SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF HONOUR FLOOD HEROES AT NON POLITICAL EVENT AT PTC AT MOHALI ON DECEMBER 4, 2025.

‘पीटीसी सेवा सम्मान 2025’ के अवसर पर

राज्यपाल श्री गुलाब चंद कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 04.12.2025, गुरूवारसमयः दोपहर 12:30 बजेस्थानः मोहाली

    

नमस्कार!

पीटीसी नेटवर्क द्वारा आयोजित ‘‘पीटीसी सेवा सम्मान 2025’’ के इस प्रेरणादायी और अनुकरणीय कार्यक्रम में उपस्थित होकर मैं स्वयं को अत्यंत सम्मानित और भावनात्मक रूप से अभिभूत महसूस कर रहा हूँ। 

मुझे बताया गया है कि पीटीसी नेटवर्क ने वर्ष 2006 में अपनी यात्रा प्रारंभ की थी। तब से लेकर आज तक यह भारत सहित विश्वभर में सबसे अधिक देखे जाने वाले पंजाबी चैनलों में से एक बन चुका है। अपनी निरंतर प्रगति के साथ पीटीसी आज यूके, कनाडा, अमेरिका सहित 13 से अधिक देशों में प्रसारण कर रहा है और पंजाब तथा पंजाबी संस्कृति की एक सशक्त आवाज़ के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुका है।

इसका मूल उद्देश्य भारत और विश्वभर में बसे भारतीयों को पंजाब की मिट्टी, उसके मूल्यों और उसकी समृद्ध संस्कृति से जोड़ना है। साथ ही, दुनिया भर की संगत तक निरंतर लाइव गुरबानी पहुंचाना इस नेटवर्क का अत्यंत पावन संकल्प है।

ज़िम्मेदार पत्रकारिता, सांस्कृतिक संरक्षण, तथा जन-सेवा आधारित कार्यक्रमों के माध्यम से पीटीसी नेटवर्क राष्ट्रीय एकता, सामाजिक जागरूकता और सामुदायिक कल्याण को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इन्हीं प्रयासों के कारण नेटवर्क को हर वर्ष ENBA (Exchange4media News Broadcasting Awards) सहित अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त होते रहे हैं।

यह अत्यंत ही हर्ष और गर्व का विषय है कि पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य जागरूकता और नशा-नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर पीटीसी द्वारा चलाए गए कई अभियानों ने समाज में सार्थक सकारात्मक परिवर्तन भी लाए हैं।

देवियो और सज्जनो,

आज हम यहाँ उन महान लोगों और स्वयंसेवी संगठनों को सम्मानित करने के लिए एकत्रित हुए हैं, जिन्होंने हाल ही में पंजाब में आई भीषण बाढ़ के दौरान अपने व्यक्तिगत हितों को बिल्कुल किनारे रखते हुए मानवता की सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया। 

ये सभी हमारे पंजाब के सच्चे हीरो हैं, जो न केवल साहस और करुणा का प्रतीक हैं, बल्कि हमें यह भी याद दिलाते हैं कि हमारा समाज तभी मजबूत बनता है जब हम एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। 

इन सभी ने संकट की घड़ी में किसी पहचान, किसी सीमा, किसी धर्म या समुदाय का भेद नहीं किया; जिन्होंने मानवता को सर्वोपरि माना और दूसरों की पीड़ा को अपने कर्तव्य की पुकार समझा।

हम सभी जानते हैं कि पंजाब के कई जिलों में अप्रत्याशित और भीषण बाढ़ ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया। घर बह गए, फसलें नष्ट हो गईं, सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हो गए, पशुधन की हानि हुई, मानवीय क्षति हुई और हजारों परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा।

मैं आज इस मंच पर सम्मानित सभी प्रतिष्ठित लोगों और स्वयंसेवी संगठनों को दिल से आभार प्रकट करता हूं कि संकट की उस घड़ी में, जब हालात चुनौतीपूर्ण थे और अनेक परिवार कठिनाइयों से जूझ रहे थे, तब आप सभी ने बिना किसी अपेक्षा के आगे बढ़कर राहत, सुरक्षा और आशा का संबल प्रदान किया।

यही है पंजाबियत और यही है साड्डा पंजाब, जहाँ दर्द साझा किया जाता है और जहाँ इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है।

साथियो,

मेरा मानना है कि मीडिया की भूमिका केवल समाचार प्रसारित करने तक सीमित नहीं होती; मीडिया समाज का दर्पण भी है, प्रेरक भी है और कठिन परिस्थितियों में पथप्रदर्शक की भूमिका भी निभाता है। मीडिया वह शक्ति है जो घटनाओं को केवल दिखाता नहीं, बल्कि समाज की सोच, संवेदनाओं और दिशा को भी प्रभावित करता है।

पीटीसी नेटवर्क ने इस जिम्मेदारी को न केवल समझा, बल्कि उसे अत्यंत संवेदनशीलता और निष्ठा के साथ निभाया है। इसने उन अनसुने और अनदेखे नायकों की कहानियाँ देश-दुनिया तक पहुँचाईं, जिन्होंने इस भीषण बाढ़ की मुश्किल परिस्थितियों में अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों की जिंदगी बचाई, उनका साहस बढ़ाया और कई परिवारों में फिर से उम्मीद की रोशनी जगाई।

इन कहानियों को सामने लाना केवल पत्रकारिता का कार्य नहीं, बल्कि समाज को यह बताने का एक सशक्त संदेश है कि हमारे बीच ऐसे लोग आज भी मौजूद हैं, जो मानवता को सर्वोपरि मानते हैं। ऐसे उदाहरण प्रेरणा देते हैं, हौसला बढ़ाते हैं और समाज में सकारात्मकता और विश्वास को मजबूत करते हैं।

मैं पीटीसी नेटवर्क को विशेष बधाई देना चाहता हूँ कि उन्होंने मानवता के इन सिपाहियों को पहचानने, सम्मानित करने और समाज के सामने प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत करने की इस महान परंपरा को आगे बढ़ाया है।

देवियो और सज्जनो,

पंजाब हमेशा से सेवा, परोपकार और त्याग की भूमि रहा है। गुरु साहिबानों ने ‘सरबत दा भला’ का जो संदेश दिया, वह सिर्फ आध्यात्मिक उपदेश नहीं है, बल्कि एक जीवन-दर्शन है, जो इस भूमि की मिट्टी में रचा-बसा है। लंगर से लेकर राहत शिविरों तक, ख़ालसा पंथ की परंपराओं से लेकर आधुनिक स्वयंसेवी संगठनों तक, पंजाब में सेवा का भाव पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है। 

दुनिया के किसी भी कोने में जब कोई आपदा आती है, जब कोई नाज़ुक या चुनौतीपूर्ण परिस्थिति पैदा होती है, तो सबसे पहले जिस समुदाय के लोग सहायता का हाथ बढ़ाने के लिए पहुँचते हैं, उनमें पंजाबी हमेशा अग्रिम पंक्ति में दिखाई देते हैं। यह सेवा-भाव कोई नई बात नहीं है; यह हमारे गुरुओं की उस अनमोल परंपरा का विस्तार है, जिसने हमें निस्वार्थ सेवा और परहित को जीवन का मूल मंत्र सिखाया है। 

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इंसानियत की सेवा की सर्वोच्च मिसाल सैकड़ों वर्ष पहले भाई कन्हैया जी ने प्रस्तुत की थी। युद्धभूमि के बीच, जब चारों ओर घायल लोग पड़े थे, तब भाई कन्हैया जी ने मित्र-शत्रु का भेद मिटाकर सभी को पानी पिलाया, मरहम लगाया और मानवता को धर्म से ऊपर स्थापित किया। उनका यह दिव्य उदाहरण हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा वही है जो बिना भेदभाव, बिना अपेक्षा और पूरी करुणा के साथ की जाए।

इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज दुनिया भर में बसे पंजाबी अपने कर्म, करुणा और तत्परता से यह संदेश देते हैं कि इंसानियत की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। इसीलिए, जब भी कहीं संकट आता है, लोगों को भरोसा होता है कि पंजाबी ज़रूर आएँगे, और उम्मीद की नई रोशनी जगाएँगे।

आज जिन व्यक्तियों और संस्थाओं को सम्मानित किया गया है, वे इसी समृद्ध परंपरा के वाहक हैं। उन्होंने सिद्ध किया कि सेवा करने के लिए किसी पद, अधिकार या विशेष संसाधन की आवश्यकता नहीं होती, आवश्यक होता है केवल संवेदनशील हृदय और सहानुभूति से भरा मन। 

देवियो और सज्जनो,

पंजाब का राज्यपाल होने के नाते, अपने संवैधानिक दायित्व और नैतिक कर्तव्य का पालन करते हुए, मैंने भी व्यक्तिगत रूप से राज्य के सभी बाढ़ प्रभावित जिलों का व्यापक दौरा किया। 2 से 4 सितंबर तथा 13 सितंबर के दौरान फिरोजपुर, तरनतारन, अमृतसर, गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, रूपनगर और पटियाला का दौरा किया।

मैंने स्वयं देखा कि अमृतसर, गुरदासपुर और पठानकोट के सीमावर्ती जिलों में भारत की ओर लगभग 20 किलोमीटर तक के क्षेत्र में रावी नदी ने व्यापक स्तर पर भारी क्षति पहुँचाई। विशेष रूप से, पठानकोट के माधोपुर क्षेत्र में रावी नदी पर बने हैडवर्क के दो फ्लड गेट टूट जाने से स्थिति अत्यंत गंभीर हो गई, जो इस विनाश का प्रमुख कारण बना।

इसके अतिरिक्त, फिरोज़पुर और तरन तारन जिलों में ब्यास और सतलुज नदियों के उफान ने सीमावर्ती क्षेत्रों में गहन नुकसान पहुँचाया। कई स्थानों पर लोगों को अपने घर छोड़कर सुरक्षित इलाकों की ओर जाना पड़ा।

कपूरथला जिले में भी ब्यास नदी के जलस्तर में अप्रत्याशित वृद्धि से भारी क्षति हुई, जहाँ अनेक गाँवों की सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि जलमग्न हो गई और सामान्य जीवन पूरी तरह प्रभावित रहा।

इन दौरों के दौरान, मैंने व्यक्तिगत रूप से हमारे लोगों के सामने आने वाली चुनौतियों को देखा जलमग्न खेत, क्षतिग्रस्त घर, अस्त-व्यस्त जीवन, और सबसे बढ़कर, इस आपदा से जूझ रहे परिवारों की आँखों में दर्द। इन अनुभवों ने मुझे गहराई से छुआ और मेरे इस दृढ़ संकल्प को और मजबूत किया कि संकट की इस घड़ी में, हमें एकजुट होकर रहना होगा।

पंजाब में आई इस भीषण बाढ़ की स्थिति की गंभीरता को समझते हुए विभिन्न केन्द्रीय मंत्रियों ने भी पंजाब के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और यहां तक कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी 9 सितंबर 2025 को पंजाब का दौरा किया और बाढ़ की स्थिति और उससे हुए नुकसान की समीक्षा की।

समीक्षा के बाद प्रधानमंत्री जी ने पंजाब के लिए 16 सौ करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता की घोषणा भी की। इसके अलावा उन्होंने बाढ़ और प्राकृतिक आपदा में मृतकों के परिजनों को 2 लाख रुपये और गंभीर रूप से घायलों को 50 हजार रुपये की अनुग्रह राशि देने की भी घोषणा की। यह निर्णय पंजाब के लोगों के प्रति केंद्र सरकार की संवेदनशीलता और प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

जहाँ तक मुझे जानकारी प्राप्त हुई है, पंजाब के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में खेतों से रेत हटाने का कार्य अब भी जारी है। अनेक गाँवों में भारी मात्रा में जमा हुई रेत के कारण खेती प्रभावित हुई है, और किसान अपनी ज़मीन को दोबारा उपजाऊ बनाने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। प्रशासन और संबंधित विभाग भी इस प्रक्रिया को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं, ताकि किसान जल्द से जल्द अपने सामान्य कृषि कार्यों को पुनः शुरू कर सकें।

पूरा देश जानता है कि पंजाब के लोग हर चुनौती के बाद हमेशा और अधिक मज़बूत होकर आगे बढ़े हैं, और मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस बार भी हम उसी अदम्य संकल्प और एकता के साथ इस कठिन परीक्षा को पार कर लेंगे। हमारी धरती फिर से हरी-भरी होगी, खेतों में एक बार फिर नई फसलें लहलहाएँगी, और जिन घरों में संकट आया है, वहाँ पुनः आशा और खुशहाली बसेगी।

पंजाब की यही जिजीविषा, यही हिम्मत और यही अटूट आत्मा पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और यह शक्ति हमें किसी भी चुनौती को अवसर में बदलने की क्षमता देती है।

देवियो और सज्जनो,

हमारे महान देश भारत की परंपरा हमेशा से ‘देने’ की रही है। त्याग और परोपकार की अनगिनत गाथाओं से इस देश का इतिहास भरा हुआ है। महर्षि दधीचि ने इन्द्र के मांगने पर अपने शरीर की हड्डीयां तक दान कर दी थीं, जिससे वज्र का निर्माण हुआ। राजा शिवि ने कबूतर की रक्षा के लिए अपने शरीर का मांस काटकर तराजू पर रख दिया तो भगवान श्री राम के पूर्वज राजा दलीप, गाय की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। मानवता की भलाई के लिए सिद्धार्थ ने राजपाट त्याग दिया और वो गौतम बुद्ध हो गए। गुरु गोबिन्द सिंह ने देश व धर्म की रक्षा के लिए अपना पूरा परिवार कुर्बान कर दिया।

यदि आधुनिक भारत की बात करें, तो हमारे सामने महात्मा गांधी, विनोबा भावे, मदर टेरेसा जैसे अनेक महान लोगों के आदर्श खड़े होते हैं। महात्मा गांधी ने अहिंसा, करुणा और सत्य को जन-सेवा का आधार बनाया; विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन के माध्यम से समाज में समता और सहभागिता का संदेश फैलाया; और मदर टेरेसा ने निस्वार्थ दया और सेवा को मानवता का सर्वोच्च धर्म साबित किया।

इन महान आत्माओं ने हमें यह सिखाया कि किसी भी युग में, किसी भी परिस्थिति में, यदि मनुष्यता को सशक्त बनाना है तो सेवा-भाव, करुणा और त्याग ही सर्वोत्तम मार्ग हैं।

मानवता का यही जज़्बा भारत की असली शक्ति है, वह शक्ति जो हमारे समाज को जोड़ती है। कठिन समय में हमें एक-दूसरे का संबल बनाती है और दुनिया के सामने हमारे राष्ट्र की पहचान एक करुणामय, संवेदनशील और जिम्मेदार समाज के रूप में स्थापित करती है। यही मानवीय मूल्य हमारे लोकतंत्र, हमारी संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की सबसे मजबूत नींव हैं।

आज जब पूरा देश विकसित भारत 2047 के लक्ष्य की ओर अग्रसर है, तो हमारी सामाजिक एकता, हमारी करुणा और एक-दूसरे के प्रति हमारी जिम्मेदारी ही सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।

विकसित भारत केवल आर्थिक प्रगति से नहीं बनता, वह बनता है ऐसे ही नायकों की वजह से, जो बिना पुरस्कार की अपेक्षा के, बिना पहचान की चिंता के, संकट की घड़ी में मनुष्य होने का कर्तव्य निभाते हैं।

आज भले ही देश में अनेकों स्वयंसेवी लोग और स्वयंसेवी संस्थाएँ सक्रिय रूप से कार्य कर रही हैं, परन्तु राष्ट्र निर्माण की असली पहचान उन लोगों से होती है जो सेवा को देशभक्ति का सर्वोच्च रूप मानते हैं। देश के प्रति समर्पण केवल सीमा पर खड़े सैनिक का दायित्व नहीं है; यह हर उस नागरिक का कर्तव्य है जो समाज की जरूरतों को समझकर बिना किसी स्वार्थ के आगे बढ़ता है।

इसी भावना से प्रेरित होकर जब स्वयंसेवी लोग संकट के समय सहायता के लिए खड़े होते हैं, जब संस्थाएँ किसी पीड़ित परिवार का हाथ थामती हैं, तो वे न केवल मानवता की सेवा करती हैं बल्कि भारत के मजबूत और संवेदनशील राष्ट्र बनने के संकल्प को भी आगे बढ़ाती हैं।

इनका कार्य हमें याद दिलाता है कि सच्ची देशभक्ति केवल शब्दों में नहीं, बल्कि उन कर्मों में दिखाई देती है जो समाज को सुरक्षित, सक्षम और एकजुट बनाते हैं। यही सेवा, यही त्याग और यही समर्पण, विकसित भारत के निर्माण की सबसे बड़ी ताकत है।

मैं समझता हूं कि समाज को प्रेरित करने वाला यह पीटीसी सेवा सम्मान केवल एक पुरस्कार नहीं, यह एक संदेश है, एक उदाहरण है, और एक प्रेरणा भी। इससे समाज में यह विश्वास मजबूत होता है कि भले ही आपदा कितनी भी बड़ी क्यों न हो, यदि समाज एकजुट हो जाए, तो कोई भी चुनौती असंभव नहीं रहती।

मैं एक बार फिर पीटीसी नेटवर्क, सभी सम्मानित लोगों और संगठनों को हृदय से धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने इस आपदा को मानवता के उत्सव में बदल दिया।

आपका योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। आप सभी को हृदय से साधुवाद और हार्दिक शुभकामनाएँ।

धन्यवाद,

जय हिंद!