SPEECH OF HON'BLE GOVERNOR OF PUNJAB & ADMINISTRATOR U.T. CHANDIGARH SH. BANWARILAL PUROHIT ON THE OCCASION OF 17TH TFT WINTER NATIONAL THEATRE FESTIVAL-2022 AT PUNJAB KALA BHAWAN, SEC-16, CHANDIGARH ON NOVEMBER 12, 2022
- by Admin
- 2022-11-12 18:30
नमस्कार,
आजादी के अमृत महोत्सव के शुभ अवसर पर देश राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रगति की राहों से एक नव भारत के निर्माण के लिए तत्पर है। वहीं भारत की प्राचीन, पौराणिक, सांस्कृतिक विरासत के प्रचार व विस्तार के लिएथिएटर फॉर थिएटर तथा संस्कार भारती इस17वें, टीएफटी विंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल के माध्यम से देश के 10 विभिन्न प्रांत जिनमें पंजाब, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश शामिल हैं, से आए 300 कलाकारों द्वारा विभिन्न प्रदेशों की नाट्य प्रस्तुतियों के माध्यम से, हमें भारत की विभिन्न संस्कृतियों का आदान-प्रदान करने का यह शुभ अवसर प्राप्त हुआ है।
मेरा ऐसा विश्वास है कि नाट्य आयोजन से मनोरंजन के साथ-साथ समाज को नई दिशा व दशा भी मिलेगी।
नाट्य कला भारतीय संस्कृति की अमित धरोहर है। पंचम वेद (नाट्य शास्त्र) के रचयिता महा ऋषि भरत मुनि द्वारा वर्णित किया गया है कि नाट्य से तीनों लोकों के भावो को परिलक्षित करते हुए समाज को जागृत करने का सबसे उचित वा उत्तम माध्यम है।
भाईयो और बहनों,
हमें नृत्य, संगीत और नाटक जैसी विभिन्न कलाओं को जन-जन तक पहुँचाना है और यह प्रयास हमारी संस्कृति के संरक्षण के लिए हमारी सहभागिता के विभन्न तरीकों में से एक है।
वर्तमान में हम एक अत्याधिक बदलाव भरे समय और एक वैश्वीकृत दुनिया में रह रहे हैं, जहां विचारों का निरंतर आदान-प्रदान हो रहा है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हम अपनी नई पीढ़ी तक पहुंच बनाते हुए उनमें हमारी संस्कृति के प्रति जागरूकता और उत्सुकता पैदा करें।
नृत्य और नाटक ऐसे शक्तिशाली साधन हैं जिनका उपयोग कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज तथाड्रग्स और शराब की लत जैसीसामाजिक बुराइयों से लड़ने हेतु सामाजिक संदेशों को प्रभावी ढंग से प्रसारित करने के लिए किया जा सकता है। इनका उपयोग स्वास्थ्य, साक्षरता तथा सत्य, सहिष्णुता और सद्भाव के मूल्यों जैसे विभिन्न मुद्दों संबंधी लोगों को शिक्षित करने के लिए भी किया जा सकता है।
मैं सामाजिक संगठनों और कॉरपोरेट घरानों से समाज में जागरूकता, सद्भाव और शांति लाने हेतु प्रदर्शन कलाओं (Performing Arts) विशेष तौर पर रंगमंच को बढ़ावा देने का आह्वान करता हूं।
हम अपनी प्रदर्शन कलाओं का उपयोग हमारे देश के दूर-दराज के क्षेत्रों के साथ-साथ पहाड़ी और कठिन इलाकों में सामाजिक बुराइयों को मिटाने और कल्याणकारी योजनाओं संबंधी जागरूकता पैदा करने के लिए एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में कर सकते हैं। यदि इन कलाओं का प्रदर्शन स्थानीय बोलियों में किया जाए तो लोगों के लिए इन्हें समझ पाना आसान होगा।
आज, जिस समय भारत स्वतंत्र आर्थिक प्रगति और वैज्ञानिक विकास की दहलीज पर खड़ा है, तो उस समय किसी व्यक्ति कीप्रगति और उसकी आंतरिक जरूरतों के बीच; उसकी आध्यात्मिक खोज और भौतिक आकांक्षाओं के बीच ; तकनीकी प्रगति और पारिस्थितिक समानता बनाए रखने की आवश्यकता के बीच एक संतुलन बनाए रखने के लिए संस्कृति की भूमिका अत्याधिक महत्वपूर्ण है।
मैं रंगमंच के माध्यम से हमारी संस्कृति के संरक्षण हेतु आप जैसी संस्थाओं द्वारा दिए गये उत्कृष्ट योगदान का सम्मान करता हूं।
भारत की लोककथाओं की समृद्ध परंपरा एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर हमें तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। समय बीतने के साथ-साथ लोक परंपराओं के विभिन्न रूपों का पतन हुआ है। यह हमारा दायित्व बनता है कि हम अपनी महान लोक परंपराओं को संरक्षित करने हेतु हर संभव प्रयास करें।
दृश्य और प्रदर्शन कलाएं (Visual & Performing Arts) हमारे देश की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत से जुड़ी हुई हैं। हमें इन्हें संरक्षित करना होगा क्योंकि ये हमारी राष्ट्रीय पहचान को आकार प्रदान करती हैं।
मित्रों,
कला की भाषा विश्वव्यापी है। यह सभी संस्कृतियों के लोगों को एकजुट करती है और उन्हें प्रेरित करती है। इतिहास साक्षी है, जो सभ्यता अपनी कला व सांस्कृतिक विरासत संभाल नहीं पाती वह सभ्यता ही नष्ट हो जाती है।
आइए, हम अपने आस-पास के विभिन्न कला रूपों को सीखकर, उनकी क़दर करके और उन्हें बढ़ावा देकर अपने जीवन को समृद्ध बनाएं।
मैं शिक्षण संस्थानों से अपील करना चाहूंगा कि वे अपने पाठ्यक्रम में कला विषयों को समान महत्व दें। मैं अभिभावकों से भी आग्रह करता हूं कि वे अपनेबच्चों को किसी भी कला को सीखने के लिए प्रोत्साहित करें , जिसकी ओर उनका झुकाव है। कम उम्र में रचनात्मकता और कला के संपर्क में आने से बच्चों को अपने परिवेश के बारे में अधिक जागरूक बनने में मदद मिलेगी और उन्हें अधिक सार्थक जीवन जीने में मदद मिलेगी।
संस्कार भारती पूरे देश में अपनी 1700 सौ इकाइयों के माध्यम से प्रत्येक प्रदेश की मिट्टी की खुशबू तथा उसकी संस्कृति को विश्व पटल पर रखने का एक विशाल कार्य कर रही है। आप जैसे सभी कला वा संस्कृति, सभ्यता के प्रहरी, कला साधकों, तपस्वीयों को मैं साधुवाद देता हूं।
आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर कला के विशाल महाकुंभ को आयोजित करने के लिए, मैं थिएटर फॉर थिएटर और संस्कार भारती के सभी पदाधिकारियों को बधाई देता हूं और आशा करता हूं कि भविष्य में भी वह अपनी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए निरंतर कार्य करते रहेंगे।
धन्यवाद,
जय हिन्द।