SPEECH OF PUNJAB GOVERNOR AND ADMINISTRATOR, UT CHANDIGARH, SHRI GULAB CHAND KATARIA ON THE OCCASION OF STATE LEVEL VEER BAL DIWAS BY CHILD WELFARE COUNCIL, PUNJAB AT LUDHIANA ON DECEMBER 12, 2025.
- by Admin
- 2025-12-12 14:05
‘वीर बाल दिवस’ के अवसर पर माननीय राज्यपाल श्री गुलाब चन्द कटारिया जी का संबोधनदिनांकः 12.12.2025, शुक्रवार समयः सुबह 11:00 बजे स्थानः लुधियाना
नमस्कार!
आज लुधियाना में आयोजित इस राज्य स्तरीय वीर बाल दिवस (छोटे साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह का शहीदी दिवस) के अवसर पर आप सभी के बीच उपस्थित होकर मैं स्वयं को अत्यंत गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूँ। यह दिन न केवल पंजाब के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए असाधारण ऐतिहासिक महत्त्व का दिन है।
यह एक ऐसा दिवस है, जब पंजाब और भारत सहित पूरा विश्व अपने हृदय में श्री गुरू गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह की अतुलनीय शौर्यगाथा को स्मरण करता है।
हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार द्वारा 2022 में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस (छोटे साहिबज़ादों का शहीदी दिवस) के रूप में घोषित किया जाना, पूरे देश की ओर से इन बाल शहीदों के प्रति एक राष्ट्रीय श्रद्धांजलि है।
हम सौभाग्यशाली हैं कि आज का यह पावन अवसर उस समय मना रहे हैं, जब संपूर्ण विश्व ‘हिंद की चादर’ श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहीदी वर्षगांठ को श्रद्धा, सम्मान और गहन आदर के साथ मना रहा है। हम सभी जानते हैं कि गुरु साहिब जी ने धर्म की रक्षा और सार्वभौमिक मानवाधिकारों के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया।
देवियो और सज्जनो,
हम सभी जानते हैं कि दसवें सिख गुरु, श्री गुरू गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह सिख इतिहास के सबसे कम उम्र के शहीद माने जाते हैं। उनकी शहादत को 300 वर्ष बीत जाने के बाद भी आज भी पूरे विश्व में शहादत की ऐसी मिसाल देखने को नहीं मिलती।
साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह (6 वर्ष) ने इतनी कम आयु में अपने धर्म, अपनी अस्मिता और अपने सिद्धांतों से समझौता करने से स्पष्ट इनकार कर दिया।
मुग़ल सेना ने उन्हें बंदी बना लिया, और जब किसी भी प्रकार से उन्हें झुकाया नहीं जा सका, तो पोह महीने (15 दिसंबर से 15 जनवरी तक का महीना) की 26 तारीख को यानी 26 दिसंबर 1705 को उन्हें जिंदा ईंटों में चिनवाने का अत्यंत क्रूर आदेश दिया गया।
लेकिन इतिहास साक्षी है कि दीवारें उनके शरीर को रोक सकती थीं, परंतु उनके अदम्य साहस, अद्वितीय धैर्य और आत्मिक शक्ति को कभी बाधित नहीं कर सकीं। जब छोटे साहिबज़ादों को दीवार में चिनवाया जा रहा था, तब उनके मुखमंडल पर भय का नामोनिशान नहीं था; बल्कि उनके चेहरे पर मुस्कान विराजमान थी। ईंटों की परत चढ़ती रही, दीवार ऊँची होती गई, परंतु छोटे साहिबज़ादे निरंतर गुरबाणी का पाठ करते रहे। इसलिए आज, सैंकड़ों वर्ष बीत जाने के बावजूद, उनका साहस आज भी हर पीढ़ी को सत्य के लिए खड़े होने, अधर्म का मुकाबला करने, और अपने मूल्यों के लिए दृढ़ रहने की प्रेरणा देता है।
साथियो,
मैं समझता हूँ कि हमें यह बलिदान दिवस किसी जश्न के रूप में नहीं, बल्कि गहन आत्मचिंतन, श्रद्धा और तपस्या के रूप में मनाना चाहिए। यह वह दिन है, जब हम श्री गुरू गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह द्वारा दिए गए अद्वितीय बलिदान को स्मरण करते हैं, वह बलिदान जिसने मानवता को अत्याचार के विरुद्ध डटकर खड़े होने का संदेश दिया।
हर वर्ष जब यह समय आता है, तो 21 दिसंबर से 28 दिसंबर तक का यह काल विराग सप्ताह के रूप में प्रारंभ होता है। यह वही पवित्र सप्ताह है, जो 21 दिसंबर को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा अपने समस्त परिवार सहित आनंदपुर साहिब का किला त्यागने से लेकर 28 दिसंबर को माता गुजरी जी और छोटे साहिबज़ादों की अमर शहादत तक की व्यथा, संघर्ष और अदम्य साहस की पूरी यात्रा को अपने भीतर समेटे हुए है।
यह सप्ताह विराग और चढ़दीकला का प्रतीक है। इस सप्ताह में सिख श्रद्धालु ज़मीन पर ही सोते हैं, अपने मन को विनम्रता और त्याग में ढालते हैं, और पूरे सप्ताह पाठ, कीर्तन और अरदास करते हैं। इस प्रकार वे छोटे साहिबज़ादों के महान और अनुपम बलिदान के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
इस सप्ताह के दौरान सिख श्रद्धालु भारी विराग और श्रद्धा के साथ चमकौर साहिब में नतमस्तक होकर श्री गुरू गोबिंद सिंह जी के बड़े साहिबज़ादों, बाबा अजीत सिंह जी और बाबा जुझार सिंह जी की शहादत को स्मरण करते हैं।
वहीं फ़तेहगढ़ साहिब में पोह (पौष) महीने की 25, 26 और 27 तारीख़ को आयोजित धार्मिक आयोजनों के दौरान, सिख कौम श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादों, बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी की अमर वीरता, उनकी अटूट आस्था और दृढ़ निश्चय को नमन करते हुए उनके अद्वितीय तथा अप्रतिम बलिदान को सादर प्रणाम करते हैं।
यह पूरा कालखंड हमें स्मरण कराता है कि यह सिर्फ तिथियों का क्रम नहीं, बल्कि त्याग, विराग, विछोड़ा और अद्वितीय साहस का वह अमर पथ है, जिसने सम्पूर्ण मानवता को अन्याय के विरुद्ध खड़े होने की प्रेरणा दी है।
साथियो,
मैं आज के इस पावन अवसर पर आप सभी के सामने छोटे साहिबज़ादों (बाबा ज़ोरावर सिंह जी और बाबा फ़तेह सिंह जी) की शौर्यगाथा को थोड़ा विस्तार से रखना चाहता हूँ, एक ऐसी कथा जो केवल सिख इतिहास की नहीं, बल्कि पूरे मानव इतिहास की सबसे अद्भुत, वीरतापूर्ण और हृदय विदारक घटनाओं में से एक है।
साल 1705 में आनंदपुर साहिब के किले पर लगातार मुग़लों का घेरा था। कई महीने बीत चुके थे। भोजन और पानी की कमी थी, पर साहस और विश्वास अटूट था। आखिरकार जब परिस्थितियाँ अत्यंत विकट हो गईं, तो श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को अपने परिवार सहित आनंदपुर छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा।
यह वही समय था जब सरसा नदी के किनारे घमासान संघर्ष हुआ और इस संघर्ष में परिवार बिछड़ गया। माता गुजरी जी के साथ साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह (9 वर्ष) और साहिबज़ादा फ़तेह सिंह (6 वर्ष) अलग हो गए।
उसी दौरान, सरहिन्द के नवाब वज़ीर ख़ान के सैनिकों ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबज़ादों को बंदी बना लिया और उन्हें कठोर यातनाओं के बीच ठंडे बुर्ज में ठहराया गया। उस कड़ाके की सर्द रातों में, जब परिस्थितियाँ अत्यंत विकट थीं, माता गुजरी जी ने अपने पोतों का मनोबल बनाए रखा।
उन्होंने छोटे साहिबज़ादों को सिख इतिहास की पवित्र साखियाँ (सच्ची कहानियां) सुनाईं, धर्म, साहस और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने की प्रेरणा दी, और उनमें वह आध्यात्मिक शक्ति जगाई जिसने आगे चलकर इन्हें अमर शौर्य का प्रतीक बना दिया।
वज़ीर खान ने उन्हें अपना धर्म त्याग कर इस्लाम कबूलने को कहा। लेकिन इन दो नन्हे-वीरों का उत्तर इतिहास की अमर धरोहर बन गया। उनका उत्तर अत्यंत दृढ़ता से यही था कि “सिर दे देंगे, धर्म नहीं छोड़ेंगे’’।
उनके साहस और अडिग विश्वास ने मुग़ल सत्ता को विचलित कर दिया। क़ाज़ियों के आदेश पर 26 दिसंबर 1705 को दोनों साहिबज़ादों को जिंदा दीवार में चिनवाने की सज़ा सुनाई गई।
जैसे ही दीवार में जीवित चिनवाए जाने के बाद दोनों छोटे साहिबज़ादों (साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह) ने अपनी अमर शहादत प्राप्त की, वैसे ही यह हृदयविदारक समाचार सुनकर ठंडे बुर्ज में विराजमान माता गुजरी जी ने भी शांतचित्त होकर अपने प्राण त्याग दिए।
मुझे यह भी ज्ञात हुआ है कि छोटे साहिबज़ादों की शहादत से पूर्व, बड़े साहिबज़ादे, साहिबज़ादा अजीत सिंह जी (लगभग 18 वर्ष) और साहिबज़ादा जुझार सिंह जी (लगभग 16 वर्ष) चमकौर साहिब के रणक्षेत्र में मुग़ल सेना से वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए शहीद हुए थे। परंतु उन्होंने भी अधर्म, अत्याचार और अन्याय के आगे कभी अपने सिर नहीं झुकाए।
देवियो और सज्जनो,
26 दिसंबर 1705 को सरहिन्द की धरती पर जो हुआ, वह केवल दो वीर बच्चों की शहादत नहीं थी, वह मानवता की विजय थी। वह दुनिया को यह बताने का संदेश था कि उम्र नहीं, विचार महान होते हैं। कद नहीं, आत्मबल ऊँचा होता है।
यह हमारे गुरू साहिबानों और छोटे साहिबज़ादों की उस महान और अद्वितीय शहादत का ही परिणाम है कि आज भी देश की रक्षा के लिए हर पंजाबी सदैव तत्पर रहता है। साहिबज़ादों को समर्पित ये शब्द, ‘‘सूरा सो पहचानिए जो लड़े दीन के हेत, पुरजा-पुरजा कट मरे कबहू न छाड़े खेत’’ सिर्फ़ इतिहास नहीं, बल्कि आज के पंजाब के हर नौजवान की रगों में बहने वाला जीवंत संदेश हैं।
पंजाब देश के भूभाग का मात्र एक छोटा हिस्सा, लगभग 2 प्रतिशत है, परन्तु हमारे रक्षा बलों में पंजाबी सैनिकों का योगदान अनुपातहीन रूप से विशाल और प्रेरणादायी है। आज भी भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना में सर्वाधिक संख्या में जो बहादुर जवान सेवा दे रहे हैं, उनमें पंजाब और सिख समुदाय के सैनिक अग्रणी हैं।
हम सभी स्वर्गीय फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और एयर चीफ मार्शल अर्जुन सिंह के अद्वितीय नेतृत्व को सदैव स्मरण करते हैं, जिन्होंने देश के सैन्य इतिहास के निर्णायक क्षणों में साहस, दूरदृष्टि और कर्तव्यनिष्ठा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।
इन्हीं प्रेरणादायी परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए पंजाब के हमारे कई वीर सपूतों ने रणभूमि में अमर पराक्रम का परिचय दिया है। सूबेदार जोगिंदर सिंह, जिन्हें 1962 के भारत-चीन युद्ध में अद्वितीय वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया; नायब सूबेदार बाना सिंह, जिन्होंने 1987 के सियाचिन संघर्ष में अद्भुत साहस दिखाकर परमवीर चक्र प्राप्त किया; लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह, जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पश्चिमी कमान का नेतृत्व करते हुए असल उत्तर की लड़ाई में दुश्मन के आक्रमण को निर्णायक रूप से विफल किया; और ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी, जिन्होंने 1971 के युद्ध में लोंगेवाला की ऐतिहासिक लड़ाई में अतुलनीय वीरता का परिचय दिया।
ये सभी नाम हमारे सैन्य गौरव के स्वर्णिम अध्याय हैं। इन महान वीरों की गाथाएँ हमें गौरवान्वित भी करती हैं और राष्ट्र की सुरक्षा के प्रति हमारे संकल्प को और दृढ़ भी बनाती हैं।
आज भी पंजाब के हमारे कई वीर जवान देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे रहे हैं। पंजाब की यह वीर धरा आज भी मातृभूमि की रक्षा के लिए उतने ही उत्साह और समर्पण से खड़ी है, जितना कि गुरुओं के समय में खड़ी थी।
देवियो और सज्जनो,
आज जब हम छोटे साहिबज़ादों (साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह) की अमर शहादत को स्मरण कर रहे हैं, तब यह और भी आवश्यक हो जाता है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के इन महान सपूतों की अद्वितीय शौर्यगाथा आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाई जाए।
इसलिए, साहस, सत्य, त्याग और धर्म के पावन मूल्यों से बच्चों को जोड़ने के उद्देश्य से बाल कल्याण परिषद, पंजाब वर्ष 1962 से निरंतर इस आयोजन का आयोजन करती आ रही है।
मुझे बताया गया है कि आज इस राज्य स्तरीय समारोह में पंजाब के विभिन्न जिलों से लगभग 200 से अधिक बच्चे और उनके अनुरक्षक भाग ले रहे हैं। इस समारोह में विभिन्न प्रतियोगिताएं जैसे शब्द गायन, भाषण प्रतियोगिता, पोस्टर मेकिंग, स्किट, प्रतियोगिता बच्चों को अपनी कला, विचार और रचनात्मकता को व्यक्त करने का अवसर देंगी।
साथियो,
आज जब हम विकसित भारत 2047 का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं, तब आप जैसे युवा ही इस सपने को साकार करने की सबसे बड़ी शक्ति हैं। आपकी प्रतिभा, आपकी दृष्टि और आपका नवाचार आज पूरे विश्व को भारत की ओर आशा और संभावनाओं के साथ देखने के लिए प्रेरित कर रहा है।
आज भारत में स्टार्टअप्स से लेकर साइंस तक, स्पोर्ट्स से लेकर एंटरप्रेन्योरशिप तक, युवा शक्ति एक नई क्रांति का नेतृत्व कर रही है। देश के विकास के हर क्षेत्र में नौजवानों को नए अवसर मिल रहे हैं, और सरकार उनकी क्षमता तथा आत्मविश्वास को नए आयाम देने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है।
तेज़ी से बदलती वैश्विक परिस्थितियाँ न केवल नई चुनौतियाँ लेकर आ रही हैं, बल्कि भविष्य की नई दिशाओं को भी निर्धारित कर रही हैं। यह युग पारंपरिक मशीनों से आगे बढ़कर मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में प्रवेश कर चुका है।
इसलिए हमें अपने युवाओं को फ्यूचर-रेडी बनाना अनिवार्य हो गया है। इसी सोच के साथ भारत ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की, एक ऐसी नीति जो शिक्षा को आधुनिक, लचीला और नवाचारी स्वरूप देती है। युवाओं में नागरिक दायित्वों और राष्ट्र निर्माण के प्रति भावना को सुदृढ़ करने के लिए मेरा युवा भारत (MY Bharat) अभियान चलाया जा रहा है।
साथियो,
आज देश की एक और बड़ी प्राथमिकता है, फिटनेस और स्वास्थ्य। “फिट इंडिया” और “खेलो इंडिया” जैसे अभियान हमारे युवाओं में स्वास्थ्य, अनुशासन और सक्रिय जीवनशैली के प्रति सजगता ला रहे हैं। एक स्वस्थ युवा पीढ़ी ही एक सक्षम, समृद्ध और विकसित भारत का निर्माण करेगी।
आज आवश्यकता इस बात की है कि आप अपनी अनमोल ऊर्जा को नशे जैसी विनाशकारी लतों से दूर रखते हुए सकारात्मक दिशा में लगाएँ। नशा न केवल आपके शरीर और मन को दुर्बल बनाता है, बल्कि आपके परिवार, समाज और पूरे पंजाब की प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है।
साथियो,
मुझे यह कहते हुए विशेष प्रसन्नता हो रही है कि वीर बाल दिवस (छोटे साहिबज़ादा बाबा ज़ोरावर सिंह और साहिबज़ादा बाबा फ़तेह सिंह का शहीदी दिवस) अब केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े सम्मान और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। जहाँ दुनिया भर के लोग छोटे साहिबज़ादों की अमर शहादत और उनके अद्वितीय साहस को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
मैं आप सभी युवाओं से आग्रह करता हूँ कि अपने सपनों के प्रति सच्चे रहें, अपनी शक्ति पहचानें, अपने विचारों को निडरता से व्यक्त करें और अपने राज्य व देश के लिए कुछ बड़ा करने की आकांक्षा रखें।
अंत में मैं श्री गुरू गोबिंद सिंह जी, छोटे साहिबज़ादों, बड़े साहिबज़ादों, माता गुजरी जी और श्री गुरू तेग़ बहादुर जी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करता हूं।
बाल कल्याण परिषद, पंजाब के सभी सदस्यों, शिक्षकों, कर्मचारियों और स्वयंसेवकों को हृदय से बधाई देता हूँ। आप सभी का समर्पण, परिश्रम और समाजहित की भावना न केवल सराहनीय है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भी है।
आप सभी को वीर बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
धन्यवाद,
जय हिन्द!