SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF PRAVASI RAJASTHANI DIVAS 2025 AT JAIPUR ON DECEMBER 10, 2025.
- by Admin
- 2025-12-10 14:55
‘प्रवासी राजस्थानी दिवस’ के अवसर पर माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 10.12.2025, बुधवार समयः सुबह 10ः00 बजे स्थानः जयपुर
नमस्कार!
आज ‘प्रवासी राजस्थानी दिवस’ के इस महत्वपूर्ण आयोजन में आप सभी के मध्य उपस्थित होकर मुझे अत्यंत हर्ष, संतोष और गर्व का अनुभव हो रहा है। मैं भले आज पंजाब का राज्यपाल हूँ, परंतु मेरी आत्मा, मेरी धड़कनें और मेरा संस्कार तो राजस्थान की उस तपोभूमि से जुड़े हुए हैं, जिसने मुझे जीवन के मूल्य, परिश्रम, निष्ठा और सेवा की भावना प्रदान की। यह धरती मेरी भी मातृभूमि है और आपकी भी मातृभूमि है, हम सबका साझा गौरव है।
आज का यह विशेष दिन केवल एक औपचारिक उत्सव नहीं, बल्कि यह राजस्थान की मिट्टी से जन्मे उन लाखों प्रवासी राजस्थानी भाइयों-बहनों को जोड़ने का दिन है, जो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के हर कोने में बसे हुए हैं और फिर भी अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े हुए हैं।
मैं इस आयोजन के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजन लाल शर्मा जी को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहता हूँ कि उन्होंने दुनियाभर में बसे हुए प्रवासी राजस्थानियों को न केवल एक साझा मंच प्रदान किया, बल्कि उनकी भावनाओं, उनकी सांस्कृतिक जड़ों और उनकी उपलब्धियों को सम्मानपूर्वक जोड़ने का प्रशंसनीय प्रयास किया है।
मुख्यमंत्री जी की यह दूरदर्शी पहल प्रवासी समाज को राज्य के विकास, संस्कृति के संरक्षण और वैश्विक स्तर पर राजस्थान की पहचान को और मजबूत करने के लिए प्रेरित करती है।
इस आयोजन का उद्देश्य राज्य के विकास में प्रवासी राजस्थानियों की भूमिका को और सशक्त करने, उनकी उपलब्धियों का सम्मान करने और उन्हें निवेश, नवाचार तथा सामाजिक योगदान के नए अवसरों से जोड़ने के लिए यह आयोजन किया जा रहा है।
मुझे बताया गया है कि इस आयोजन के दौरान उद्योग एवं निवेश, पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा, जल संरक्षण, कौशल विकास, नवाचार एवं स्टार्टअप, खनन जैसे विभिन्न क्षेत्रों पर केंद्रित सेक्टोरल सत्र आयोजित किए जाएंगे हैं। इन सत्रों में विशेषज्ञ, उद्योगपति, शिक्षाविद्, और प्रवासी समुदाय के प्रतिनिधि राज्य की संभावनाओं, निवेश अवसरों, और भविष्य की दिशा पर विचार-विमर्श करेंगे।
इन सत्रों का उद्देश्य प्रवासी समुदाय को प्रदेश में उपलब्ध अवसरों और संभावनाओं से अवगत कराना तथा उनके सुझाव शामिल करना है, जो कि राज्य के विकास की नीति-निर्धारण का आधार बनेंगे।
देवियो और सज्जनो,
हमारा राजस्थान वह भूमि है जिसने इतिहास के पन्नों पर शौर्य, त्याग और समर्पण की अमर कहानियाँ लिखीं। चित्तौड़गढ़ का धधकता इतिहास, कुम्भलगढ़ का अदम्य गर्व, जैसलमेर का स्वर्णिम किला, जयपुर का गुलाबी वैभव, ये सभी हमारे पूर्वजों की वीरता, स्थापत्य कौशल व धैर्य के प्रमाण हैं।
हमारी हवेलियाँ, महल, मंदिर, बावड़ियाँ, और जंतर-मंतर की वैज्ञानिक प्रतिभा, ये सब यूनेस्को विश्व धरोहर में अंकित हैं और आज भी विश्व को भारत की प्राचीन वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक क्षमता का संदेश देते हैं।
राजस्थान की ब्लू-पॉटरी, बांधेज वस्त्र, कठपुतली, लघुचित्र कला, लोक-संगीत, कालबेलिया, घूमर, और दाल-बाटी-चूरमा जैसे व्यंजन, ये सभी न केवल कला हैं, बल्कि हमारी जीवनशैली, हमारी स्मृतियाँ और हमारी पहचान हैं, जिनसे हर राजस्थानी, चाहे कहीं भी रहता हो, आत्मीय रूप से जुड़ा रहता है।
राजस्थान केवल राजाओं और उनके भव्य महलों का प्रदेश ही नहीं, बल्कि संस्कृति, लोककथाओं, वीर गाथाओं और अद्भुत वास्तुकला का जीता-जागता खजाना है। प्राचीन काल में राजपूताना कहलाने वाला यह प्रदेश 19 रियासतों के एकीकरण से बना और इसका नाम ‘राजस्थान’ अर्थात् राजाओं की भूमि, अपने इतिहास और गौरव को पूर्णतः सार्थक करता है।
राजस्थान के स्नेही और आतिथ्यपरायण लोग ‘‘अतिथि देवो भवः’’ की महान भारतीय परंपरा का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ‘‘पधारो म्हारे देश’’ जैसे लोकप्रिय गीत में इसी अतिथि-सत्कार की भावना को हृदयस्पर्शी रूप में अभिव्यक्त किया गया है, जो राजस्थानी संस्कृति, अपनत्व और सम्मान का प्रतीक है।
पर्यटन की दृष्टि से राजस्थान विश्व के सबसे आकर्षक स्थलों में गिना जाता है। यह भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए ‘गोल्डन ट्रायंगल’ का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जयपुर का गुलाबी नगर, उदयपुर की झीलें, जैसलमेर का स्वर्ण किला और जोधपुर-बीकानेर के भव्य दुर्ग विश्वभर के यात्रियों को अपनी ओर खींचते हैं।
राष्ट्रपति भवन समेत देश की अनेक ऐतिहासिक इमारतों में राजस्थान के उच्च गुणवत्ता वाले संगमरमर और बलुआ पत्थर का योगदान इस प्रदेश की स्थापत्य प्रतिभा का प्रतीक है।
राजस्थान का इतिहास शौर्य और स्वाभिमान की अमर कथा है। पृथ्वीराज चौहान से लेकर महाराणा प्रताप, राणा सांगा, दुर्गादास राठौर तक, अनगिनत वीरों ने इस भूमि को गौरव से भर दिया। पन्ना धाय, रानी पद्मिनी, तारा बाई जैसी वीरांगनाओं ने त्याग और साहस के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए। मेजर शैतान सिंह जैसे परमवीर चक्र विजेताओं ने आधुनिक भारत में भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाया।
चित्तौड़ का विजय स्तम्भ, कालीबाई का बलिदान और हर बिलास शारदा द्वारा बनाए गए ‘शारदा एक्ट’ जैसी घटनाएँ इस भूमि की प्रगतिशील, साहसी और न्यायप्रिय चेतना को दर्शाती हैं।
भक्ति और आध्यात्मिकता की दृष्टि से भी राजस्थान अद्वितीय है। मीराबाई की भक्तिमयी रचनाएँ हों, अजमेर के ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की सूफी परंपरा हो, पुष्कर का ब्रह्मा मंदिर, नाथद्वारा का श्रीनाथजी मंदिर या श्री महावीरजी और मेंहदीपुर बालाजी जैसे श्रद्धास्थल, राजस्थान ने भारत को एक आध्यात्मिक दिशा दी है। साहित्य जगत में भी चंद बरदाई से लेकर माघ तक, इस भूमि ने भारतीय भाषाओं को अमूल्य धरोहरें दी हैं।
और मित्रों, आधुनिक भारत के इतिहास में 13 मई 1998 को पोखरण में हुए परमाणु परीक्षणों ने जो गौरव दिलाया, वह भी राजस्थान की धरती ने ही सम्भव किया। यह भूमि वीरता, विज्ञान, संस्कृति, कला और अध्यात्म, सबकी जननी है।
देवियो और सज्जनो,
आज राजस्थान की आत्मा केवल राजस्थान में ही नहीं बसती, बल्कि दुनिया के हर हिस्से में धड़कती है। मुंबई से लेकर मेलबर्न तक, लंदन से लेकर लॉस एंजिलिस तक, हर जगह प्रवासी राजस्थानी अपनी मेहनत, उद्यम, नेतृत्व और लगन से दुनिया में राजस्थान का नाम रोशन कर रहे हैं।
व्यापार, आईटी, इंजीनियरिंग, कला, संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्टार्टअप्स और जनसेवा, हर क्षेत्र में प्रवासी राजस्थानी अपनी प्रतिभा और विशिष्टता का लोहा मनवा रहे हैं। उनकी सबसे बड़ी पहचान है, समुदाय के प्रति प्रतिबद्धता और संस्कृति के प्रति अटूट संबंध।
राजस्थानी जहाँ भी जाते हैं, साथ में लेकर जाते हैं अपनी सभ्यता, अपने संस्कार और अपनी उद्यमिता की शक्ति। यही कारण है कि प्रवासी राजस्थानी केवल सफल नहीं हैं, बल्कि समाज निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
मिट्टी बदल जाती है, लेकिन मातृभूमि से संबंध कभी नहीं बदलते। राजस्थानी यही सिद्ध करते हैं। दुनिया के किसी भी कोने में हों, आप सभी राजस्थान के तीज-त्योहार, गणगौर, तीज, दीपावली, होली, मकर सक्रांति, और डेजर्ट फेस्टिवल को उसी उत्साह और गर्व से मनाते हैं, जैसा जयपुर, जोधपुर या उदयपुर में मनाया जाता है।
यह केवल उत्सव नहीं हैं, यह हमारी पहचान और सामूहिक स्मृति का हिस्सा हैं। राजस्थानी संस्कृति एक ऐसा सूत्र है जो हमें जहां भी हों, एक परिवार की तरह जोड़ता है।
प्रवासी समाज का योगदान केवल सांस्कृतिक नहीं है, वह आर्थिक, सामाजिक और मानवीय रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कई प्रवासी राजस्थानी अपने गाँव और शहरों में स्कूल, अस्पताल, पीने के पानी की व्यवस्था, स्कॉलरशिप, सामुदायिक भवन, गौशालाएँ, पर्यावरण संरक्षण के प्रकल्प जैसी अमूल्य सेवाएँ दे रहे हैं।
यह योगदान बताता है कि प्रवासी समाज केवल अपनी सफलता तक सीमित नहीं है, बल्कि अपनी जड़ों के उत्थान में विश्वास रखता है। आप सभी वास्तव में राजस्थान की शक्ति हैं। आप इसके वर्तमान और भविष्य दोनों के निर्माता हैं।
देवियो और सज्जनो,
आज वैश्विक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। तकनीक, उद्योग, व्यापार, पर्यटन और शिक्षा की नई चुनौतियाँ और अवसर हमारे सामने हैं। ऐसे समय में प्रवासी राजस्थानी समाज की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
आप युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन कर सकते हैं। राजस्थान में उद्योग, स्टार्टअप्स और इनोवेशन ला सकते हैं। पर्यटन, हेरिटेज, इको-टूरिज्म और होमस्टे मॉडल को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दे सकते हैं। डिजिटल शिक्षा और कौशल विकास के दूत बन सकते हैं। ग्लोबल कनेक्टिविटी और निवेश को राजस्थान तक पहुँचा सकते हैं। तकनीक और संसाधनों के माध्यम से स्वास्थ्य व समाज कल्याण में योगदान दे सकते हैं।
मुझे यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ है कि राज्य सरकार ने प्रवासी राजस्थानियों की मातृभूमि के प्रति निष्ठा को सम्मान देते हुए एक व्यापक सहभागिता फ्रेमवर्क विकसित किया है, जिसके माध्यम से वे सामाजिक अवसंरचना, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में सक्रिय योगदान दे सकते हैं।
प्रवासी परिवारों की सहायता के लिए हर जिले में अतिरिक्त जिला कलक्टर को ‘सिंगल प्वाइंट ऑफ कॉन्टेक्ट’ नियुक्त किया गया है। ‘कर्मभूमि से मातृभूमि अभियान’ जल संरक्षण से प्रवासियों को जोड़ते हुए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और भू-जल पुनर्भरण कार्यों में सहयोग को प्रोत्साहित कर रहा है।
इसी तरह ‘विद्यालय भामाशाह योजना-2025’ और ‘ज्ञान संकल्प पोर्टल’ प्रवासियों को सरकारी विद्यालयों में आधुनिक सुविधाएँ विकसित करने और शिक्षा परियोजनाओं में ऑनलाइन योगदान का अवसर प्रदान करते हैं।
इसके साथ ही ‘संस्थान नामकरण नीति’ दानदाताओं को स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या उनकी सुविधाओं का नामकरण करने की अनुमति देती है। ‘नंदीशाला जन सहभागिता योजना’ भी एक महत्वपूर्ण पहल है, जिसके तहत पंचायत समिति स्तर पर नंदीशाला निर्माण में प्रवासी समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित की जा रही है।
साथियो,
प्रवासी भारतीय हमारे देश के श्रेष्ठ प्रतिनिधि हैं। आप, अपने साथ न केवल इस पवित्र भूमि में अर्जित ज्ञान और कौशल लेकर गए हैं, बल्कि आप सब मूल्य और लोकाचार भी लेकर गए हैं जो सदियों से हमारी सभ्यता का आधार रहे हैं। प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, कला का क्षेत्र हो अथवा उद्यमिता का क्षेत्र हो, भारतीय प्रवासियों ने एक ऐसी छाप छोड़ी है जिसे दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है और उसका सम्मान किया जाता है।
हमारा देश आज वर्ष 2047 तक विकसित भारत बनने की ओर बढ़ रहा है, उस समय हम अपनी स्वाधीनता के 100 वर्ष मना रहे होंगे। यह विजन केवल एक सरकारी पहल नहीं है; यह हमारा राष्ट्रीय मिशन है जिसमें विदेश में रहने वाले भारतीयों सहित प्रत्येक भारतीय की सक्रिय और उत्साही भागीदारी की आवश्यकता होगी।
प्रवासी भारतीय विकसित भारत के विजन को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। पूरे विश्व में आप सबकी उपस्थिति महत्व रखती है और आप अपनी उपलब्धियों से विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। मैं, आप सबसे इस यात्रा में सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह करता हूँ, क्योंकि आप सबकी सफलता में ही भारत की सफलता निहित है।
देवियो और सज्जनो,
देश के निर्माण में प्रवासी भारतीयों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार ने आपकी सहायता के लिए अनेक पहल की हैं। अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) के लिए कांसुलर सेवाओं को सरल बनाया गया है। भारत के विदेशी नागरिकों (ओसीआई) के कार्यों के लिए प्रक्रियाओं को डिजिटल और सुव्यवस्थित किया गया है। “भारत को जाने कार्यक्रम” जैसी पहल हमारे युवा प्रवासी भारतीयों को अपनी भारतीय जड़ों को जानने के अवसर प्रदान करती है।
हम विदेशों में रहने वाले भारतीयों के हितों की रक्षा करने में भी सक्रिय रहे हैं। हाल के वर्षों में, हमने संकट में फंसे भारतीयों की सहायता के लिए ऑपरेशन सिंधु, ऑपरेशन कावेरी, ऑपरेशन गंगा और ऑपरेशन वंदे भारत सहित कई मिशन किए हैं। आज, दूसरे देशो में रहने रहने वाले भारतीय ज़रूरत के समय सहयोग और सुरक्षा के लिए अपनी मातृभूमि पर भरोसा करते हैं।
प्रवासी भारतीयों का मातृभूमि के साथ शाश्वत संबंध है। भले ही आप दुनिया में कहीं भी रहें, भारत आपका घर है और हमेशा रहेगा। यह बंधन हमारी साझा विरासत, संस्कृति और मूल्यों में निहित है। इसी संबंध का आज हम जश्न मना रहे हैं और यही संबंध हमारा भविष्य में भी रहेगा।
प्रवासी राजस्थानी दिवस जैसे आयोजन हमें आपस में संवाद, सम्मान और सहयोग बढ़ाने का अमूल्य अवसर प्रदान करते हैं। हम सब मिलकर अपने राज्य को आर्थिक रूप से मजबूत, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, पर्यटन की वैश्विक राजधानी, उद्योग एवं नवाचार का केंद्र, शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल प्रगति में अग्रणी बना सकते हैं। आप केवल राजस्थान की विरासत का हिस्सा नहीं हैं, आप इसके भविष्य के निर्माता भी हैं।
आइए, हम सब मिलकर अपनी सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव मनाएँ, परंपराओं को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाएँ, आपसी संबंधों को और गहराएँ, और एक समृद्ध, आधुनिक, उन्नत और आत्मनिर्भर राजस्थान के निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभाएँ।
राजस्थान की इस परंपरा में एक विशेषता हमेशा रही है और वह है दृढ़ता, धैर्य और विकास के संकल्प की। यह वह भूमि है जिसने दुनिया को शौर्य, त्याग, आतिथ्य, भाईचारा, व्यापारिक कुशलता, और मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ाया है। प्रवासी समाज इस विरासत का सबसे चमकदार प्रतीक है।
राजस्थान और भारत आज जिस नई ऊँचाई की ओर बढ़ रहे हैं, उसमें प्रवासी समाज की भूमिका निर्णायक है।
आप सब से मेरा आह्वान है कि जहाँ भी रहें, राजस्थान को याद रखें, राजस्थान के साथ जुड़े रहें, और अपने राज्य के गौरव को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाएँ।
आइए, हम सब मिलकर इस परिवर्तन यात्रा में कंधे से कंधा मिलाकर चलें और राजस्थान को विकसित, सक्षम, समृद्ध और विश्व-प्रशंसित राज्य बनाएँ।
धन्यवाद,
जय हिन्द!
जय राजस्थान!