SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR PUNJAB AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI BANWARILAL PUROHIT ON ANNUAL 51ST ALL INDIA BHASKAR RAO NRITYA AND SANGEET SAMMELAN PRACHEEN KALA KENDRA AT CHANDIGARH ON MARCH 21, 2022
- by Admin
- 2022-03-21 18:30
सभागार में उपस्थित कला प्रेमियों, प्राचीन कला केन्द्र के अधिकारीगण एवं सुप्रसिद्ध कलाकारों को मेरा नमस्कार।
मुझे आज कला केंद्र की इस अद्वितीय संगीत संध्या में उपस्थित होने पर हार्दिक प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है। अखिल भारतीय भास्कर राव संगीत एवं नृत्य सम्मेलन देश के अग्रणी संगीत समारोहों में से एक है।
हम सब जानते हैं कि प्राचीन कला केन्द्र का संगीत एवं नृत्य के उत्थान एवं प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। यह भारतीय नृत्य और संगीत की विभिन्न कलाओं एवं विधाओं के विकास, संरक्षण और संजोने का अद्भुत कार्य पिछले 7 दशकों से निरन्तर करता आ रहा है। अपने अनथक प्रयासों और कलाक्षेत्र में अपनी सेवाओं के बल पर प्राचीन कला केन्द्र ने विश्व के कला जगत में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की है। मैं इस संस्था को इस मुकाम पर पहुंचाने के लिए किए प्रयासों के लिए कौसर दम्पति, स्वर्गीय एम.एल. कौसर एवं डॉ. शोभा कौसर की सराहना करता हूं और आशा करता हूं की आप सब इसी तरह कला और संस्कृति के प्रचार और प्रसार में अपना योगदान देते रहेंगे और इसका उत्थान होता रहेगा।
मित्रों,
विश्व के सांस्कृतिक मानचित्र पर भारत का एक महत्वपूर्ण स्थान है। हमें अपनी समृद्ध और विविध संस्कृति पर बहुत गर्व है। हम दुनिया की सबसे प्राचीन और सतत सभ्यताओं में से एक हैं और यह हमारी अंतर्निहित ताकत व हौसले के साथ-साथ हमारे मूल चरित्र तथा नैतिक मूल्यों को खोए बिना बदलाव को अपनाने की और नए विचारों का सामना करने की हमारी क्षमता के कारण ही संभव हो पाया है। नतीजतन, आज हमें कला, साहित्य, स्मारकों, रीति-रिवाजों और परंपराओं की एक बहुमूल्य श्रृंखला विरासत में मिली है जो हमारे जीवन को समृद्धी प्रदान करती है।
हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि हम अपने पूर्वजों द्वारा हमें धरोहर स्वरूप प्रदान की गई सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करें और अपनी आने वाली पीढ़ीयों के लिए इसके संरक्षण में अपना योगदान दें।
संविधान के तहत, भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह हमारी विविधताओं से भरी संस्कृति की समृद्ध विरासत का सम्मान व संरक्षित करे। मैं चाहता हूं कि हम सभी हमारी विविध और समृद्ध संस्कृति से जुड़ें और इसके संरक्षण में शामिल हों।
शास्त्रीय संगीत का इतिहास वैदिक काल से भी पुराना है। सामवेद को भारतीय शास्त्रीय संगीत की नींव माना जाता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत का उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में भी पाया जाता है, जिनमें रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य शामिल हैं।
मित्रों,
मुग़ल काल से भारतीय संगीत ने अपनी बुलन्दियों की ऊँचाइयों को छुआ। मुग़ल काल में संगीत को अनेक कवियों और गायकों ने अपने सुरों और मधुर आवाज़ से सजाया-संवारा। तानसेन, जोकि अकबर के नवरत्नों में से एक थे, उन्होंने भैरव, मल्हार, रागेश्वरी, दरबारी रोडी, दरबारी कानाडा, सारंग, जैसे कई रागों का निर्माण किया था। उन्होंने भारत में शास्त्रीय संगीत के विकास में अपना अपूर्व योगदान दिया है।
उनके आश्चर्यजनिक संगीत कौशल के बारे में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि उनके संगीत से पशु-पक्षी एकत्रित हो जाते थे, जब वे गाते थे तो पत्थर पिघल जाता था और हिंसक जंगली जानवर भी शांत हो जाते थे, जब वह मल्हार गाते थे, तो बारिश हो जाती थी, दीपक राग गाने पर दीये जल उठते थे। इन किंवदंतियों के ऐतिहासिक प्रमाण भले ही न हों, किन्तु उनमें इस सत्यता का अंश ज़रूर है कि अगर तानसेन जैसा महान् गायक हो तो संगीत में असीम संभावनाएँ निहित हैं।
साथियों, हमारे देश की मिट्टी का संगीत, न केवल हमें खुशी देता है, बल्कि यह हमारे दिल और दिमाग को भी छू जाता है और हमें सुकून प्रदान करता है। भारतीय संगीत की विशेषता यह है कि यह किसी भी व्यक्ति की सोचने की शक्ति, उसके दिमाग और उसकी मानसिकता को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।
जब हम किसी भी शैली का कोई शास्त्रीय संगीत सुनते हैं, फिर चाहे यह हमारी समझ में आता हो या न आता हो, लेकिन अगर हम इसे ध्यान से सुनें, तो हमें परम शांति का अनुभव होता है।
‘शानदार, मनोहर व आलौकिक’ भारतीय संगीत के ये तीन गुण हैं। हिमालय की ऊंचाई, गंगा मां की गहराई, अजंता-एलोरा की सुंदरता, ब्रह्मपुत्र की विशालता, समुद्र की लहरों का स्वरूप और भारतीय समाज का आंतरिक आध्यात्मिक जीवन - संगीत इन सभी का एक सुमेल है। इसलिए लोग अपना पूरा जीवन संगीत की शक्ति को समझने और समझाने में लगा देते हैं।
भारतीय संगीत चाहे वह लोक संगीत हो, शास्त्रीय संगीत हो या फिल्म संगीत हो, उसने हमेशा देश और समाज को जोड़ने का ही काम किया है। संगीत हम सभी को धर्म और जाति से संबंधित सामाजिक बाधाओं से ऊपर उठकर एकजुट रहने का संदेश देता है। उत्तर भारत का हिंदुस्तानी संगीत, दक्षिण का कर्नाटिक संगीत और बंगाल का रबींद्र संगीत, असम का ज्योति संगीत और जम्मू-कश्मीर का सूफी संगीत, ये सभी हमारी सभ्यता का आधार हैं।
आप में से अधिकांश लोग हमारी संस्कृति की इन बारीकियों और इसके विस्तार को समझते हैं। लेकिन आज की युवा पीढ़ी शायद इससे वाकिफ नहीं है। इस उदासीनता के कारण ही कई वाद्य यंत्र और शैलियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं।
समूह कला प्रेमियों का यह उद्देश्य होना चाहिए कि वे युवा पीढ़ी को ललित कला के कार्यक्रमों के साथ जोड़ें ताकि वह इनसे सीखें व प्रेरणा प्राप्त करें। कोशिश कीजिए कि जहां तक संभव हो देश के कोने-कोने में छिपी सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करें और ललित कलाओं को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं।
हमें अपने परंपारागत नृत्य, संगीत और नाटक को जन-जन तक पहुँचाना है। यह हमारी संस्कृति के संरक्षण के लिए हमारी सहभागीता का एक तरीका होगा। हमें यह सुनिश्चित करना है कि हमारे समाज में ‘‘कला के संरक्षक’’ - चाहे वह कॉर्पोरेट घराने हों, संगीत से जुड़ा समाज हो, स्थानीय कलाकार समूह हो - सभी को शास्त्रीय और पारंपरिक कलाओं का समर्थन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
इस अवसर पर, मैं अपने देश के महान कलाकारों, संगीतकारों, शास्त्रीय गायकों, शहनाई वदकों और बांसुरी वादकों को राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत में उनके योगदान के लिए आभार प्रकट करता हूं।
और मैं उन सभी संगीतकारों और गायकों को भी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने कोविड-19 के कारण दम तोड़ दिया। मैं देश की स्वर कोकिला लता मंगेशकर जिनको हमने कुछ हफ्ते पहले खो दिया, को भी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
आइए, अपनी संस्कृति और परंपरा के झंडे को ऊंचा रखें ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी विरासत पर गर्व महसूस कर सकें जैसा कि हम सभी इस समय कर रहे हैं।
धन्यवाद,
जय हिन्द।