SPEECH OF HON’BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SHILPGRAM UTSAV – 2025 ORGANISED BY NZCC AT UDAIPUR ON DECEMBER 21, 2025.

‘शिल्पग्राम उत्सव-2025’ के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का संबोधन

दिनांकः 21.12.2025, रविवारसमयः शाम 6:30 बजेस्थानः उदयपुर

         

नमस्कार!

सबसे पहले मैं आप सभी को शिल्पग्राम उत्सव 2025 के इस शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ देता हूँ। साथ ही, मेरे प्रिय नगर उदयपुर में पधारे देश के विभिन्न भागों से आए सभी कलाकारों, लोक-कलाकारों और शिल्प कारीगरों का मैं स्नेहपूर्वक स्वागत करता हूँ।

यह उत्सव हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, लोकपरंपराओं और शिल्प कौशल को सशक्त मंच प्रदान करने का एक अनुपम प्रयास है। इस महत्वपूर्ण आयोजन के माध्यम से भारतीय संस्कृति की विविधता को जन-जन तक पहुँचाने हेतु पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर द्वारा किए जा रहे निरंतर और सराहनीय प्रयास प्रशंसा के पात्र हैं।

देवियो और सज्जनो,

भारत जैसे समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत वाले देश में यह अत्यंत आवश्यक है कि लोगों के बीच परस्पर खुलेपन, आपसी समझ, तथा विभिन्न परंपराओं के प्रति सम्मान और स्वस्थ दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाए। बीते वर्षों में देश की आर्थिक और तकनीकी प्रगति के परिणामस्वरूप मनोरंजन के क्षेत्र में रुचियाँ तेजी से बदली हैं। और उच्च तकनीक आधारित माध्यमों की ओर स्थानांतरित हुई हैं। इस तकनीकी प्रभाव ने हमारी अनेक पारंपरिक और ग्रामीण कला विधाओं के लुप्त होने की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

इसी पृष्ठभूमि में यह अनिवार्य हो गया कि हमारी विरासत में प्राप्त मूल्यों तथा समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक सशक्त और प्रभावी व्यवस्था स्थापित की जाए।

हमारे देश की इसी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने और बढ़ावा देने के उद्देश्य से, भारत सरकार ने 1986 में क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना की। इन केंद्रों में उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, पटियाला; दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, तंजावुर; पूर्वी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र, कोलकाता; पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, उदयपुर; उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज; उत्तर पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, दीमापुर और दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर शामिल हैं जो देश की सांस्कृतिक एकता और विविधता को सशक्त बनाने के लिए काम करते हैं।

इन केंद्रों का मुख्य उद्देश्य स्थानीय कला, संगीत, नृत्य, नाटक, और परंपराओं को संरक्षित करना और देशभर में उन्हें प्रचारित करना है। साथ ही, यह विभिन्न क्षेत्रों की संस्कृतियों के बीच संवाद और सहयोग को बढ़ावा देते हैं।

साथियो,

आज यहाँ पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा झीलों की नगरी उदयपुर में आयोजित यह शिल्पग्राम उत्सव उदयपुर का एक ऐसा उत्सव है जिसे उदयपुर और इसके आसपास के लोग वर्ष भर प्रतीक्षा करते हैं।

वास्तव में इस तरह के आयोजन हमारी विरासत और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें पता लगता है कि भारत कितना विशाल है और इसकी सांस्कृतिक धरोहर कितनी समृद्ध है। 

उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक आप भ्रमण करें तो आपको भिन्न भिन्न स्थानीय परम्पराओं और सांस्कृतिक आचार विचार से आपका परिचय होता है आपको पता लगता है कि भारत का हृदय कितना विशाल है और इसमें कितने ही सुविचार और पद्धतियाँ समाहित हैं। लेकिन ये सभी तत्व भारत नाम के एक सूत्र में पिरोये हुए हैं इसलिए हम गर्व से इसे अनेकता में एकता के नाम से सम्बोधित करते हैं।

शिल्पग्राम उत्सव इसी एकता और अनेकता का एक छोटा रूप दिखाता है। अगर आप देश के विभिन्न राज्यों की यात्रा नहीं कर सकते तो आप शिल्पग्राम अवश्य आइये। पूरे भारत के दर्शन आपको यहीं हो जाएंगे।

मैं व्यक्तिगत रूप से इस मेले से कई वर्षों से जुड़ा हूँ। राज्यपाल बनने से पूर्व जब मेरे पास राजस्थान मैं मंत्री पद का दायित्व था तब भी मैं आता था और मुझे इस बात की प्रसन्नता होती थी कि शिल्पग्राम खुद को और शिल्पग्राम उत्सव को नवाचारों से समृद्ध किया जाता रहा है।

ऐसे आयोजनों के माध्यम से न केवल कारीगरों को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है, बल्कि उनकी आजीविका को भी बढ़ावा मिलता है। इन उत्सवों से हमें यह भी समझने का अवसर मिलता है कि हमारे देश में किस प्रकार की अनमोल कलाकृतियाँ बनाई जाती हैं।

मेरा मानना है कि शिल्पग्राम उत्सव का यह अयोजन न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि शिक्षा का एक ऐसा केंद्र भी है, जो हमें हमारे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति जागरूक करता है।

यह उत्सव केवल हस्तशिल्प का प्रदर्शन ही नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जहाँ शहरी और ग्रामीण संस्कृति का संगम होता है। यहाँ आने वाले लोग न केवल हस्तशिल्प के उत्पादों को खरीदते हैं, बल्कि उन्हें बनाने की प्रक्रिया और उनकी सांस्कृतिक महत्ता को भी समझते हैं।

आज जबकि पश्चिम की अंधाधुंध दौड़ में हमारी नई पीढ़ी हमारी महान सांस्कृतिक विरासत से दूर हो रही है, ऐसे में पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र का ये प्रयास बहुत दूरगामी प्रभाव रखता है। ये लोक कलाएं ही हैं जो हमारी सामूहिक पहचान को दर्शाती हैं। इन लोक कलाओं से ही हमारी शास्त्रीय कलाओं का विकास होता है।

मुझे ज्ञात है कि यहां नवाचारों से युवा पीढ़ी को जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। युवा पीढ़ी ही हमारी सांस्कृतिक पहचान को आगे ले जाने में अपना योगदान निभाएगी।

मेरा ये दृढ़ विश्वास है कि संस्कृति ही एक ऐसा तत्व है जो दिलों को दिलों से जोड़ता है, जो हमें राष्ट्रीय पहचान देता है और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की अवधारणा को मज़बूती प्रदान करता है। हमारी संस्कृति के अनेक रंग हैं जो रंग बिरंगे फूलों की तरह हमारे महान देश को सुंदर बनाते हैं।

देवियो और सज्जनो,

भारत त्योहारों और मेलों की भूमि है, जहाँ ऐसे आयोजन शिल्पकारों, हथकरघा कारीगरों, लोक-कलाओं, लोक-संगीत, नृत्यों और पारंपरिक व्यंजनों का सुंदर संगम प्रस्तुत करते हैं। इन मेलों में भारतीय गांवों की सोंधी खुशबू और हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं के विविध रंग स्पष्ट रूप से झलकते हैं, जो हर आनेवाले व्यक्ति को आकर्षित करते हैं।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का दृढ़ विश्वास था कि भारत का वास्तविक विकास तब तक संभव नहीं है, जब तक गांवों का जमीनी स्तर पर विकास न हो। उन्होंने ग्रामोद्योग, हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को देश के समग्र विकास की रीढ़ माना।

हस्तशिल्प भारतीय कला और संस्कृति का जीवंत प्रतिबिंब है। बंधेज, मधुबनी चित्रकला, पत्थर की मूर्तियाँ, जरी-जरदोजी और लकड़ी पर नक्काशी जैसी कलाएँ न केवल देश में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की पहचान बन चुकी हैं। इसी प्रकार कुटीर उद्योग ग्रामीण और अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का महत्वपूर्ण साधन हैं, जो विशेष रूप से महिलाओं और पारंपरिक कौशल से जुड़े लोगों को आत्मनिर्भर बनने का अवसर प्रदान करते हैं।

हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग केवल आर्थिक सशक्तिकरण तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये हमारी संस्कृति, परंपराओं और जीवन मूल्यों के संवाहक भी हैं। इसलिए इनका संरक्षण और संवर्धन अत्यंत आवश्यक है।

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार कारीगरों और शिल्पकारों के आर्थिक सशक्तिकरण के साथ-साथ भारत की स्वदेशी सांस्कृतिक विरासत के पुनर्जीवन हेतु निरंतर प्रयास कर रही है। ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे अभियानों ने स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने और स्वदेशी से स्वावलंबन की भावना को मजबूत किया है।

जब हम अपने स्थानीय उत्पादों को अपनाते हैं, तो न केवल हमारी अर्थव्यवस्था सशक्त होती है, बल्कि हमारे कारीगरों, किसानों और छोटे उद्यमियों का आत्मविश्वास भी बढ़ता है। हस्तशिल्प और पारंपरिक कला आज आत्मनिर्भर भारत की यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

मुझे प्रसन्नता है कि इस शिल्पग्राम उत्सव के माध्यम से कलाकारों और कारीगरों को ऐसा मंच उपलब्ध कराया गया है, जहाँ वे सीधे उपभोक्ताओं से जुड़कर अपनी कला का उचित मूल्य प्राप्त कर सकते हैं। यह आयोजन केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना का सजीव उदाहरण है, जहाँ देश के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ एक-दूसरे से संवाद करती हैं।

ऐसे कार्यक्रम विशेष रूप से युवाओं के लिए प्रेरणादायक हैं, क्योंकि ये उन्हें भारत की आत्मा, उसके गांवों, उसकी कारीगरी और उसकी जीवंत परंपराओं से जोड़ने का अवसर प्रदान करते हैं।

देवियों और सज्जनों,

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लोककला, लोकनृत्य और लोकगीत केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं, बल्कि वे हमारी सामाजिक चेतना, हमारी पीढ़ियों का अनुभव, और हमारी भावनात्मक अभिव्यक्ति हैं। जब हमारे लोक कलाकार मंच पर अपनी कला प्रस्तुत करते हैं, तो वे हमें इतिहास की गहराई, जीवन की सरसता और मानव की भावनाओं की व्यापकता से परिचित कराते हैं। यही कारण है कि लोककला और शिल्प को संरक्षित रखना हमारा सर्वाधिक दायित्व है।

आज शिल्पग्राम उत्सव में प्रस्तुत हो रहे हस्तशिल्प, कढ़ाई, छपाई, मिट्टी के बर्तनों, लकड़ी और धातु के शिल्पों, तथा पारंपरिक वस्त्रों की विभिन्न झलकियाँ भारतीय शिल्पकला की महानता और सौंदर्यबोध का प्रतीक हैं। इन कारीगरों ने न केवल अपनी कला को जीवित रखा है, बल्कि उन्होंने इस कला को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढालकर विश्व स्तर पर भारत की पहचान को भी मजबूती दी है।

हम जानते हैं कि आज के समय में, जब तकनीकी प्रगति और ग्लोबलाइजेशन हमारी जीवनशैली में तेजी से परिवर्तन ला रहे हैं, तब भी हमारी सांस्कृतिक पहचान को बचाए रखना और उसे सशक्त बनाना अत्यंत आवश्यक है। शिल्पग्राम उत्सव जैसे आयोजन इसी लक्ष्य की पूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

वे हमारी सांस्कृतिक संवेदनाओं को जागृत करते हैं, सांस्कृतिक पर्यटन को प्रोत्साहित करते हैं, और अर्थव्यवस्था में भी योगदान देते हैं। विशेष रूप से ग्रामीण और छोटे कारीगर जो अपनी कला के माध्यम से जीवन यापन करते हैं, उनके लिए यह आयोजन रोजगार, आत्मनिर्भरता और सम्मान का स्रोत बनता है।

शिल्पग्राम उत्सव हमें यह भी याद दिलाता है कि संस्कृति किसी एक पीढ़ी की देन नहीं है, यह पीढ़ियों के अनुभव, संघर्ष, श्रद्धा और सौंदर्यबोध का समन्वय है। हम जब लोक नृत्यों को देखते हैं, तो हमें हमारे पूर्वजों की हार्दिकता, उनके उत्साह, उनके सामूहिक जीवन के आनंद की झलक दिखाई देती है। जब हम लोक संगीत सुनते हैं, तो हमें जीवन के प्रेम, भाग्य, उत्सव, श्रम और श्रद्धा रूपी हर पहलू के भाव महसूस होते हैं। यही संस्कृति का वास्तविक सौंदर्य है।

हमारी लोक कलाओं का महत्व तब और बढ़ जाता है जब हम सोशल मीडिया पर गैर जिम्मेदार लोगों के माध्यम से फैलाई जा रही कुरीति और कुसंस्कृति और उसके दुष्प्रभाव को देखते हैं। इन कुरीतियों और कुसंस्कृति से यदि हमें अपनी आने वाली नस्लों को बचाना है तो हमें अपनी जड़ों की ओर लौटना ही होगा। और इसमें हमारी सबसे अच्छी मददगार होंगी ये लोक कलाएं। 

मैं आज के इस शुभ अवसर पर पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर को इसके अथक प्रयासों और समर्पण के लिए नमन करता हूँ। आपकी मेहनत से ही भारत की विविधताओं के इस पर्व को एक सुव्यवस्थित, उज्ज्वल और प्रेरणादायक रूप दिया गया है। आपका कार्य केवल कला का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि आप हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने वाले संवाहक भी हैं।

मैं यह भी आग्रह करना चाहूँगा कि सरकारें, नागरिक समाज, युवा वर्ग और कला-प्रेमी, हम सभी मिलकर लोककला, नृत्य, संगीत और शिल्प को न केवल संरक्षित करें, बल्कि उसे नवयुग की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित भी करें। हमें अपनी सांस्कृतिक शिक्षा प्रणालियों में लोककला को शामिल करना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी अपनी जड़ों से जुड़ी रहें, और उन्हें गर्व हो कि वे एक महान संस्कृति की संतान हैं।

आज जब हम इस शिल्पग्राम उत्सव 2025 की भव्यता को देखते हैं, तो हमें यह आत्मसात करना चाहिए कि ऐसे आयोजन केवल उत्सव नहीं हैं, ये हमें अपनी पहचान, अपनी विरासत, और अपने भविष्य के प्रति जागरूक करते हैं। हमारी संस्कृति हमें मानवता, सौहार्द, सहिष्णुता और सद्भावना की सीख देती है; यही संदेश विश्व को भी भारत के माध्यम से मिलता है। अतः हमारी सांस्कृतिक उपलब्धियाँ केवल राष्ट्रीय गौरव का विषय नहीं, बल्कि वैश्विक संवाद और मानवता की साझा भाषा भी हैं।

हमारी संस्कृति के भिन्न भिन्न आयामों को अपने नवाचारों से प्रस्तुत करने वाले निदेशक फुरकान जी और उनकी टीम को मेरी ओर से बधाई और शुभकामनायें। फुरकान जी अभी उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक हैं और कुछ दिनों पूर्व ही चंडीगढ़ क्राफ्ट मेला इन्होंने बहुत ही शानदार ढंग से संपन्न करवाया है। मैं आशा करता हूँ कि शिल्पग्राम उत्सव इस बार भी बहुत सफल होगा और हमारी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

अंत में मैं एक बार पुनः सभी कलाकारों, आयोजकों, सहभागियों तथा उपस्थित श्रोताओं को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। आपका यह उत्साह, आपकी यह ऊर्जा और आपका यह समर्पण हमारी सांस्कृतिक धरोहर को अमर बनाता है। मैं आशा करता हूँ कि शिल्पग्राम उत्सव 2025 से प्रेरित होकर हम सभी अपने-अपने क्षेत्र में सांस्कृतिक संरक्षण, नवप्रवर्तन और सौहार्द का संदेश और अधिक मजबूती से फैलाएँगे।

धन्यवाद,

जय हिन्द! जय भारत!

और संस्कृति की अमरता हेतु अभिनंदन!