को डाँटा, तो पटेल ने शांत स्वर में कहा कि गाना, शोरगुल करने की तुलना में बेहतर है क्योंकि इससे किसी और की पढ़ाई बाधित नहीं होती।

अध्यापिका ने उन्हें कक्षा से बाहर जाने का आदेश दिया और पटेल बिना किसी विवाद के बाहर चले गए, लेकिन पूरा वर्ग उनके साथ बाहर आ खड़ा हुआ।

जब प्रिंसिपल ने पटेल से माफ़ी माँगने को कहा, तो उन्होंने विनम्र पर दृढ़ स्वर में कहा कि यदि किसी को माफ़ी माँगनी चाहिए, तो वह देर से आने वाली शिक्षिका को माँगनी चाहिए। अंततः प्रिंसिपल ने पटेल को मात्र चेतावनी देकर मामला समाप्त कर दिया।

यह घटना बताती है कि सत्य और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता बचपन से ही अडिग थी।

उनके जीवन का एक अन्य प्रेरक प्रसंग यह है कि वे बैरिस्टर बनना चाहते थे, लेकिन औपचारिक पढ़ाई के लिए उनके पास धन नहीं था। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने स्वयं अध्ययन शुरू किया। उन्होंने किताबें उधार लीं, अदालतों में जाकर अनुभवी वकीलों की बहसें सुनीं और किसी भी कोचिंग के बिना कानून की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर लीं।

1910 में, 35 वर्ष की आयु में, वे इंग्लैंड गए और वहाँ अपनी कानूनी पढ़ाई पूरी की। 1913 में वे एक दक्ष और प्रशिक्षित बैरिस्टर के रूप में भारत लौटे।

ये दोनों प्रसंग स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि सरदार पटेल के भीतर न्यायप्रियता, आत्मविश्वास और नेतृत्व क्षमता का बीज बहुत पहले ही अंकुरित हो चुका था, बहुत पहले, जब उन्होंने सार्वजनिक जीवन में कदम भी नहीं रखा था।

साथियो,

सरदार वल्लभभाई पटेल जी ने कठिन परिश्रम, आत्मविश्वास और अनुशासन को अपना आधार बनाया। वे उत्कृष्ट वकील बने, लंदन से बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की, और बाद में गांधीजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख स्तंभ बने। खेड़ा सत्याग्रह, झंडा सत्याग्रह और बारडोली आंदोलन में उनके नेतृत्व ने उन्हें “सरदार” की उपाधि दिलाई।

संविधान सभा में भी उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। डॉ. भीमराव आंबेडकर को संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त कराने में उनका विशेष योगदान रहा। भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा की स्थापना में भी उनकी भूमिका निर्णायक थी, इसीलिए उन्हें “सिविल सेवाओं का संरक्षक संत” कहा गया।

सरदार पटेल का दृष्टिकोण केवल राजनीतिक नहीं था; वे समाज सुधार, महिला सशक्तिकरण, ग्रामीण विकास, सोमनाथ मंदिर के पुनरुद्धार और प्रशासनिक सुधारों के भी समर्थक थे। उनका नेतृत्व साहस, स्पष्ट दृष्टि, निर्णायकता, समावेशिता और उत्कृष्ट टीमवर्क पर आधारित था। वे मानते थे कि “नेतृत्व आदेश से नहीं, प्रेरणा से आता है।”

उनका एकता का मंत्र राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं था; यह सांस्कृतिक और भावनात्मक जोड़ का भी प्रतीक था। विभिन्न जाति, भाषा, धर्म और क्षेत्रों को जोड़कर उन्होंने “एक भारत” का सपना साकार किया। आज हम 31 अक्टूबर को “राष्ट्रीय एकता दिवस” मनाते हैं ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस भारत के एकीकरण की ऐतिहासिक गाथा को याद रखें और उससे प्रेरणा लें।

देवियो और सज्जनो,

भारत एक ऐसा देश है जिसके इतिहास, भूगोल और संस्कृति में विविधता के असंख्य रंग समाहित हैं। यहाँ 22 आधिकारिक भाषाएँ और सैकड़ों बोलियाँ हैं। सभी प्रमुख धर्म यहाँ पूर्ण सम्मान के साथ फलते-फूलते हैं। हर 200 किलोमीटर पर भाषा का स्वर, भोजन का स्वाद, वस्त्रों की शैली, और त्योहारों का रंग बदल जाता है।

फिर भी हमारे मन की डोर सदैव ‘भारतीयता’ के एक ही सूत्र में बंधी रहती है। हमारे देश की ‘विविधता में एकता’ की असाधारण शक्ति ही हमारे संविधान, हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता और हमारी मूल्य-व्यवस्था की सबसे बड़ी आधारशिला है। भारत की संस्कृति अपनी प्रकृति में समावेशी, स्वभाव में उदार, और आचरण में सहिष्णुता की प्रतीक है, जो विविधताओं को जोड़कर एक व्यापक राष्ट्रीय चेतना का निर्माण करती है।

यहाँ संगीत विभिन्न रागों से मिलकर एक सरगम बनाता है। यहाँ नृत्य अनेक रूपों में होते हुए भी एक ही आध्यात्मिक तान बुनते हैं। यहाँ त्योहार अलग-अलग तरीकों से मनाए जाते हैं, पर उनका संदेश प्रेम, सौहार्द और मानवता का ही होता है।

यहाँ की लोककथाएँ, समुदाय, परंपराएँ और ज्ञान परम्परा हमें जोड़ने की शक्ति रखती हैं। भारत की आध्यात्मिक परंपरा सदियों से कहती आई है, “वसुधैव कुटुम्बकम्” यानी सारा संसार एक परिवार है। यह दर्शन केवल भावना नहीं, बल्कि भारतीय जीवन का आधार है।

देवियो और सज्जनो,

आज चंडीगढ़, सरदार पटेल की आत्मा को पुनर्जीवित कर रहा है। आज जब मैं तिरंगा पार्क में आप सबको एकता के इस अद्भुत माहौल में देख रहा हूँ, तो लगता है कि यह वही भारत है जिसका सपना सरदार पटेल ने देखा था।

चंडीगढ़ स्वयं एक ऐसा नगर है जहाँ हर दिशा का व्यक्ति बसता है। एक लघु-भारत, एक सांस्कृतिक तानाबाना, जहाँ समस्त भारत की विविधता एक मंच पर खड़ी होती है। और आज इस एकता मार्च में  चंडीगढ़ ने सरदार पटेल की महान विरासत को फिर एक बार जीवंत कर दिया है।

देवियो और सज्जनो,

एकता किसी भी राष्ट्र और समाज के अस्तित्व की मूल आधारशिला है। जब तक समाज में एकजुटता है, राष्ट्र की अखंडता सुरक्षित रहती है। इसी कारण, विकसित भारत 2047 के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हमें हर उस ताकत को विफल करना होगा जो हमारी एकता को तोड़ने का प्रयास करती है, और यह केवल एकता की ताकत से ही संभव है। आज देश राष्ट्रीय एकता के प्रत्येक मोर्चे पर निरंतर और संगठित रूप से काम कर रहा है। हमारी एकता का यह अनुष्ठान चार मुख्य आधार स्तंभों पर खड़ा है।

पहला स्तंभ है, सांस्कृतिक एकता। भारत की संस्कृति वह धरोहर है जिसने हजारों वर्षों तक बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों के बावजूद भारत को एक जीवंत और चैतन्य राष्ट्र बनाए रखा। बारह ज्योतिर्लिंग, सात पुरियाँ, चार धाम, 50 से अधिक शक्तिपीठ और तीर्थ यात्राओं की परंपरा भारत के आध्यात्मिक तानेबाने को एक सूत्र में बाँधती है। काशी-तमिल संगमम् और सौराष्ट्र-तमिल संगमम् जैसे कार्यक्रम इस सांस्कृतिक एकात्मता को और सुदृढ़ कर रहे हैं। योग जैसी भारत की प्राचीन विद्या आज विश्व को जोड़ने का माध्यम बन चुकी है।

दूसरा स्तंभ है, भाषाई एकता। भारत की भाषाएँ और बोलियाँ हमारी खुली, रचनात्मक और समावेशी सोच का प्रतीक हैं। हमारे यहाँ किसी भी भाषा को प्रभुत्व का हथियार नहीं बनाया गया, यही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। तमिल जैसी दुनिया की प्राचीन भाषा से लेकर संस्कृत जैसी ज्ञान परंपरा तक, हर भारतीय भाषा हमारी सांस्कृतिक पूँजी है। हम चाहते हैं कि देश के बच्चे अपनी मातृभाषा में सीखें, और एक-दूसरे की भाषाओं से भी परिचित हों। भाषाएँ विभाजन नहीं, बल्कि एकता का पुल बनें, यह जिम्मेदारी हम सबकी है।

तीसरा स्तंभ है, भेदभाव-रहित विकास। गरीबी और भेदभाव किसी भी समाज की सबसे बड़ी कमजोरी होती हैं। सरदार पटेल चाहते थे कि भारत विकास और समृद्धि के उस स्तर पर पहुँचे जहाँ गरीबी स्वयं समाप्त हो जाए। बीते वर्षों में 25 करोड़ से अधिक लोगों का गरीबी रेखा से बाहर आना, घर-घर पानी, आवास, स्वास्थ्य सुविधाएँ, ये सभी प्रयास राष्ट्रीय एकता को मजबूत बना रहे हैं, क्योंकि सम्मान और समान अवसर ही स्थायी एकता का आधार हैं।

चौथा स्तंभ है, कनेक्टिविटी और दिलों का जुड़ाव। आज देश में नए हाईवे, एक्सप्रेसवे, आधुनिक रेलगाड़ियाँ, और हवाई संपर्क भारत को तेज़ी से जोड़ रहे हैं। डिजिटल क्रांति ने तो दूरी और समय की सीमाएँ ही बदल दी हैं। जब लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं, राज्यों के बीच यात्रा, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ता है, तो राष्ट्र की एकता स्वाभाविक रूप से मजबूत होती है।

मैं यह भली-भांति समझता हूँ कि यदि राष्ट्रीय एकता इन चारों स्तंभों पर निरंतर टिकी और सुदृढ़ बनी रहे, तो भारत के लिए कोई भी लक्ष्य दूर नहीं है। यही चार आधार वे स्तंभ हैं जो हमें 2047 तक ‘विकसित भारत’ के सपने को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ाते हैं।

यही एकता हमें 2047 के उस स्वर्णिम भारत की ओर ले जाएगी, जिसकी कल्पना हमारे महान स्वतंत्रता सेनानियों और सरदार पटेल जैसे राष्ट्रनायकों ने की थी।

देवियो और सज्जनो,

आज का यह आयोजन “एक भारत-श्रेष्ठ भारत” की उस अवधारणा को प्रकट करता है, जो केवल शासन की नीति नहीं, बल्कि नागरिकों की भावना है।

जब विविधता शक्ति बन जाती है, जब हर संस्कृति का सम्मान होता है, जब हर राज्य अपनी पहचान के साथ भारत की पहचान को भी अपनाता है, तब एक श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण होता है। और चंडीगढ़ ने इसे न केवल अपनाया है, बल्कि जीवन पद्धति बना लिया है।

मैं इस आयोजन के सभी आयोजकों, चंडीगढ़ प्रशासन, विभिन्न सामाजिक संगठनों, और नागरिकों, सबको हृदय से प्रशंसा देता हूँ।

आज जब हम इस मैदान को छोड़ेंगे, तो केवल एक कार्यक्रम की याद लेकर नहीं जाएँगे, बल्कि एक संकल्प लेकर जाएँगे कि हम भारत की एकता, अखंडता और गरिमा को अपने जीवन में सर्वोपरि रखेंगे।

हम विविधता का सम्मान करेंगे। हम सरदार पटेल के आदर्शों को आत्मसात करेंगे और एक मजबूत, एकजुट, और विश्व का मार्गदर्शक भारत बनाएँगे।

आप सभी का पुनः हृदय से धन्यवाद।

भारत माता की जय!

वंदे मातरम्!

धन्यवाद,जय हिंद!