SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF SEWA SADBHAVANA SAMMELAN AT MOGA ON DECEMBER 9, 2025.

‘सेवा सद्भावना सम्मेलन’ के अवसर पर

माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का सम्बोधन

दिनांकः 09.12.2025, मंगलवारसमयः दोपहर 3:00 बजेस्थानः मोगा, पंजाब

 

नमस्कार!

आज बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि राष्ट्र निर्माण एवं समाज कल्याण के उद्देश्य के लिए ‘सेवा सद्भावना सम्मेलन’ का आयोजन पंजाब की भूमि पर आयोजित किया गया है, जहां विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और वर्गों के मान्युभाव उपस्थित हैं। यह इस बात का प्रतीक है कि पूज्य आचार्य लोकेशजी ने श्री करमजीत सिंह ढालीवाल जैसे सभी जाति, धर्म व संप्रदाय के लोगों को अपने साथ जोड़ा है, जो राष्ट्र व समाज हित में कार्य करने के लिए संकल्पबद्ध हैं।

मैं इस प्रेरणादायी और पुण्य आयोजन के लिए ‘अहिंसा विश्व भारती’ और ‘करमजीत सिंह ढालीवाल फाउंडेशन’ को हार्दिक बधाई देता हूं।

हम सभी जानते हैं कि अहिंसा विश्व भारती की स्थापना प्रख्यात जैनाचार्य डॉ. लोकेश मुनि जी के नेतृत्व में हुई, जिनका जीवन अहिंसा, शांति और वैश्विक सद्भावना के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है। संस्था का उद्देश्य केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व स्तर पर अहिंसा, शांति, करुणा और मानवता के मूल्यों को स्थापित करना है। अहिंसा विश्व भारती ने ‘विश्व शांति केंद्र’ की स्थापना कर गुरुग्राम को वैश्विक शांति संवाद का केंद्र बनाया है, जहाँ संत-महात्माओं, शिक्षाविदों, राजनेताओं और समाजसेवियों का सतत संवाद होता है।

संस्था द्वारा ‘एंबेसडर ऑफ पीस’ जैसी प्रेरक पुस्तकों का प्रकाशन, अंतरराष्ट्रीय शांति पुरस्कारों का वितरण, और विभिन्न राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया जाता है। हाल ही में, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ शांति शिक्षा के क्षेत्र में अनुबंध कर, अहिंसा विश्व भारती ने भारतीय मूल्यों को वैश्विक शिक्षा पटल पर स्थापित किया है। संस्था के प्रयासों को न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, मॉरीशस आदि देशों में भी सराहा गया है।

अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डॉ. लोकेश मुनि को लंदन में ‘इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड’, अमेरिका में ‘अमेरिकन प्रेसिडेंशियल अवॉर्ड’ सहित अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए हैं, जो संस्था की वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रमाण हैं।

वहीं करमजीत सिंह ढालीवाल फाउंडेशन, पंजाब-हरियाणा क्षेत्र में सामाजिक सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही है। फाउंडेशन के अध्यक्ष करमजीत सिंह ढालीवाल ने समाज के वंचित वर्गों के उत्थान, युवाओं के कौशल विकास, और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा-स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार हेतु अनेक योजनाएँ चलाई हैं। फाउंडेशन द्वारा वृक्षारोपण, महिला सशक्तिकरण, और आपदा राहत जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय योगदान दिया गया है।

फाउंडेशन का दृष्टिकोण ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ की भारतीय परंपरा से प्रेरित है, जिसमें सेवा को सर्वोच्च धर्म माना गया है। संस्था ने स्थानीय प्रशासन, अन्य सामाजिक संगठनों और युवाओं के साथ मिलकर अनेक नवाचारपूर्ण पहलें की हैं, जिनका सकारात्मक प्रभाव पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ क्षेत्र में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

श्री करमजीत सिंह ढालीवाल अमेरिका की भौतिकतावादी जीवनशैली में रहकर भी जमीनी स्तर पर जनकल्याण का कार्य कर रहे हैं। वह अमेरिका में रहकर भी भारत के बारे में सोचते हैं, यह हर भारतीय के लिए एक प्रेरणा है। पूज्य आचार्य लोकेश जी के साथ विश्व के कोने-कोने में हजारों ऐसे अनुयायी जुड़े हैं, जो निरंतर समाज कल्याण और विश्व शांति के लिए प्रयासरत हैं।

देवियो और सज्जनो,

सेवा और सद्भावना एक दूसरे के पूरक हैं। सेवा भाव आपसी सद्भाव का वातावरण बनाता है। जब हम एक-दूसरे के प्रति सेवा भाव रखते हैं तब आपसी द्वेष की भावना स्वतः समाप्त हो जाती है और हम सभी मिलकर सफलता के पथ पर अग्रसर होते हैं। सेवा से बड़ा कोई परोपकार इस विश्व में नहीं है, जिसे मानव सहजता से अपने जीवन में अंगीकार कर सकता है। 

मेरा मानना है कि समाज सेवा देश उन्नति की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। सच्चा समाज सेवी सूर्य के समान सबको प्रकाश देता है, मानवता को सच्ची राह दिखाता है; अपनी अपरिमित शक्ति से समाज के ढांचे को नवीन परिष्कृत रूप प्रदान कर एक आदर्श स्थापित कर देता है जिस पर चलकर आगामी पीढ़ियाँ लाभान्वित हो सकती हैं। जिसका जीवंत उदाहरण है करमजीत सिंह ढालीवाल जी का जीवन एवं कार्य। आज के सेवा सद्भावना के अद्भुत कार्यक्रम के लिए करमजीत सिंह ढालीवाल जी को बहुत-बहुत साधुवाद और अभिनन्दन।

पूज्य आचार्य लोकेश जी और मेरा परिचय अनेक वर्षों से है, हम एक ही माटी राजस्थान से हैं। आचार्य लोकेश जी ने विश्व में सेवा और सद्भावना का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने भगवान महावीर दर्शन, जैन सिद्धांतों और भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार कर समाज को एक नया और उन्नत स्वरूप देने का कार्य किया है। 

मुझे यह बताते हुए अत्यंत हर्ष और गर्व का अनुभव हो रहा है कि उनके द्वारा 17 से 25 जनवरी 2026 तक दिल्ली के प्रतिष्ठित भारत मंडपम में नौ दिवसीय राम कथा का भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिसमें वाचन विश्वविख्यात कथाकार पूज्य मोरारी बापू जी करेंगे। 

यह भी अत्यंत उल्लेखनीय है कि देश के इतिहास में पहली बार किसी जैन आचार्य द्वारा राम कथा का आयोजन किया जा रहा है, जो हमारे देश की अद्वितीय सांस्कृतिक एकता, परस्पर सम्मान और सद्भावना का जीवंत और प्रेरक उदाहरण है। यह आयोजन न केवल आध्यात्मिक एकता को सुदृढ़ करेगा, बल्कि यह भी दर्शाएगा कि भारत की विविध आस्था-परंपराएँ एक-दूसरे को समृद्ध करने की क्षमता रखती हैं।

देवियो और सज्जनो,

भारतीय संस्कृति ने सदियों से संपूर्ण मानवता को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का महान संदेश दिया है। यह केवल एक आदर्श वाक्य नहीं, बल्कि भारत की जीवन-दृष्टि है, जो सभी मनुष्यों को जाति, धर्म, क्षेत्र और भाषा से ऊपर उठकर एक साझा मानवीय बंधन में जोड़ती है। इसी प्रकार, ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ का शुभ संकल्प पूरे विश्व-समाज के कल्याण का घोष है। इसमें यह गहरी भावना निहित है कि प्रत्येक व्यक्ति सुखी हो, स्वस्थ हो और उसका जीवन दुःखों से मुक्त हो।

इन दोनों मंत्रों के माध्यम से भारत दुनिया को यह संदेश देता है कि शांति, करुणा, सहयोग और सार्वभौमिक भाईचारा ही मानव सभ्यता की वास्तविक पहचान है। यही मूल्य आज की वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए सबसे अधिक आवश्यक हैं। 

किसी के लिए कोई देश मात्र एक बाज़ार या आर्थिक अवसरों का केंद्र हो सकता है, लेकिन भारत के लिए समूचा विश्व एक परिवार है। यह दृष्टि हमें भारत भूमि के उन दिव्य महापुरुषों से मिला है, जिन्होंने अपने जीवन, आचरण और उपदेशों से मानवता को एक नई दिशा प्रदान की।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने हमें न्याय, कर्तव्य, सत्य और करुणा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का मार्ग दिखाया, योगीराज श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का ऐसा जीवन दर्शन दिया, भगवान बुद्ध ने अहिंसा, मध्य मार्ग, करुणा और मैत्री के सिद्धांतों के माध्यम से विश्व को मानसिक शांति और स्थिरता का अनमोल संदेश दिया। भगवान महावीर ने अपरिग्रह, सत्य, अहिंसा और समभाव जैसे सिद्धांतों को जीवन में उतारकर यह दर्शाया कि वास्तविक शक्ति विनम्रता और आत्मसंयम में निहित है। गुरु नानक देव जी ने “एक ओंकार” के माध्यम से संपूर्ण मानवता की एकता का प्रतिपादन किया और समानता, सेवा, सत्य और न्याय का मार्ग दिखाया।

इन सभी महापुरुषों की शिक्षाओं का सार यही है कि मानवता बाँटी नहीं जाती; मानवता जोड़ी जाती है। विश्व जीता नहीं जाता; विश्व अपना बनाया जाता है। इसीलिए भारत विश्व को व्यापार, भू-राजनीति या सत्ता-प्रतिस्पर्धा के चश्मे से नहीं देखता, बल्कि वैश्विक परिवार के रूप में देखता है, जहाँ सुख-दुःख, शांति-अशांति, और प्रगति-पतन सभी साझा हैं। यही वह सांस्कृतिक भावधारा है जिसने भारत को सदियों से विश्व को दिशा देने वाली सभ्यता के रूप में स्थापित किया है। 

देवियो और सज्जनो,

भारत की सबसे बड़ी शक्ति उसकी ‘विविधता में एकता’ है। यहाँ 22 से अधिक भाषाएँ, सैकड़ों बोलियाँ, अनेक धर्म, जातियाँ और संस्कृतियाँ एक साथ निवास करती हैं, फिर भी एकता का सूत्र कभी नहीं टूटता। यह एकता केवल संवैधानिक प्रावधानों या सरकारी योजनाओं से नहीं, बल्कि समाज के भीतर गहरे तक रचे-बसे सहिष्णुता, सहयोग और साझेदारी के मूल्यों से संभव हुई है।

‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ अभियान, और ‘एक पृथ्वी-एक परिवार-एक भविष्य’ जैसी पहलें इसी भावना को सशक्त करती हैं। आज जब समाज में कभी-कभी असहिष्णुता, अफवाहें और ध्रवीकरण की चुनौतियाँ सामने आती हैं, तब ऐसे सम्मेलन हमें याद दिलाते हैं कि “विविधता में सद्भाव ही भारत की सच्ची पहचान है”।

भारतीय संस्कृति में सेवा को सर्वोच्च धर्म माना गया है। सेवा केवल दान या सहायता नहीं, बल्कि आत्मीयता, करुणा और सामाजिक उत्तरदायित्व का भाव है।

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा, “परहित सरिस धर्म नहिं भाई” अर्थात् परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं। स्वामी विवेकानंद ने कहा, “नर सेवा ही नारायण सेवा है”। महात्मा गांधी ने सेवा को आत्मसाक्षात्कार का मार्ग बताया और कहा, “स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप दूसरों की सेवा में लीन हो जाएँ”।

आधुनिक भारत में सेवा का स्वरूप और भी व्यापक हुआ है। एनजीओ, नागरिक समाज संगठन, सामुदायिक भागीदारी, और नवाचार के माध्यम से सेवा के नए मॉडल विकसित हुए हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने जिस सेवा-भाव का परिचय दिया, वह पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बना।

पंजाब की इस पावन धरती से उपजी सेवा की एक अद्भुत मिसाल का स्मरण करें तो कई सौ वर्ष पूर्व भाई कन्हैया जी का नाम अत्यंत श्रद्धा से लिया जाता है। 1705 में आनंदपुर साहिब की लड़ाई के दौरान युद्धभूमि की कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने मित्र-शत्रु का भेद किए बिना सभी घायलों को पानी पिलाकर मानवता की अनूठी मिसाल पेश की।

उनकी सेवा-भावना इस बात का प्रतीक है कि सच्ची करुणा किसी सीमा, पहचान या पक्ष में बंधी नहीं होती, वह केवल मनुष्य और मानवता को देखती है। भाई कन्हैया जी की यह विरासत आज भी पंजाब की मिट्टी में बसती है और हमें निस्वार्थ सेवा तथा सार्वभौमिक भाईचारे का मार्ग दिखाती रहती है।

देवियो और सज्जनो,

हमारे महान राष्ट्र की परंपरा हमेशा से “देने” की रही है। देने की, बाँटने की, और जरूरतमंदों के लिए सदैव हाथ आगे बढ़ाने की। 

यह वह भूमि है जहाँ तप, त्याग और परोपकार केवल आदर्श नहीं, बल्कि जीवन का तरीका रहे हैं। हमारे ऋषियों ने ज्ञान दिया, गुरुओं ने मार्ग दिखाया, संतों ने समाज को जोड़ने का कार्य किया। हमने दुनिया को अहिंसा का मार्ग दिया, करुणा का संदेश दिया, और मानवता को एक परिवार मानने की सीख दी।

हमारी संस्कृति कहती है कि जो कमाया जाए, वह केवल अपने लिए नहीं; जो जाना जाए, वह केवल अपने तक सीमित नहीं; और जो पाया जाए, वह समाज के कल्याण के लिए होना चाहिए। इसी “देने की परंपरा” ने भारत को केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि विचार, मूल्य और मानवता का जीवंत उदाहरण बनाया है।

और पंजाब की यह धरती तो गुरु साहिबानों की पवित्र शिक्षाओं से पावन और धन्य भूमि है। जहाँ प्रत्येक कण में सेवा, समर्पण, साहस और सत्य की प्रेरणा समाई हुई है। यह वह धरा है जिसने दुनिया को वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना, मानवता की रक्षा के लिए खालसा पंथ की स्थापना, और समानता-भाईचारे के अमर संदेश दिए हैं।

गुरु साहिबानों के चरण-स्पर्श से धन्य यह भूमि आज भी हमें यह सिखाती है कि मानव की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है, दया और करुणा ही सच्चा सामर्थ्य है, और सत्य के मार्ग पर दृढ़ता से चलना ही जीवन का वास्तविक उद्देश्य है। 

श्री गुरु नानक देव जी का अमर संदेश आज भी पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शक दीपक की तरह उज्ज्वल है। उन्होंने सिख धर्म के तीन मूलभूत स्तंभ “वंड छको, किरत करो, नाम जपो” यानी कमाओ, बाँटो और ईश्वर का स्मरण करो का उपदेश देकर जीवन की सरल, सार्थक और संतुलित दिशा प्रदान की। ये तीनों सिद्धांत मिलकर एक ऐसे आदर्श समाज की रचना करते हैं जहाँ श्रम का सम्मान, सेवा का भाव और आध्यात्मिकता की अनुभूति जीवन का आधार बनते हैं।

देवियो और सज्जनो,

21वीं सदी अनंत संभावनाओं का युग है, लेकिन साथ ही यह असमानताओं, तनावों और सामाजिक चुनौतियों का दौर भी है। ऐसे समय में सेवा और सद्भावना का कार्य केवल दया का विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय दायित्व है।

समाज में बढ़ती ध्रुवीकरण की प्रवृत्ति, युवाओं में नए तनाव और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ, पर्यावरणीय संकट और जलवायु परिवर्तन, ग्रामीण और कमजोर वर्गों में संसाधनों की कमी, और प्रौद्योगिकी के कारण बदलता सामाजिक ताना-बाना, इन सबके बीच हमें एक ऐसा ‘मानवीय संतुलन’ बनाना होगा जो राष्ट्र को सही दिशा दे। और यह संतुलन सेवा, सहयोग और संवेदनशीलता से ही संभव है।

आज सेवा का दायरा सिर्फ व्यक्तिगत योगदान तक सीमित नहीं है। अब इसके दायरे में शामिल ‘शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन’, ‘स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार’, ‘पर्यावरण संरक्षण’, ‘डिजिटल साक्षरता’, ‘नशा-उन्मूलन’, ‘महिला एवं बाल सशक्तिकरण’, ‘दिव्यांगजनों के लिए समावेशी अवसर’, और ‘समाज में सद्भाव, एकता और शांति का निर्माण’, सेवा का हर कदम राष्ट्र-निर्माण में एक महत्वपूर्ण ईंट है।

मैं अहिंसा विश्व भारती और ढालीवाल फाउंडेशन के प्रत्येक सदस्य को हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। आप सबने सिद्ध किया है कि परिवर्तन सरकारें नहीं, लोग लाते हैं। आपने यह भी सिद्ध कर दिया कि जहाँ सेवा है, वहीं ईश्वर है। जहाँ सद्भावना है, वहीं समाज है। जहाँ करुणा है, वहीं सभ्यता है। आपका समर्पण, आपकी ऊर्जा और आपका मानवता-प्रेम इस राष्ट्र की अमूल्य संपत्ति है।

इस मंच से मैं युवाओं से कहना चाहूंगा कि आप आज के नहीं, कल के भारत की पहचान हैं। आपकी शिक्षा केवल नौकरी पाने का साधन नहीं; यह आपके भीतर वह चरित्र और संवेदना जगाने का माध्यम है, जिससे आप समाज के लिए उपयोगी बन सकें। सेवा आपको बड़ा बनाती है। सद्भावना आपको श्रेष्ठ बनाती है। और दोनों मिलकर आपको राष्ट्र का कर्णधार बनाती हैं।

यह भी संयोग है कि यह कार्यक्रम ऐसे समय में आयोजित हो रहा है जब पूरा देश श्री गुरु तेग़ बहादुर जी का 350वीं शहादत वर्ष मना रहा है। ऐसे समय में, आइए संकल्प लें कि हम सेवा को अपना धर्म बनाएंगे, सद्भावना को अपनी शक्ति बनाएंगे, और मानवता को अपना मार्गदर्शक। इन्हीं मूल्यों के आधार पर हम एक स्वस्थ, समावेशी, शांतिपूर्ण और विकसित भारत का निर्माण करेंगे।

इस “सेवा सद्भावना सम्मेलन” के अवसर पर, मैं सभी आयोजकों, स्वयंसेवकों और प्रतिभागियों को हृदय से बधाई देता हूँ। और आप सभी को इस प्रेरणादायी आयोजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।

धन्यवाद,

जय हिंद!