SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF 73RD CONVOCATION OF PUNJAB UNIVERSITY, PATIALA AT CHANDIGARH ON DECEMBER 13, 2025.
- by Admin
- 2025-12-13 12:50
पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के 73वें दीक्षांत समारोह के अवसर पर माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का सम्बोधनदिनांकः 13.12.2025, शनिवार समयः सुबह 11:00 बजे स्थानः चंडीगढ़
नमस्कार!
आज पंजाब यूनिवर्सिटी के इस 73वें दीक्षांत समारोह के भव्य मंच पर खड़े होकर मैं केवल एक विश्वविद्यालय को संबोधित नहीं कर रहा, बल्कि एक परंपरा, एक चेतना, एक सांस्कृतिक धरोहर और एक सदी से अधिक समय से ज्ञान के प्रवाह का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था को नमन कर रहा हूँ।
मैं आज इस अवसर पर डिग्रियां प्राप्त करने वाले सभी 1008 विद्यार्थियों को बधाई देता हूं, जिसमें 350 पीएच.डी. उपाधियाँ (124 पुरुष और 226 महिला), 103 स्नातक स्तर के मेधावी विद्यार्थियों (22 पुरुष और 81 महिला), 317 स्नातकोत्तर स्तर के मेधावी विद्यार्थियों (65 पुरुष और 252 महिला) को सम्मानित किया गया, तथा विभिन्न संकायों और विषयों में 104 स्नातक (11 पुरुष और 93 महिला) और 134 स्नातकोत्तर (27 पुरुष और 107 महिला) विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय की वास्तविक महिमा इसके भवनों, दीवारों या अवसंरचना में नहीं, बल्कि इसकी आत्मा में निहित है। यह आत्मा उस दिन से जीवित है जिस दिन यह विश्वविद्यालय 1882 में लाहौर में स्थापित हुआ था। यह वही कालखंड था जब शिक्षा केवल भविष्य का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्र की चेतना जगाने का माध्यम थी।
देश के विभाजन ने इस विश्वविद्यालय को भौगोलिक रूप से बदल दिया, पर इसकी जड़ों को नहीं; यह आत्मा लाहौर से चंडीगढ़ आई और उसी ऊर्जा, उसी तेजस्विता, उसी वैचारिक गरिमा के साथ यहाँ फली-फूली।
यह वही परिसर है जहाँ केवल विज्ञान या वाणिज्य नहीं पढ़ाया जाता, बल्कि जीवन पढ़ाया जाता है। यह वही भूमि है जहाँ वेदों की प्रज्ञा, उपनिषदों की आत्मचेतना और गुरु परंपरा की करुणा एक साथ मिलकर एक पूर्ण शिक्षा का निर्माण करती है।
विश्वविद्यालय की वास्तविक शक्ति इसके विद्यार्थी नहीं, बल्कि वह विरासत है जिसे इसके विद्यार्थी आगे बढ़ाते हैं। यही विश्वविद्यालय है जिसने विश्व को नोबेल पुरस्कार विजेता हरगोबिंद खुराना जैसे महान वैज्ञानिक दिए।
यही विश्वविद्यालय है जिसने देश को न केवल एक, बल्कि दो पूर्व प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह और इंद्र कुमार गुजराल दिए। इसी परिसर ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा को गढ़ा और सुषमा स्वराज भी इसी संस्था की देन हैं।
और केवल राजनीति या विज्ञान ही नहीं, व्यापार जगत में सुनील मित्तल जैसे वैश्विक स्तर पर सम्मानित उद्योगपति, खेल जगत में कपिल देव जैसे क्रिकेट के दिग्गज और नीरज चोपड़ा जैसा विश्वस्तरीय एथलीट, कला जगत में अनुपम खेर, किरण खेर, जसपाल भट्टी और आयुष्मान खुराना जैसे कलाकार, सभी इस महान विश्वविद्यालय के दीपक हैं।
आज पंजाब विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय और वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति को जिस प्रकार स्थापित किया है, वह किसी भी प्रतिष्ठित संस्थान के लिए प्रेरणास्रोत हो सकता है। NAAC द्वारा A++ ग्रेड और 3.68 CGPA (Cumulative Grade Point Average) प्राप्त करना इसकी अकादमिक दृढ़ता का प्रमाण है। ग्रेड-1 स्वायत्तता इसका भविष्य निर्माण करने की क्षमता को दर्शाती है। QS World University Rankings 2026 में शीर्ष 950 वैश्विक विश्वविद्यालयों में स्थान पाना कोई साधारण उपलब्धि नहीं।
QS Sustainability Rankings में 569वाँ स्थान परम आवश्यक है, क्योंकि यह दिखाता है कि विश्वविद्यालय भविष्य की पीढ़ियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझता है। उच्च शिक्षा का अर्थ केवल तकनीकी ज्ञान नहीं है; उच्च शिक्षा का अर्थ है एक ऐसे नागरिक का निर्माण जो पर्यावरण, समाज और शासन, तीनों के प्रति उत्तरदायी हो। पंजाब विश्वविद्यालय उस आदर्श को साकार कर रहा है।
हम जानते हैं कि अनुसंधान का क्षेत्र किसी भी विश्वविद्यालय का हृदय होता है, और पंजाब विश्वविद्यालय का यह हृदय आज पहले से कहीं अधिक सशक्त, समृद्ध और जीवंत है। Breakthrough Prize in Fundamental Physics 2025 प्राप्त करना केवल एक पुरस्कार नहीं है; यह घोषणा है कि भारत की प्रयोगशालाओं में वह विज्ञान जन्म ले रहा है जो विश्व को बदलने की क्षमता रखता है।
इसी प्रकार ग्रीन नैनो-मिकेल तकनीक का विकास, उसका पेटेंट और उसका उद्योग में ट्रांसफर यह दर्शाता है कि यह विश्वविद्यालय शोध को केवल अकादमिक उपलब्धि नहीं मानता, बल्कि उसे समाज और उद्योग के लिए समाधान के रूप में देखता है। यहाँ ज्ञान पुस्तकालयों में बंद नहीं रहता, प्रयोगशालाओं से निकलकर समाज तक पहुँचता है।
देवियो और सज्जनो,
कला और संस्कृति किसी भी संस्थान की आत्मा होती है, और पंजाब विश्वविद्यालय की आत्मा समृद्ध, जीवंत और संवेदनशील है। North-Zone Inter-University Youth Festival 2024 में समग्र चैम्पियन बनना यह दर्शाता है कि यहाँ न केवल अध्ययन होता है, बल्कि अभिव्यक्ति भी होती है। यहाँ विद्यार्थी केवल विचार नहीं लिखते, वे विचारों को मूर्त रूप देते हैं, उन्हें संगीत, नृत्य, नाटक और साहित्य के माध्यम से जीवंत करते हैं।
आज भारत विकसित भारत 2047 के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है। ऐसे समय में पंजाब विश्वविद्यालय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विश्वविद्यालय न केवल छात्रों को ज्ञान देता है, बल्कि उन्हें एक मानसिक ढाँचे, एक अपेपवद से भी जोड़ता है।
चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का क्रियान्वयन, बहुविषयक शिक्षा, कौशल विकास, उद्यमिता केंद्र, ये सभी प्रयास यह बताते हैं कि यह विश्वविद्यालय केवल आज के लिए नहीं, बल्कि आने वाली आधी सदी के लिए नींव तैयार कर रहा है।
आज के समय में विश्वविद्यालयों के बारे में चर्चा, बहस, आलोचना और मतभेद बहुत सामान्य हो गए हैं। यह केवल पंजाब विश्वविद्यालय के साथ नहीं, यह हर बड़े विचारशील केंद्र के साथ होता है।
परंतु हमें यह समझना चाहिए कि बहस, मतभेद और प्रश्न उठना किसी संस्था की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी जीवंतता का प्रमाण है। जहाँ बहस है, वहीं प्रगति है; जहाँ विचारों का संघर्ष है, वहीं नए समाधान जन्म लेते हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय की संस्कृति संवाद की है। यहाँ मतभेद का अर्थ विभाजन नहीं बल्कि परिष्कार है। और यही कारण है कि इस विश्वविद्यालय को लंबे समय से "Rise of Phoenix" कहा जाता है।
जब भी इस संस्थान ने चुनौती देखी, चाहे वह आर्थिक हो, नीतिगत हो या सामाजिक, यह विश्वविद्यालय फीनिक्स की भाँति उठ खड़ा हुआ और पहले से भी अधिक मजबूती, गरिमा और प्रकाश के साथ आगे बढ़ा। इसका इतिहास इसका प्रमाण है, और इसका भविष्य इसका वचन है।
मेरे प्रिय युवा साथियो,
भारत में शिक्षा की एक गौरवपूर्ण गुरुकुल परंपरा रही है। इस परंपरा ने विद्यार्थियों को केवल ज्ञान ही नहीं दिया, बल्कि उन्हें जीवन के हर आयाम के लिए तैयार किया। इस शिक्षण प्रक्रिया में श्रवण, मनन और निदिध्यासन के तीन महत्वपूर्ण चरण थे। ‘श्रवण’ का अर्थ है, इंद्रियों के माध्यम से ज्ञान को ग्रहण करना। ‘मनन’ का अर्थ है, सुने हुए ज्ञान को मन में विचारकर, उसे गहराई से समझना। और ‘निदिध्यासन’ का अर्थ है, सीखे हुए ज्ञान को जीवन में उतारना, अर्थात् उसे व्यवहार में लागू करना।
विद्यार्थी जब दीक्षांत के चरण में पहुँचते थे, तब आचार्य या गुरु उनसे कहते थे, “सत्यं वद, धर्मं चर, स्वाध्यायान्मा प्रमदः”, अर्थात् ज्ञान प्राप्त करने के बाद जीवन में सत्य का पालन करना, धर्म के मार्ग पर चलना और अध्ययन में कभी आलस्य न करना।
गुरुवाणी में यह भी कहा गया है, “सत्य सबसे ऊपर है, और यदि उससे भी ऊपर कुछ है तो वह है, सत्य का आचरण।”
भारतीय शिक्षा का मूल उद्देश्य सदैव से चरित्र निर्माण और विद्यार्थियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास रहा है। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे महापुरुषों ने भी अपने लेखन में इस आदर्श को विशेष महत्व दिया है।
आज देश और विश्व के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है चरित्र संकट (Crisis of Character)। यह चरित्र-हीनता ही अनेक समस्याओं की जड़ है। अतः समय की आवश्यकता है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली के इस चरित्र निर्माण के मूल उद्देश्य की ओर पुनः लौटें। यह प्रसन्नता की बात है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने इस मूल शिक्षा-दर्शन को पूर्ण सम्मान दिया है और इसे शिक्षा व्यवस्था का अभिन्न भाग बनाया है।
प्रिय विद्यार्थियों, आज आपका यह क्षण केवल सफलता का उत्सव नहीं, यह आपकी जिम्मेदारी का उद्घोष भी है। आपसे अपेक्षा केवल इतनी नहीं है कि आप जीवन में ऊँचाइयाँ प्राप्त करें; आपसे अपेक्षा यह है कि आप उन ऊँचाइयों को समाज, राष्ट्र और मानवता के हित में उपयोग करें।
स्वामी विवेकानंद का विचार, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”, आपकी यात्रा का मंत्र होना चाहिए। लेकिन लक्ष्य प्राप्ति केवल बाहरी उपलब्धि नहीं है; लक्ष्य प्राप्ति उस आंतरिक विकास का भी नाम है जिसके बारे में डॉ. भीमराव अम्बेडकर हमें याद दिलाते हैं जब वे कहते हैं कि “मनुष्य का अंतिम लक्ष्य मस्तिष्क का विकास है।”
और यह विकास तभी संभव है जब आपके भीतर वह आत्मविश्वास हो जिसकी ओर गुरु नानक देव जी संकेत करते हुए कहते हैं, “जो अपने ऊपर विश्वास नहीं करता, वह ईश्वर पर विश्वास नहीं कर सकता।” ये तीनों विचार अलग-अलग प्रतीत हो सकते हैं, पर वास्तव में ये एक ही सूत्र के लक्ष्य, विकास और विश्वास रूपी तीन आयाम हैं।
साथियो,
इस अवसर पर मुझे नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के अमूल्य शब्द याद आ रहे हैं, उन्होंने कहा था, “शिक्षा सिर्फ किसी पात्र को भरने का नाम नहीं है, बल्कि भीतर एक अग्नि प्रज्वलित करने का कार्य है।” केवल विशेषज्ञता हासिल कर लेना ही शिक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्र सोच और सही निर्णय-क्षमता का विकास अत्यंत आवश्यक है।
मेरा विश्वास है कि आपने इस विश्वविद्यालय में जो ज्ञान प्राप्त किया है, वह न केवल आपको संकीर्णता या किसी भी प्रकार के विभाजन से दूर रखेगी, बल्कि जीवन को व्यापक दृष्टि से समझने, सहानुभूति विकसित करने और मानवता को गहराई से अनुभव करने की प्रेरणा भी देगी।
जनसंख्या की दृष्टि से भारत आज विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राष्ट्र बन चुका है। इसलिए भारत में होने वाला बदलाव पूरी दुनिया को प्रभावित करता है। सदियों की औपनिवेशिक शासकीय व्यवस्था ने हमारे देश को पिछड़ेपन के अँधेरे में धकेल दिया था, और हमारे लोगों ने गरीबी तथा अविकास से मुक्ति के लिए लंबे समय तक प्रतीक्षा की है। आज जब आप उच्च शिक्षित युवा हैं, देश आपसे उम्मीद रखता है कि आप सतत् विकास की दिशा में राष्ट्र का नेतृत्व करेंगे।
वर्ष 2047 में हम अपनी आज़ादी की शताब्दी मनाएँगे। हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने आज़ादी के इस अमृतकाल को भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में एक निर्णायक काल बताया है। विकसित भारत 2047 का यह लक्ष्य आप जैसे युवाओं के कंधों पर ही टिका है। आपको यह संकल्प लेना होगा कि 2047 तक देश हर क्षेत्र में विकसित, समानता-आधारित और न्यायपूर्ण समाज के रूप में स्थापित हो।
आप अपने देश से प्रेम करें और उसके विकास की यात्रा में सहभागी बनें। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “मैं हमेशा अपने देश से प्रेम करता था, पर विदेशों की यात्रा के बाद मैंने अपने देश की पूजा करनी शुरू कर दी।”
जब आप इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से विदा होकर जीवन की नई यात्रा शुरू करेंगे, तो मैं आपको यही सलाह दूँगा कि आप स्वयं पर विश्वास रखें और अपने ज्ञान, कौशल और क्षमताओं पर पूर्ण भरोसा रखें।
याद रखें, संदेह बाधाओं का पहाड़ खड़ा कर देता है, जबकि आशा उन पहाड़ों में भी सुरंग बना देती है। सही ही कहा गया है कि “जीवन स्वयं को ढूँढ़ने का नहीं, बल्कि स्वयं को गढ़ने का नाम है।”
इसलिए, अपने तकनीकी कौशल के साथ जीवन कौशल को भी निखारें और स्वयं को बदलते समय के अनुसार ढालें। हर परिस्थिति में वही सफल होता है जो समय के अनुरूप स्वयं को ढालना जानता है। केवल बुद्धिमान या शक्तिशाली होना सफलता की गारंटी नहीं, बल्कि अनुकूलनशीलता ही वास्तविक सफलता का मार्ग है।
अंत में, मैं आप सभी से केवल एक ही विनती करना चाहता हूँ कि आप अपने ‘अल्मा मेटर’, अपने पंजाब विश्वविद्यालय को कभी मत भूलिए। यह परिसर आपकी जड़ है, यह आपकी पहचान है। यहाँ से प्राप्त शिक्षा केवल आपकी डिग्री में नहीं, आपके व्यक्तित्व में बसती है। आप चाहे जहाँ जाएँ, जैसे भी आगे बढ़ें, एक दिन यहाँ लौटकर अवश्य आएँ। अपनी उपलब्धियों के साथ, अपने अनुभवों के साथ, और उस ऊर्जा के साथ जिसे आने वाली पीढ़ियाँ आपसे ग्रहण करेंगी।
2025 के सभी स्नातकों को मेरी हृदय से शुभकामनाएँ। आपका जीवन ज्ञान से प्रकाशित हो, आपका पथ सेवा से पवित्र हो, और आपका मन नवाचार से विभूषित हो। आपका हर कदम इस देश के लिए आशा बने और आपकी हर उपलब्धि भारत के भविष्य को आलोकित करे।
धन्यवाद,
जय हिन्द!